32.1 C
New Delhi
July 27, 2024
विचार

कैसे पाक एंबेसी बनी भारत का जासूसी का अड्डा!

भारत के इस्लामाबाद स्थित उच्यायोग के दो वरिष्ठ कर्मियों को पाकिस्तान ने जिस बेशर्मी से बीते दिनों प्रताड़ित किया उसके बाद भारत सरकार का दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग से उसके कर्मचारियों की संख्या को 50 फीसदी कम करने का आदेश तो सर्वथा सही ही माना जाएगा। अब तो यह साफ हो गया है कि इमरान खान सरकार भारत से अपने तमाम मसलों को हल करने के प्रति रत्ती भर भी गंभीर नहीं है।

इमरान खान से पहले वाली सरकारें भी भारत को परोक्ष रूप से कमजोर करने की ही चेष्टा करती रही हैं। वे सीधे तौर पर तो भारत से दो-दो हाथ करने की हिमाकत तक नहीं कर पाती है। उन्हें लगता है कि भारत में अपने उच्चायोग में खुफिया एजेंसी आईएसआई के गुप्तचरों को भेजते रहो जो भारत को किसी न किसी रूप से हानि पहुंचाने की रणनीति बनाते रहें और देश के अन्दर छुपे पाक समर्थक गद्दारों को हर प्रकार की मदद पहुंचाते रहें ।

भारत सरकार को यह सब पूरी तरह से मालूम है। यह बात दूसरी है कि किसी कारणों से अबतक सख्त निर्णय लेने से परहेज करती रही है। अब जाकर मोदी-शाह की जोड़ी ने सख्त रूख अपनाया है। कहीं न कहीं, इसलिए ही उसने पाकिस्तान उच्चायोग के कर्मियों की तादाद घटाने के आदेश दिए।

भारतीय दस्तावेज हासिल करने की फिराक में हैं आईएसआई के कर्मी

दरअसल पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के कर्मी दिल्ली में राजनयिक का मुखौटा पहनकर अक्सर ही आ जाते हैं। ये भारत में आकर भारतीय सेना से संबंधित महत्वपूर्ण दस्तावेज हासिल करने की फिराक में लगे रहते हैं और कई बार सफल भी हो जाते हैं।

इसके साथ ही, इनका एक काम भारत में आतंकवादियों के संगठनों को खाद-पानी और मार्गदर्शन देना भी होता हैं। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पाकिस्तानी उच्चायोग में कश्मीरी अलगाववादियों को दामाद की तरह सम्मान मिलता था। लेकिन, वह सब केन्द्र में मोदी सरकार के आने के बाद बंद हो गया।

आपको पाकिस्तानी जासूस निशांत अग्रवाल का नाम याद होगा। उसे पाकिस्तान को ब्रह्मोस मिसाइल की जानकारी लीक करने के आरोप में पकड़ा गया था। वह पाकिस्तानी उच्चायोग के मुलाजिमों से पैसे लेकर ही कथित तौर पर सूचनाएं लीक करता रहता था।

कहना नहीं होगा कि अभी इस देश में जयचंद जैसे सैकड़ों आस्तीन के सांप मौजूद हैं। पिछली ही मई के महीने में दिल्ली पुलिस ने पाकिस्तान उच्चायोग के दो अफसरों को जासूसी करते रंगे हाथों पकड़ा था। इनके नाम आबिद हुसैन और ताहिर हुसैन थे। भारत ने डिप्लोमेटिक इम्यूनिटी के कारण इनपर एक्शन न लेते हुए इन्हें देश से 24 घंटे के अंदर चले जाने को कहा था।

सरकार को पाकिस्तानी उच्चायोग की गतिविधियों पर और पैनी नजर रख रही है, वहीं अपने देश के साथ गद्दारी करने वालों को भी पकड़कर सख्त सजा देनी होगी। ये चंद सिक्कों के लिए भारत माता के साथ धोखा करते रहते हैं। ये अनादर करते हैं उन हजारों योद्दाओं का, जिन्होंने भारत के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। देश के किसी भी नागरिक को पाकिस्तान को अहम जानकारी देने वाले को मौत की सजा तो होनी चाहिए।

पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के लिए जासूसी करने वाला निशांत अग्रवाल का मामला खासा गंभीर था। वो ब्राह्मोस मिसाइल के सीक्रेट्स आईएसआई को बेच रहा था। यह शख्स रक्षा मंत्रालय के तहत आने वाले डीआरडीओ संस्थान में वैज्ञानिक था। देश के साथ धोखा करने वालों से पूछा जाना चाहिए कि आखिर ये किस लालच में आकर देश के साथ धोखा करने लगे? 

