प्रयागराज : कोरोना महामारी के बावजूद राजस्थान के पाली जिले से शहर में पहुंचे मूर्तिकार धनार्जन करने के लिए मूर्तियों के निर्माण में लग चुके है। दुर्गा पूर्जा एवं दीपावली पर्व के अवसर पर विक्री अधिक होती है। लेकिन मूर्ति कलाकारों कहना कि दुर्गा पूर्जा में बहुत कम कमाई हो पायी है। आशा है कि दीपावली पर्व में जीवन यापन के लिए कुछ कमाई हो जाय।
राजस्थान के पाली जिले के रहने वाले किसन भाटिया एवं उसकी पत्नी कैलास भाटिया कहना है कि मूर्ति बनाने का कारोबार करते हैं। जिससे पूर्व वर्ष का खर्च चलता है। यहां प्रत्येक वर्ष आते हैं और मूर्तियों का निर्माण यहीं करते हैं और उनको तैयार करके बेचते हैं। जिले से लगभग दो सौ कलाकार यहां आए है। शहर के विभिन्न क्षेत्रों में रहकर मूर्ति बनाते है और दुर्गा पूजा एवं दीपावली पर्व बीत जाने के बाद वापस अपने गांव चले जाते हैं।
मूर्ति कारीगरों के अच्छा मुनाफा कमाने के सपनों को महंगाई का ग्रहण लग गया
कोरोना के प्रभाव से मूर्ति बनाने वाले मूर्तिकार, कलाकार भी अछूते नहीं हैं। कोई भी त्योहार, उत्सव आते ही कलाकारों की भी उमंगें हिलोरें लेने लगती हैं, लेकिन महंगाई एवं कोराना की वजह से मुश्किल से मजदूरी ही निकल पा रही है। 30 रुपये से 40 रुपये तक की लागत से तैयार होने वाली मूर्ति बाजार में बमुश्किल 45 से 50 रुपये में बिक रही है। इस वजह से मूर्ति कारीगरों के अच्छा मुनाफा कमाने के सपनों को महंगाई का ग्रहण लग गया है।
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राजस्थान के पाली जिले से मूर्तियों का व्यवसाय करने यहां आए हुए किसन भाटिया, उसकी पत्नी कैलाश भाटिया एवं उसके परिवार के अन्य सदस्यों का कहना है कि एक वर्ष पहले जो पीओपी का पैकेट 65 से 70 रुपये में मिलता था अब उसकी 120 से 140 रुपये तक हो गई है।
एक पैकेट में 20 किलो पीओपी होती है। उससे बड़ी चार मूर्तियां ही बन पाती हैं। एक मूर्ति 30 रुपये से 40 रुपये तक में बिकती है। इससे अब केवल मजदूरी ही निकल पा रही है। पशु, पक्षियों की मूर्तियों के साथ ही सुन्दर फूलदान वस्तुओं का निर्माण करके बेंचते हैं।