अपने सदाबहार गीतों से श्रोताओं को दीवाना बनाने वाले बालीवुड के मशहूर गीतकार आनंद बक्शी आज बेशक हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके गाये गीत आज भी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते है।
21 जुलाई, 1930 को पाकिस्तान के रावलपिंडी में जन्में आनंद बक्शी का पूरा नाम बक्शी आनंद प्रकाश वेद था, लेकिन उनके परिजन उन्हें प्यार से नंदू कहकर बुलाते थे। लेकिन फ़िल्मी दुनिया में वह आनंद बक्शी के नाम से मशहूर हुए।
1947 में भारत -पाकिस्तान बंटवारे के बाद बख्शी का पूरा परिवार भारत आ गया। वो बचपन से फिल्म इंडस्ट्री में आना चाहता थे और नाम कमाना चाहते थे, लेकिन कहीं लोग मजाक न उड़ाए इस डर से उन्होंने अपनी ये इच्क्षा किसी को नहीं बताई।
आनंद बक्शी ने कम उम्र से ही कविता और गाने लिखने लगे। फिल्म इंडस्ट्री में आने से पहले उन्होंने नेवी मे कैडेट के तौर पर दो वर्ष तक काम किया। किसी विवाद के कारण उन्हें वह नौकरी छोड़नी पड़ी। इसके बाद 1947 से 1956 तक उन्होंने भारतीय सेना में भी नौकरी की।
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ऐसे शुरू हुआ गीतकार के रूप में आनंद बक्शी का सफर
बचपन से ही मजबूत इरादे वाले आनंद बक्शी अपने सपनों को साकार करने के लिये नये जोश के साथ फिर मुंबई पहुंचे, जहां उनकी मुलाकात उस जमाने के मशहूर अभिनेता भगवान दादा से हुई। भगवान दादा ने उन्हें अपनी फिल्म ‘भला आदमी’ में गीतकार के रूप में काम करने का मौका दिया। उस समय उनको ऐसा लगा जैसे उनकी मन की मुराद पूरी हो गई।
इसके बाद यहां से शुरू हो गया गीतकार के रूप में उनका सफर। हालांकि इस फिल्म के बाद भी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए लम्बा संघर्ष चला। साल 965 में ‘जब जब फूल खिले‘ प्रदर्शित हुई तो उन्हे उनके गाने ‘परदेसियों से न अंखियां मिलाना’ ‘ये समां.. समां है ये प्यार का’ ,’ एक था गुल और एक थी बुलबुल’ सुपरहिट रहे और गीतकार के रूप में हिंदी सिनेमा में उनको न सिर्फ पहचान मिली, बल्कि उन्होंने शोहरत की बुलंदियों को भी छुआ।
आनंद बक्शी को 40 बार सर्वश्रेष्ठ गीतकार के लिए किया गया था नॉमिनेट
आनंद बक्शी ने अपने पूरे फ़िल्मी करियर में अमर प्रेम, एक दूजे के लिए, सरगम, बाबी, हरे रामा हरे कृष्णा, शोले, अपनापन, हम, मोहरा, दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे, दिल तो पागल है, परदेस, ताल और मोहब्बतें जैसी 300 से ज्यादा फिल्मों में एक से बढ़कर एक सुपरहिट गीत लिखे।
उनको 40 बार सर्वश्रेष्ठ गीतकार के फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित हुए लेकिन इस सम्मान से उन्हें केवल चार बार ही नवाजा गया. इनमें से आदमी मुसाफिर है (अपनापन), तेरे मेरे बीच में (एक दूजे के लिए), तुझे देखा तो ये जाना सनम (दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे) और इश्क बिना (ताल) के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का पुरस्कार मिला।
आनंद बक्शी का 82 साल की उम्र में 30 मार्च, 2002 को निधन हो गया था। अत्यधिक सिगरेट पीने के कारण उनके फेफड़ों में संक्रमण काफी ज्यादा हो गया था और उनके शरीर के अंगों ने भी काम करना बंद कर दिया था जिसके कारण उनका निधन हो गया। वो आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके गीत आज भी दर्शकों के बीच बड़े चाव से सुने-सुनाये जाते हैं।