- वृंदावन कुंभ : शाही स्नान, संतों ने निकाली शाही पेशवाई - वृंदावन नगरी : कुंभ पूर्व वैष्णव बैठक का पहला शाही स्नान व शाही पेशवाई सम्पन्न
मथुरा जिले की वृंदावन नगरी में कुंभ पूर्व वैष्णव बैठक का पहला शाही स्नान एवं शाही पेशवाई शनिवार को की गई। इसमें वैष्णव महंत एवं संतजनों ने शाही स्नान घाट पर स्नान किया। शाही अंदाज में श्रीमहंत एवं संतों ने पेशवाई (शोभायात्रा) निकाली।
कड़़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच निकली शाही पेशवाई में शामिल महंत एवं संतों का भक्तों ने जगह-जगह पुष्प वर्षा कर स्वागत किया। खिलाड़ी संतों ने शस्त्रों से करतब दिखाए। वृंदावन में 12 वर्ष के अन्तराल में आयोजित होने वाले इस संत समागम में हर कोई भक्ति में रंग में रंगा नजर आया।
सुबह करीब 9ः30 बजे तीनों अनी अखाड़े और चतुः संप्रदाय की अगुवाई में विधिवत पूजन कर शोभायात्रा निकाली गई। कुंभ पूर्व वैष्णव बैठक क्षेत्र में यमुना किनारे स्थित श्री देवराहा बाबा घाट से शोभायात्रा का शुभारंभ हुआ। सबसे आगे अनी अखाड़ों के संस्थापक बालनंदाचार्य के छाया चित्र को रथ पर विराजमान कराया गया। शोभा यात्रा के दौरान वैष्णव संप्रदाय के नागा साधुओं ने पटेबाजी प्रदर्शन किया।
धूम धाम से हुआ शोभायात्रा का शुभारंभ
शोभा यात्रा के स्वागत में जगह-जगह द्वार बनाए गए हैं। शहरवासी संतों पर फूल बरसा कर स्वागत कर रहे थे। ये शोभायात्रा विभिन्न रास्तों से गुजरते हुए दोपहर 12 बजे के बाद कुंभ स्थल स्थित यमुना के तट पर बने शाही घाट पहुंची। बैंडबाजे के साथ ऊंट-घोड़ा और घोड़ा-बग्गी पर सवार होकर साधु-संत निकले।
सिंहपौर हनुमान मंदिर के महंत सुंदरदास महाराज ने बताया कि वृंदावन में कुंभ की परंपरा भिन्न है। यहां केवल वैष्णव साधु ही कुंभ में सहभागिता करते हैं। हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयागराज के कुंभ में वैष्णव, शैव समेत सभी संप्रदाय के संतों की मौजूदगी होती है।
वृंदावन ही ऐसा कुंभ है, जहां शाही स्नान से पूर्व निकलने वाली पेशवाई में देवालयों को भी शामिल किया जाता है। देवालयों को पूरे सम्मान के साथ स्थान भी दिया जाता है। कुंभ के चार शाही स्नान की पेशवाई में संतों के साथ देवालयों के भी डोले निकलते हैं।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के ब्रज मंडल के अध्यक्ष हरिशंकर दास नागा ने बताया कि कुंभ महा पर्व हो या कुंभ पूर्व वैष्णव बैठक, इस शाही पेशवाई का इनमें विशेष महत्व है। शाही अंदाज में पेशवाई निकलने के बाद ही कुंभ क्षेत्र में पहुंचने पर निशान स्नान उसके बाद तीनों अनी और उनके अखाड़ों, सम्प्रदायों के श्रीमहंत एवं संत जन शाही स्नान करेंगे।
यह धर्म परंपरा अनादिकाल से चल रही है। परंपराओं को वैष्णव संत महंत एवं भक्तों द्वारा निर्वाह किया जा रहा है। यही भारतीय सनातन धर्म का मूल दर्शन है।
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