26.1 C
New Delhi
September 8, 2024
विचार

कोशिश करो, तभी बनेगा भारत आत्मनिर्भर

चीन से सीमा पर भीषण झड़प के बाद से देश में एक माहौल बन रहा है कि अब अपने शत्रु देश चीन से आयात बंद किया जाए। चीन पर निर्भरता खत्म की जाए। यह  बात दीगर है कि कुछ निराशावादियों को लगता है कि यह मुमकिन ही नहीं है। ये अपने पक्ष में तमाम कमजोर तर्क और कुतर्क देने लगते हैं। इन्हें देश के आत्म सम्मान से वैसे भी कोई लेना देना नहीं है। और तो और, इन्हें नहीं पता है कि सरकार और निजी क्षेत्र अपने स्तर पर चीन का बहिष्कार करने के लिए भरसक प्रयासों में भी लगी है। पहले बात करते हैं देश की सड़क परियोजनाओं की। सरकार की सड़कों  को बनाने के लिए अब ऐसी किसी भी कंपनी को ठेका नहीं दिया जाएगा जिनकी साझेदार कोई चीनी कंपनी है।

केंद्रीय सड़क परिवहनराजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि हमलोगों ने यह सख़्त स्टैंड लिया है कि अगर चीनी कंपनियां किसी ज्वाइंट वेंचर्स के ज़रिए भी हमारे देश में आना चाहती हैं तो हम इसकी इजाज़त नहीं देंगें

देश में फ़िलहाल केवल कुछ ही परियोजनाएं इस तरह की हैं जिनमें चीनी कंपनियां हिस्सेदार हैं। लेकिन, उनको ये कई टेंडर पहले मिले थे। इसी के साथ लद्दाख के गलवान घाटी में चीन की करतूत के बाद भारतीय रेलवे भी उसे सबक सिखाने में जुट गया है। भारतीय रेलवे ने एक चीनी कंपनी से अपना एक करार खत्म कर दिया है। 2016 में चीनी कंपनी से 471 करोड़ का करार हुआ थाजिसमें उसे 417 किलोमीटर लंबे रेल ट्रैक पर सिग्नल सिस्टम लगाना था। इससे पहले सरकार ने बीएसएनएल और एमटीएमएल को निर्देश दिया था कि वो भी चीनी उपकरणों का इस्तेमाल कम करें। आईटी एवं इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय ने भारत में प्रचलित चीन के 59 एपों पर प्रतिबंध लगा ही दिया है। इनमें टिकटॉकहेलोवीचैटयूसी न्यूज आदि तमाम चीन के एप भारत की संप्रभुताअखंडता व सुरक्षा को लेकर पूर्वाग्रह रखते थे। ऐसे मेंसरकार ने आईटी एक्ट के 69ए सेक्शन के तहत इन 59 एपों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। दरअसल सरकार को इन एपों के गलत इस्तेमाल को लेकर लगातार कई शिकायतें भी मिल रही थी।

अगर सरकार चीन को सबक सिखाने के लिए कमर कस चुकी हैतो देश का निजी क्षेत्र भी कहां पीछे रहने वाला है। देश की प्रमुख स्टील कंपनी जिंदल साउथवेस्ट (जेएसडब्ल्यू)ने चीन से आयात को खत्म करने का फैसला किया है। जेएसड्ब्यू चीन से अपनी स्टील फैक्ट्रियों की भट्टियों के लिए कच्चा माल लेता है। अब कंपनी ने ये सामान ब्राजील और तुर्की से मंगवाने का फैसला किया है।

एक बात साफ है कि अगर विकल्प खोजें जाए तो मिलगे ही । हमें चीन से आगे भी सोचना होगाचलना होगा। देश का आटो सेक्टर भी चीन से कच्चे माल का भारी आयात करता है। उसका लगभग 40 फीसद कच्चा माल चीन से ही आता है। उसे भी अब अन्य विकल्प तलाश करने होंगे। चीनचीन करने वालों को सीमा पर देश के वीरों के बलिदान को भी तो याद रखना ही होगा। अगर हम चीन की तमाम हरकतों को नजरअँदाज करते हुए भी उससे आयात जारी रखते हैं, तो हम एक तरह से अपने शहीदों का अपमान ही तो करेंगे।

जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश को आत्म निर्भर बनने का आहवान किया है तब से कुछ सेक्युलरवादी परम ज्ञानी यह भी कहने लगे है कि चीन से आयात किए बिना तो हमारी फार्मा कंपनियां सड़कों पर आ जाएंगी। भारत की जो दवा कंपनियां जेनेरिक दवाएं बनाती हैंवे 80 फ़ीसदी एक्टिव फ़ार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट्स (एपीआई) चीन से ही आयात करती है। एपीआई यानी दवाओं का कच्चा माल। भारत में एपीआई का उत्पादन बेहद कम है इसे तेजी से बढ़ाना होगा । अब भारत की फार्मा कंपनियों को भी एपीआई तबतक अन्य देशों से लेने के विकल्प खोजने होंगे जबतक कि हम स्वयं एपीआई के उत्पादन में स्वावलंबी नहीं हो जाते

 सच में ये शर्मनाक है कि हर साल अरबों रुपया कमाने वाली फार्मा कंपनियां चीन पर इस हद तक निर्भर है। तो उनकी अपनी उपलब्धि क्या है क्यों नहीं उन्होंने निवेश किया खुद एपीआई के निर्माण में । उन्होंने अपने को आत्मनिर्भर बनने की चेष्टा ही नहीं की। ये तब है जब ये किसी भी गंभीर रोग की दवा या वैक्सीन ईजाद करने में तो वे विफल ही रही है।

सच में कमियां हमारी भी रही हैं। हमने अपने को काहिल बना लिया है। क्या सारा देश बीते कई सालों से मेड इन चाइना दिवाली नहीं मना रहा हैभारत में हर साल दिवाली पर हजारों करोड़ रुपये की चीनी लाइट्स,पटाखेदेवीदेवताओं की मूर्तियां वगैरह भारी मात्रा में आयात की जाती हैं। क्या ये भी बनाने में हम असमर्थ हैलानत है। अगर हम चीन में बनी लाइट्स का आयात करना बंद कर दें तो स्वदेशी माल की खपत बढ़ेगी। गरीब कुम्भ्कारों की रोजीरोटी पुनर्जीवित हो उठेगी। पर हमने इस बाबत सोचा कब। कुल मिलाकर हमारे यहां मिठाई को छोड़कर सब कुछ चीन से ही तो आ रहा था।

उद्योग और वाणिज्य संगठन एसोचैम का दावा है कि दिवाली पर मेड इन चीन सामान की मांग 40 फीसद प्रति साल की दर से बढ़ रही है। कहना न होगा कि इसके चलते भारत के घरेलू उद्योगों पर भारी दुष्प्रभाव पड़ रहा है। हजारों बंद हो गए और लाखों लोग बेरोजगार हो गए होंगे। याद करें कि चीन से चालू सीमा विवाद से पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश को दुनिया का बड़ा मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना चाहते थे। पर हमने उनके आहवान पर कायदे से गौर ही नहीं किया। हालांकि भारत के पास कौशल (स्किल) है, प्रतिभा ( टैलेंट) हैअनुशासन  (डि‍सि‍पलीन)भी है।

जब चीन भारतीय बाजारों में अपना घटिया सामान भरने लगा था, तभी ही हमें समझ जाना चाहिए था। पर हम नहीं सुधरे। यह काम सिर्फ सरकार को ही नहीं करना था। इसे सारे देश को करना था। आखिर अब तो कम से कम हमारी आंखें खुलीं। भारत-चीन के बीच दोतरफा व्यापार लगभग 100 अरब रुपये का है। यह लगभग पूरी तरह से चीन के पक्ष में है। धूर्त चीन के साथ हम इतने बड़े स्तर  का आपसी व्यापार नहीं कर सकते। उससे हमें कई स्तरों पर लोहा लेना होगा। उसी क्रम में एक रास्ता यह है कि हम उससे होने वाला आयात बंद करें।

-आर. के. सिन्हा

Related posts

Suhasini Ganguly: आजादी की जंग में जेल में गुज़ारी थी अपनी पूरी जिंदगी

Buland Dustak

मधुमक्खी पालन: रानी मधुमक्खी 1 बार गर्भधारण कर देती है 15 लाख अंडे

Buland Dustak

कोयला संयंत्रों के बजाय Renewable Energy की ओर बढ़ाएं कदम

Buland Dustak

विश्व वन्यजीव दिवस: जैव विविधता पर मंडराता खतरा

Buland Dustak

एयर इंडिया टाटा ग्रुप के सुपुर्द, अब होगा हवाई अड्डों का कायाकल्प

Buland Dustak

Krishnammal Jagannathan: आजादी के आंदोलन में सामाजिक न्याय की प्रतिमूर्ति

Buland Dustak