-प्रतिवर्ष दो करोड़ से अधिक श्रद्धालु करते हैं मनोकामनाओं के पूरक कामदगिरि पर्वत की प्रदक्षिणा
चित्रकूट : मान्यता है कि धर्म नगरी से जाते समय भगवान श्रीराम ने ही चित्रकूट गिरि को कामदगिरि होने का वरदान दिया था। तभी से कामदगिरि पर्वत की भगवान की तरह पूजा होती आ रही है। प्रतिवर्ष देश भर से करोड़ों श्रद्धालु चित्रकूट पहुंच कर मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मंदाकिनी में आस्था की डुबकी लगाने के बाद कामदगिरि पर्वत की पंचकोसीय परिक्रमा लगाते हैं।
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच बसे आदि तीर्थ चित्रकूट का धार्मिक,आध्यात्मिक और पौराणिक दृष्टि से समूचे विश्व में अलग ही महत्व है। वनवास काल के दौरान भगवान श्रीराम ने साढ़े 11 वर्ष का समय तपोभूमि चित्रकूट के इसी पावन तीर्थ कामदगिरि पर्वत पर ही व्यतीत किया था। चित्रकूट में ही आत्रि आदि महान ऋषि-मुनियों से प्रभु श्रीराम को आसुरी शक्तियों से लड़ने की शक्तियां अर्जित हुई थी।
विश्व की आध्यात्मिक राजधानी के रूप में विख्यात आदितीर्थ चित्रकूट अत्रि, वाल्मीकि, वशिष्ठ एवं माता सती अनुसुईया आदि महान ऋषि-मुनियों की तपोस्थली रही है। इसी पावन भूमि पर भगवान श्रीराम ने पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ वनवासकाल का सर्वाधिक साढ़े 11 वर्ष का समय व्यतीत किया है।
कामदगिरि प्रमुख द्वार के महंत मदन गोपाल दास महाराज धर्म नगरी की गौरवगाथा का बखान करते हुए बताते हैं कि वायु पुराण में चित्रकूट गिरि की महिमा का उल्लेख है कि सुमेरू पर्वत के बढ़ते अहंकार को नष्ट करने के लिए वायु देवता उसके मस्तक को उड़ाकर चल दिये थे। उस शिखर पर चित्रकेतु नाम के ऋषि तप कर रहे थे। श्राप के डर से वायु देवता पुनः उस शिखर को सुमेरू पर्वत में स्थापित करने के लिए चलने लगे।
चित्रकेतु ऋषि के नाम से ही इस शिखर को नाम चित्रकूट गिरि पड़ा
तभी ऋषिराज चित्रकेतु ने कहा कि मुझे इससे उपयुक्त स्थल पर ले चलो नहीं तो श्राप दे दूंगा। सम्पूर्ण भूमंडल में वायु देवता उस शिखर को लेकर घूमते रहे,जब इस भूखंड पर आये तो ऋषि ने कहा कि इस शिखर को यहीं स्थापित करों। चित्रकेतु ऋषि के नाम से ही इस शिखर को नाम चित्रकूट गिरि पड़ा था।
सुप्रसिद्ध भागवताचार्य डा.रामनारायण त्रिपाठी बताते है कि धनुषाकार कामदगिरि पर्वत के चार द्वार हैं। जिसमें उत्तरद्वार पर कुबेर, दक्षिणीद्वार पर धर्मराज,पूर्वी द्वार पर इंद्र और पश्चिमी द्वार पर वरूण देव द्वारपाल हैं। इसके अलावा कामदगिरि पर्वत के नीचे क्षीरसागर है। जिसके अंदर उठने वाले ज्वार-भाटा से कभी-कभार कामतानाथ भगवान के मुखार बिंद से दूध की धारा प्रवाहित होती है।
विविध विशेषताओं के कारण ही कामदगिरि पर्वत के दर्शन और परिक्रमा के लिए प्रत्येक माह अमावस्या पर लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है। दीपदान मेले में यह संख्या 50 लाख तक पहुंच जाती है। वनवास काल के दौरान मर्यादा पुरूषोत्तम प्रभु श्रीराम ने पर्वतराज सुमेरू के शिखर कहे जाने वाले चित्रकूट गिरि को कामदगिरि यानि मनोकामनाओं के पूरक होने का वरदान दिया था।
रामायणी कुटी के महंत रामहृदय दास महाराज तीर्थ राज चित्रकूट की महिमा का बखान करते हुए कहा कि ये विश्व का ऐसा अलौकिक पर्वत है। जिसके अवलोकन मात्र से ही व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
कामदगिरि पर्वत के दर्शन करने से सारे दुखों का हरण हो जाता है
रामचरित मानस के रचयिता संत गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कामदगिरि पर्वत की महिमा का बखान करते हुए लिखा है कि “कामद भे गिरि राम प्रसादा, अवलोकत अपहरत विसादा’’। यानि कामदगिरि पर्वत के दर्शन करने मात्र से व्यक्ति के सारे विसादों यानि दुखों का हरण हो जाता है। प्रभु श्रीराम के इसी वरदान की महिमा के कारण कामदगिरि पर्वत की भगवान के रूप में पूजन होता है। प्रतिवर्ष देश भर से दो करोड़ों से अधिक श्रद्धालु चित्रकूट पहुंचकर मंदाकिनी नदी में आस्था की डुबकी लगाने के बाद मनोकामनाओं के पूरण के लिए कामदगिरि पर्वत की पंचकोसीय परिक्रमा लगाते हैं।
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संत रामचंद्र शास्त्री बताते है कि त्रेता युग में जब अयोध्या नरेश राजा दशरथ के पुत्र भगवान श्रीराम मां सीता और भ्राता लक्ष्मण सहित 14 वर्ष के वनवास के लिए निकले थे, तब उन्होंने आद्य ऋषि वाल्मीकि से पूछा था कि साधना के लिए उत्तम स्थान कहां है और हमें कहां निवास करना चाहिए। ऋषि वाल्मीकि की आज्ञा पर श्रीराम, सीता और लक्ष्मण के साथ चित्रकूट पहुंचे थे।
चित्रकूट आध्यात्मिक और धार्मिक आस्था का संगम है। इसी पावन भूमि पर भगवान विष्णु ने श्री राम रूप में यहां वनवास काटा था तो ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के लिए यहां यज्ञ किया था और उस यज्ञ से प्रगट हुआ शिवलिंग धर्मनगरी चित्रकूट के क्षेत्रपाल के रूप में आज भी विराजमान हैं।
कामतानाथ पूर्वी मुख़ार बिंद के प्रधान पुजारी भरतशरण दास महाराज का कहना है कि धर्म नगरी के प्रमुख तीर्थ स्थल कामदगिरि पर्वत पर रहकर ही प्रभु राम ने तप-साधना कर शक्ति का संचय करने के साथ-साथ अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष का संकल्प लिया था।भगवान श्रीराम के वरदान से कामदगिरि बने चित्रकूट गिरि का भगवान के रूप में पूजन कर अपनी सारी मनोकामनाएं पूर्ण करते है।