अगर हम पीछे मुड़कर देखे तो सन 2016 में पाकिस्तान उच्चायोग में काम करने वाले महमूद अख्तर को अवैध तरीके से संवेदनशील दस्तावेज हासिल करने के आरोप में पकड़ा गया था। भारत सरकार ने उसे भी वापस पाकिस्तान भेज दिया था। मतलब पाकिस्तानी उच्चायोग भारत की जासूसी का अड्डा बना दिया गया है।

देखिए कि विभिन्न राष्ट्र एक-दूसरे के देशों में अपने उच्चायोग/ दूतावास इसलिए खोलते हैं, ताकि दोनों देशों के संबंधों को और मजबूत किया जा सके। कुछ देश इससे आगे बढ़कर अपने सांस्कृतिक केन्द्र और लाइब्रेरी भी खोलते हैं। नई दिल्ली में अमेरिका, इटली, ब्रिटेन,स्पेन, रूस आदि देशों के कल्चरल सेंटर भी हैं।

इनमें कला और संस्कृति से संबंधित गोष्ठियां, चर्चाएं और अन्य कार्यक्रम होते रहते हैं। इसी तरह से अमेरिका, ईरान, जापान आदि देशों के दिल्ली में अपने स्कूल भी हैं। इनमें इन देशों के यहां रहने वाले नागरिकों के बच्चे पढ़ते हैं। अमेरिकन स्कूल के  शुरू हुए 70 साल हो रहे हैं। पर पाकिस्तान उच्चायोग इन सब सार्थक और रचनात्मक गतिविधियों से अपने को दूर रखता हैं। वहां से होती है सिर्फ भारत की जासूसी। देख लीजिए कि कितना घटिया मुल्क है पाकिस्तान।

याद नहीं आता कि 1960 में बनी पाकिस्तान उच्चायोग की इमारत में कभी कोई कायदे का कार्यक्रम तक हुआ हो। भारत सरकार ने 1958 के बाद राजधानी के चाणक्यपुरी क्षेत्र में विभिन्न देशों को अपने दूतावास और उच्चायोग का निर्माण करने के लिए प्लाट आवंटित किए थे। आईएसआई

पाकिस्तान को भी इस आशा के साथ बेहतरीन जगह पर प्लाट दिया गया था कि वह भारत से अपने संबंधों को मधुर बनाएगा। पर पाकिस्तान ने भारत को निराश ही किया। वह न बाज आया न ही सुधरा। उसके गर्भनाल में भारत के खिलाफ नफरत भरी हुई है। वह नहीं चाहता कि भारत एक विश्व शक्ति बने।

यह बात अलग है कि उसके न चाहने के बाद भी भारत संसार की सैन्य और आर्थिक दृष्टि एक शक्ति बन गया हैं। पर पाकिस्तान के घटियापन के बावजूद भारत ने पाकिस्तान को भी किसी तरह से नुकसान पहुंचाने की पहल नहीं की। यह हमारे स्वभाव में है। लेकिन, अब हमारी उदारता को हमारी कमजोरी के रूप में देखा जाने लगा है। इसे सही करना होगा।

पाकिस्तान भारत से 1948,1965,1971 और कारगिल की जंग में हारने के बाद भी पंगे लेता ही रहा। उसने साल 2008 में मुंबई में फियादीनी हमला करवाया। अब उसने हमारे दो राजनयिकों के साथ जो कुछ किया उससे उसकी मंशा साफ हो जाती है।

पाकिस्तान सरकार की छत्रछाया में मौलाना अजहर महमूद और हाफिज सईद भारत के खिलाफ अपने स्तर पर आतंकवादी जंग लड़ रहे हैं। किसे नहीं पता कि मौलाना अजहर और उनके संगठन जैश ए मोहम्मद को ISI से खुलेआम सीधी मदद मिलती है? जैश भारत का जानी दुशमन रहा है। जैश पंजाब में बचे-खुचे खालिस्तानी आतंकवादियों को फिर से खड़ा करने के कोशिश कर रहा है। जैश बेहद खतरनाक आतंकवादी संगठन है।

भारत की सुरक्षा एजेंसियों को इसके भारत में पालने वाले लोगों को मारना होगा। पाकिस्तान में कठमुल्ले खुले तौर पर भारत का विरोध करते हैं। पर मजाल है कि पाक सरकार कुछ बोले। वह बोलेगी कैसे? उसी के इशारों पर ही तो ये कठमुल्ले सक्रिय रहते हैं। पर भारत इन्हें तबाह करने में सक्षम है और अब देरी करने की जरूरत भी नहीं है । जब पाप का घड़ा भर जाये तो उसे फोड़ डालना ही बाजिब राजधर्म है। आईएसआई

आर.के. सिन्हा

यह भी पढ़ें: चरमराती अर्थव्यवस्था पर बेरोजगारी की गिरती गाज

Related posts

जब मैक्सिको को अमेरिका से नसीब हुई इतिहास की सबसे शर्मनाक हार

Buland Dustak

सिकुड़ते वेटलैंड्स (Wetlands), पर्यावरण असंतुलन और संकट में जीवन

Buland Dustak

भारत भी अब देख रहा चीन-पाक की आंख में आंख डालकर

Buland Dustak

मंदिरों में बजे घंटियां, मस्जिद के अजान पर दूसरों का भी हो ध्यान

Buland Dustak

कम अंक लाने वालों का मनोबल बढ़ायें पर प्रोत्साहित न करें

Buland Dustak

वीर सावरकर को बदनाम करने की कड़ी आगे बढ़ सकती है?

Buland Dustak