नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने भारत को आज़ादी दिलाने में इतना बड़ा योगदान दिया था कि अगर वह आज़ादी के समय जिंदा होते तो वह भारत के प्रथम प्रधानमंत्री ज़रूर होते। नेता जी बड़े ही शांत स्वभाव तथा बुद्धजीवी व्यक्ति थे। इसका प्रमाण यह है कि जब तक नेता जी जिंदा थे तब तक कांग्रेस पार्टी एकमत थी।
अधिकतर लोग यह मानते हैं कि पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ उनके रिश्ते अच्छे नहीं थे, पर यह वहम है। नेता जी और जवाहर लाल नेहरू बड़े ही अच्छे मित्र थे। यहाँ तक कि मोहम्मद अली जिन्ना का संबन्ध गांधी जी के साथ अच्छा नहीं था पर नेता जी के साथ उनके संबध बड़े ही महफूज़ थे और वह जिंदा होते तो शायद हिंदुस्तान का बंटवारा भी ना हो पाता।
गांधी जी के सम्मान के लिए सुभाष चन्द्र बोस ने अध्यक्ष पद त्याग दिया
इसकी वजह यह है कि नेता जी की बात पार्टी के लोग तो मानते ही थे, उनके अलावा जनता उनको बेहद ही पसन्द करती थी और जब जनता जिसके साथ होती है जीत उसी नेता की होती है। नेता जी का ओहदा यहाँ तक बढ़ गया था कि 1939 में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद हेतु चुनाव होने थे। एक तरफ गांधी जी ने पट्टाभि सीतारमैया को खड़ा किया था तो दूसरी तरफ नेता जी सुभाष चन्द्र बोस थे। इस चुनाव में एक तरफा जीत नेता जी की हो गई और इससे साफ ज़ाहिर होता है कि कांग्रेस पार्टी के अधिकतर लोग गांधी जी से अधिक सुभाष चन्द्र बोस पर भरोसा करना शुरू कर दिये थे।
तभी गांधी जी ने यह बयान दिया कि “पट्टाभि सीतारमैया की हार मतलब मेरी हार है“। यह सुनते ही सुभाष चन्द्र बोस ने अध्यक्ष पद त्याग दिया क्योंकिं नेता जी गांधी जी को अपना गुरु मानते थे और उनके सम्मान के लिए उन्होंने यह कदम उठाया। अगर वह उस दिन अध्यक्ष बन जाते तो कांग्रेस पार्टी की तकदीर बदल जाती साथ ही भारत आज के समय से काफी आगे होता। बहरहाल, इसके बाद सुभाष चन्द्र बोस भारत से जर्मनी गए वहां हिटलर से मिले। नेता जी ने हिटलर के सामने अपनी आर्मी बनाने का प्रस्ताव रखा और इसे लेकर दोनों के बीच काफी बातचीत हुई।
नेता जी सुभाष चन्द्र बोस से प्रभावित होकर हिटलर ने सौंप दी थी अपनी आर्मी
नेता जी की बातों से हिटलर काफी प्रभावित हुआ जिसके चलते उसके पास जितने “प्रिसनर्स ऑफ़ वॉर” थे वह सब सुभाष चन्द्र बोस को दे दिये ताकि आर्मी बनाने में मदद मिल सके। इसके बाद नेता जी जापान गये और यहाँ पर “आज़ाद हिन्द फौज़” की स्थापना की। अब यहाँ से शुरू होता है कि कैसे नेता जी का अंत नज़दीक आ रहा था।
वहीं जापान नेता जी का साथ दे रहा था। 1945 में वह सिंगापुर में थे उनको जापान जाना था क्योंकि ब्रिटिश सेना के सामने जापान ने सरेंडर कर दिया था और उसके बाद ब्रिटिश सेना सिर्फ नेता जी को ढूंढ रही थी। अब नेता जी रवाना हुए, वह सिंगापुर से बैंकाक और बैंकाक के बाद “साईगोन” पहुंचे जो कि वियतनाम का शहर है।
उसके बाद ताइवान पहुँचे और यहीं पर सुभाष चन्द्र बोस का हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो गया, ऐसा माना जाता है। अब 18 अगस्त 1945 को उनका प्लेन जब दुर्घटनाग्रस्त हुआ उसके पहले क्या हुआ यह भी जानना ज़रूरी है। अब नेता जी ताइवान से जापान जाने के लिए एयरपोर्ट पहुंचे तो उनकी आज़ाद हिन्द फौज़ तथा उनके समर्थक विदा करने एयरपोर्ट आए थे। इसी में नेता जी के सचिव “एस ए अय्यर” तथा उनके बेहद करीबी और आर्मी कर्नल “हबीब-उर-रहमान” मौजूद थे। अब यहाँ बताया क्या कि प्लेन में आज़ाद हिन्द फौज़ का सिर्फ एक ही सदस्य जा सकता है।
