पद्मश्री से अलंकृत प्रख्यात कवयित्री सुगाथाकुमारी का बुधवार सुबह निधन हो गया। वह 86 साल की थीं और कोरोना संक्रमण से पीड़ित थीं। तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें इस सप्ताह के शुरू में तिरुवनंतपुरम के सरकारी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था। वर्ष 2006 में उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
उन्होंने करीब सात दशक के अपने साहित्यिक करियर में पर्यावरण और महिलाओं के उत्पीड़न पर अपनी चिंताओं को व्यक्त करने के लिए कविता का इस्तेमाल किया। इसके अलावा कुछ प्रमुख पर्यावरण विरोध प्रदर्शनों में वह आगे रहीं थीं। 1996 में केरल सरकार ने उन्हें राज्य महिला आयोग की पहली अध्यक्ष के रूप में चुना।

‘रथ्रीमज़हा’ के लिए मिला साहित्य अकादमी पुरस्कार
उन्हें पहला केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार ‘पथिरापुकुक्कल’ से पुरस्कृत किया गया था। ‘रथ्रीमज़हा’ उनकी सबसे लोकप्रिय कृतियों में से एक था तथा उन्हें इसके लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। इसके साथ ही सुगाथाकुमारी को केंद्र साहित्य अकादमी पुरस्कार, ओडक्कुज़ल पुरस्कार, वायलार पुरस्कार, वल्लथोल पुरस्कार, एज़ुथचन पुरस्कार, आसन पुरस्कार, सरस्वती सम्मान, थोपिल भासी पुरस्कार मिले हैं।
साहित्य अकादमी ने पद्मश्री अलंकृत प्रख्यात साहित्यकार सुगाथाकुमारी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। अकादमी ने कहा कि उनका निधन एक गहरे शून्य के साथ-साथ एक समृद्ध विरासत भी छोड़ गया है। साहित्य अकादमी ने सुगाथाकुमारी के परिवार के प्रति गहरी संवेदना प्रकट की है।
श्रीनिवासराव ने कहा कि साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कविता-संग्रह राथरिमाष़, केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित पाथिराप्पूकल तथा उनकी अन्य कृतियां अम्बालमणि एवं मनोलेष़हुथु जैसी रचनाओं ने सुगाथाकुमारी को आधुनिक भारत की महानतम कवयित्रियों में से एक बना दिया था। उन्होंने बाल साहित्य को बढ़ावा देने के लिए अथक प्रयास किए, जिसके फलस्वरूप उन्हें केरल साहित्य अकादमी ने बाल साहित्य के लिए आजीवन योगदान को लेकर सम्मानित किया था। उनका निधन एक गहरे शून्य के साथ-साथ एक समृद्ध विरासत भी छोड़ गया है।
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