भारत में नयी शिक्षा नीति 2020 को कैबिनेट की मंज़ूरी 29 जुलाई 2020 को मिल गई है। नई शिक्षा नीति में बदलाव के चलते 10+2 के फार्मेट को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। अभी तक हमारे देश में स्कूली पाठ्यक्रम 10+2 के हिसाब से चलता है लेकिन अब ये 5+ 3+ 3+ 4 के हिसाब से होगा।
भारत में सबसे पहली शिक्षा नीति पूर्व प्रधानमन्त्री इंदिरा गाँधी ने 1968 में शुरू की थी। इसके बाद अगली नीति राजीव गाँधी की सरकार ने 1986 में दूसरी शिक्षा नीति बनायीं जिसमें नरसिम्हा राव सरकार ने 1992 में कुछ बदलाव किये थे।
इस प्रकार वर्तमान में भारत में 34 साल पुरानी शिक्षा नीति चल रही थी जो कि बदलाव परिद्रश्य के साथ प्रभावहीन हो रही थी। यही कारण है कि वर्ष 2019 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नयी शिक्षा नीति का ड्राफ्ट तैयार कर जनता से सलाह मांगी थी.
नई शिक्षा नीति- स्कूल शिक्षा का नया ढांचा, 5+3+3+4 फार्मूला
इसका मतलब है कि प्राइमरी से दूसरी कक्षा तक एक हिस्सा, फिर तीसरी से पांचवीं तक दूसरा हिस्सा, छठी से आठवीं तक तीसरा हिस्सा और नौंवी से 12 तक आखिरी हिस्सा होगा। पांचवी कक्षा तक की शिक्षा मातृ भाषा में होगी। इस नीति में शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का 6% भाग खर्च किया जायेगा।
फाउंडेशन स्टेज
पहले तीन साल बच्चे आंगनबाड़ी में प्री-स्कूलिंग शिक्षा लेंगे। फिर अगले दो साल कक्षा एक एवं दो में बच्चे स्कूल में पढ़ेंगे। इन पांच सालों की पढ़ाई के लिए एक नया पाठ्यक्रम तैयार होगा। मोटे तौर पर एक्टिविटी आधारित शिक्षण पर ध्यान रहेगा। इसमें तीन से आठ साल तक की आयु के बच्चे कवर होंगे। इस प्रकार पढ़ाई के पहले पांच साल का चरण पूरा होगा।
प्रीप्रेटरी स्टेज
इस चरण में कक्षा तीन से पांच तक की पढ़ाई होगी। इस दौरान प्रयोगों के जरिए बच्चों को विज्ञान, गणित, कला आदि की पढ़ाई कराई जाएगी। आठ से 11 साल तक की उम्र के बच्चों को इसमें कवर किया जाएगा।
मिडिल स्टेज
इसमें कक्षा 6-8 की कक्षाओं की पढ़ाई होगी तथा 11-14 साल की उम्र के बच्चों को कवर किया जाएगा। इन कक्षाओं में विषय आधारित पाठ्यक्रम पढ़ाया जाएगा। कक्षा छह से ही कौशल विकास कोर्स भी शुरू हो जाएंगे।
सेकेंडरी स्टेज
कक्षा नौ से 12 की पढ़ाई दो चरणों में होगी जिसमें विषयों का गहन अध्ययन कराया जाएगा। विषयों को चुनने की आजादी भी होगी।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020
शिक्षा नीति में बताए गए सुधार व बदलाव कैसे लागू होंगे?
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) में अभी शिक्षा सुधारों के सुझावों को मंजूरी मिली है। इन सुधारों का क्रियान्वयन होना बाकी है। जरूरी नहीं है कि नई शिक्षा नीति के सभी सुझाव मान ही लिए जाए, क्योंकि शिक्षा एक समवर्ती विषय है जिस पर केंद्र व राज्य सरकारें दोनों कानून बना सकती हैं। नई शिक्षा नीति में शिक्षा में सुधार के जो सुझाव दिए गए हैं, वो राज्य सरकारों व केंद्र के सहयोग से लागू किए जाएंगे।
उच्च शिक्षा में नई शिक्षा नीति में क्या अहम बदलाव हुए हैं ?
लॉ और मेडिकल एजुकेशन को छोड़कर समस्त उच्च शिक्षा के लिए एक एकल निकाय के रूप में भारत उच्च शिक्षा आयोग (HECI) का गठन किया जाएगा. अर्थात उच्च शिक्षा के लिए एक सिंगल रेगुलेटर रहेगा. उच्च शिक्षा में 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ी जाएंगी.
अगर चार साल के डिग्री कोर्स में कोई विद्यार्थी पहले साल में ही कॉलेज छोड़ देता है, तो उसे सर्टिफिकेट मिलेगा। जबकि दूसरे साल के बाद एडवांस सर्टिफिकेट और तीसरे साल के बाद छोड़ने पर डिग्री मिलेगी। अगर विद्यार्थी पूरे चार साल पढ़ेगा तो चार साल बाद की डिग्री उसे शोध के साथ मिलेगी।
नई शिक्षा नीति कब लागू होगी ?
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 अभी इतनी जल्दी लागू होने वाली नहीं है। सरकार ने खुद राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सुझावों को पूरी तरह से लागू करने के लिए 2040 का टारगेट रखा है। हालांकि, इसके कई सुझाव आने वाले दो-तीन सालों में लागू हो सकते हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के फाइनल ड्राफ्ट में कहा गया है कि 2040 तक भारत के लिए एक ऐसी शिक्षा प्रणाली का लक्ष्य होना चाहिए, जहां किसी भी सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने वाले शिक्षार्थियों को समान रूप से सर्वोच्च गुणवत्ता की शिक्षा उपलब्ध हो।
शिक्षा नीति को लागू करने के लिए फंड अहम है, इसलिए असल दिक्कत इसे लागू करने में होगी। 1968 में बनी पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति फंड के अभाव की वजह से पूरी तरह से लागू नहीं हो पाई थी।
यूजीसी को खत्म कर रेगुलेटरी बॉडी का क्या है स्वरूप ?
नई शिक्षा नीति में यूजीसी, एनसीटीई और एआईसीटीई को खत्म करके एक रेगुलेटरी बॉडी बनाई जाएगी। हालांकि, अभी यह नहीं बताया गया है कि इस नियामक बॉडी का स्वरूप कैसा होगा।
कॉलेजों को स्वायत्ता (ग्रेडेड ओटोनॉमी) देकर 15 साल में विश्वविद्यालयों से संबद्धता की प्रक्रिया को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा। उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए कॉमन एंट्रेंस एग्जाम होगा। यह संस्थान के लिए अनिवार्य नहीं होगा। राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी यह परीक्षा कराएगी।