नेताजी के प्लेन में इंजन में तकनीकी गड़बड़ी से हुआ था धमाका
यह सुनने के बाद नेता जी ने आपत्ति जताई लेकिन उसके बाद उन्होंने अपने करीब “हबीब-उर-रहमान” को अपने साथ ले जाने का फैसला किया। ऐसा कहा जाता है कि हवाई जहाज़ के इंजन में पहले से ही कुछ तकनीकी कमियां थीं लेकिन फिर भी उस हवाई ज़हाज़ में नेता जी को बैठाया गया और जैसे ही हवाई जहाज़ ने उड़ान भरी तभी इंजन में तकनीकी गड़बड़ी हो गई और प्लेन उसी जगह दो भागों में बंटते ही बहुत ही तेज़ धमाका हुआ। इस धमाके में पायलट तथा कुछ लोगों जो नेता जी के साथ थे उनकी भी जान चली गई। इस धमाके में उनके करीबी हबीब-उर-रहमान जो कि उनके साथ जा रहे थे वह बच गए और उन्होंने बताया कि सुभाष चन्द्र बोस के शरीर में आग लग चुकी थी।
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उन्होंने नेता जी को बचाने के लिए सारी कोशिशें की जिसमें उनका भी हाथ जल गया परन्तु वह बचा ना सके और देखते ही देखते नेता जी का शरीर जल गया। उनको अस्पताल भी ले जाया गया लेकिन तब तक उनकी सांसे थम चुकी थी और इसी के साथ हिंदुस्तान ने 18 अगस्त 1945 को नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जैसा महान व्यक्ति को खो दिया।
इसके बाद नेता जी का जापान में ही अंतिम संस्कार किया गया और 23 अगस्त 1945 जापानी न्यूज एजेंसी “डॉमि” ने नेता जी की खबर को दुनिया के सामने प्रसारित किया कि नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का हवाई जहाज़ दुर्घटना ग्रस्त हो गया है जिसके चलते सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु हो गई है।
नेताजी के ज़िंदा होने की अलग अलग धारणाएं
यह खबर फैलते ही पूरी दुनिया हैरान हो गई तो वहीं भारत में लोगों को यकीन ही नहीं हो रहा था कि उन्होंने अपने प्रिय नेता जी को खो दिया है। अब इसके पीछे बहुत से सवाल हैं जिनमें से प्रमुख ऐसे हैं कि जब नेता जी की मृत्यु हुई तो उनका शव किसी ने नहीं देखा? उनकी अंतिम क्षणों की तस्वीर भी साफ नहीं थी। साथ ही कुछ मिथ ये भी कहतें हैं कि नेता जी को अंग्रेजों ने पकड़ लिया और बहुत प्रताड़ित किया।
कई मिथ यह कहतें हैं कि कई लोगों ने नेता जी से बात भी की है और वह वापस भारत आए थे और कई यह भी कहते है कि नेता जी का मकसद भारत को आज़ादी दिलाना था तो वह मिल गई अब उसके बाद वह ध्यान में विलीन हो गए हैं और “साधु” बन गये हैं। तो अधिकतर लोगों का यही मानना है कि सुभाष चन्द्र बोस जिंदा थे और जापान में रखीं अस्थियां उनकी नहीं है।
बोस के परिवार ने भी कई बार यह जापान से कहा है कि अस्थियों का अगर DNA टेस्ट हो जाए तो जितने भ्रम आज जो फैले हैं उनमें विराम लग जाएगा। लेकिन जापान ऐसा करने नहीं दे रहा है। अब जापान मना क्यों कर रहा यह भी सवाल है। तो ऐसे कई अनसुलझे सवालों की झड़ियाँ हैं जिनका अंत 75 सालों के बाद भी नहीं हो पाया है। देखना यही होगा कि आखिर कब तक नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की मौत की गुत्थी सुलझ पाती है।
यशस्वी सिंह (मीडिया छात्र),
इलाहाबाद विश्विद्यालय