रायपुर: जल शक्ति मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में अभी भी 55511 ग्रामीण बस्तियों को शुद्ध पेयजल नसीब नहीं है। यहां के पेयजल में आर्सेनिक एवं आयरन बड़ी मात्रा में मौजूद है। ऐसे में नैनो टेक्नोलॉजी इस समस्या का बड़ा समाधान हो सकता है। नैनो टेक्नोलॉजी के द्वारा अब किसी भी स्रोत से साफ पेयजल तैयार किया जा सकता है। इसकी सहायता से ऐसे प्राकृतिक नैनो कण तैयार किए जाते हैं, जो पानी में उपस्थित जीवाणुओं को तो नष्ट करते ही हैं साथ में फिल्टरों को भी साफ करते रहते हैं।
ऐसी ही एक नैनो विधि से समुद्र का खारा पानी मीठा बनाया जा रहा है।जल शक्ति मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार भूजल में फ्लोराइड, नाइट्रेट, आर्सेनिक, आयरन, क्रोमियम, लेड, कैडमियम ऑल लवणता निर्धारित मात्रा से अधिक है। ऐसे पानी के सेवन से हड्डियां, थायराइड की ग्रंथियों, दिल, लिवर और पेनक्रियाज , फेफड़ों किडनी को काफी नुकसान पहुंचता है। देश में जैसे-जैसे पेयजल की अशुद्धता बढ़ रही है वैसे वैसे इन अंगों से संबंधित बीमारियां तेजी से बढ़ रही है। एशियाई देश, जिसमें भारत भी शामिल है, के 54 प्रतिशत भूजल में आर्सेनिकयुक्त है।
पानी से बढ़ते रोग
अपने देश के 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 152 जिलों के भूजल में आर्सेनिक की मात्रा 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है। इसकी वजह से अधिक मात्रा में त्वचा रोग, आंख के रोग, कैंसर और फेफड़ों तथा किडनी के रोग हो रहे हैं। डब्ल्यूएचओ ने प्रति लीटर पानी में आर्सेनिक की सांद्रता 10 माइक्रोग्राम निर्धारित की है। ऐसे में नैनो टेक्नोलॉजी द्वारा किसी भी स्रोत से शुद्ध पेयजल प्राप्त किया जा सकता है।
इसकी सहायता से ऐसे प्राकृतिक नैनो कारण तैयार किए गए हैं जो पानी में उपस्थित जीवाणुओं को नष्ट तो कर ही देते हैं साथ ही फिल्टरों को भी साफ करते रहते हैं। नैनो विज्ञान अणु और परमाणुओं एवं 1-100 नैनोमीटर के कणों के परिचालन से संबंधित ज्ञान एवं इनके विशेष गुणों का उचित उपयोग करने का विज्ञान है। कालांतर में नैनो संवेदकों तथा नैनो झिल्ली युक्त उपकरणों से कार्बनिक पदार्थों, वायरस, अविषाणु धातु युक्त जल का भी शोधन संभव हो सकेगा।
इस क्षेत्र में अमेरिका, इजरायल तथा आस्ट्रेलिया के अनुसंधान संस्थान सक्रिय रुप से कार्य कर रहे हैं। ऐसी एक नैनो विधि से समुद्र का खारा पानी भी मीठा बनाया जा रहा है। इन नैनो की कीमत भी कम होगी तथा इनसे सतह पर और सतह के नीचे स्थित भूजल के दूषित पानी को पीनेयोग्य बनाया जा सकेगा।
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