35.1 C
New Delhi
April 20, 2024
विचार

शिक्षक दिवस: शिक्षकों के सामने ‘नया भारत’ बनाने की चुनौती

शिक्षक मनुष्य का निर्माता है। एक शिक्षक की भूमिका बच्चों को साक्षर करने से ही खत्म नहीं हो जाती बल्कि वह अपने छात्रों में आत्मबल, आदर्श, नैतिक बल, सच्चाई, ईमानदारी, लगन और मेहनत की वह मशाल भी जलाता है जो उसे पूर्ण मनुष्य बनाते हैं। – सर जान एडम्स

जब हर रिश्ते को बाजार की नजर लग गयी है, तब गुरू-शिष्य के रिश्तों पर इसका असर न हो ऐसा कैसे हो सकता है? नए जमाने के नए मूल्यों ने हर रिश्ते पर बनावट, नकलीपन और स्वार्थों की एक ऐसी चादर डाल दी है, जिसमें असली सूरत नजर नहीं आती। अब शिक्षा बाजार का हिस्सा है, जबकि भारतीय परंपरा में वह गुरु के अधीन थी, समाज के अधीन थी।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने शिक्षकों से कुछ विशिष्ठ अपेक्षाएं की हैं और उनके निरंतर प्रशिक्षण और उन्मुखीकरण पर भी जोर दिया है। ऐसे समय में जब भारत अनेक क्षेत्रों में प्रगति की ओर अग्रसर है, हमारे अध्यापकों की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है क्योंकि उनके जिम्मे ही श्रेष्ठ, संवेदनशील और देश भक्त युवा पीढ़ी के निर्माण का दायित्व है।

शिक्षक

शिक्षा के बाजार में चार तरह का भारत हो रहा है तैयार

पूंजी के शातिर खिलाड़ियों ने जब से शिक्षा के बाजार में अपनी बोलियां लगानी शुरू की हैं तब से हालात बदलने शुरू हो गए थे। शिक्षा के हर स्तर के बाजार भारत में सजने लगे थे। इसमें कम से कम चार तरह का भारत तैयार हो रहा था। आम छात्र के लिए बेहद साधारण सरकारी स्कूल थे जिनमें पढ़कर वह चौथे दर्जे के काम की योग्यताएं गढ़ सकता था।

फिर उससे ऊपर के कुछ निजी स्कूल थे जिनमें वह बाबू बनने की क्षमताएं पा सकता था। फिर अंग्रेजी माध्यमों के मिशनों, शिशु मंदिरों और मंझोले व्यापारियों की शिक्षा थी जो आपको उच्च मध्य वर्ग के करीब ले जा सकती थी। और सबसे ऊपर एक ऐसी शिक्षा थी जिनमें पढ़ने वालों को शासक वर्ग में होने का गुमान, पढ़ते समय ही हो जाता है। इस कुलीन तंत्र की तूती ही आज समाज के सभी क्षेत्रों में बोल रही है।

इस पूरे चक्र में कुछ गुदड़ी के लाल भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं, इसमें दो राय नहीं किंतु हमारी व्यवस्था ने वर्ण व्यवस्था के हिसाब से ही शिक्षा को भी चार खानों में बांट दिया है और चार तरह के भारत बनाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। जाहिर तौर पर यह हमारी एकता- अखंडता और सामाजिक समरसता के लिए बहुत घातक है।

नई पीढ़ी में दिखता है भ्रमित जानकारी या कच्चापन

ऐसे कठिन समय में शिक्षक समुदाय की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है। क्योंकि वह ही अपने विद्यार्थियों में मूल्य व संस्कृति प्रवाहित करता है। आज नई पीढ़ी में जो भ्रमित जानकारी या कच्चापन दिखता है, उसका कारण शिक्षक ही हैं। क्योंकि अपने सीमित ज्ञान, कमजोर समझ और पक्षपातपूर्ण विचारों के कारण वे बच्चों में सही समझ विकसित नहीं कर पाते। इसके कारण गुरु के प्रति सम्मान भी घट रहा है।

आम आदमी जिस तरह शिक्षा के प्रति जागरूक हो रहा है और अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने के आगे आ रहा है, वे आकांक्षांए विराट हैं। उनको नजरंदाज करके हम देश का भविष्य नहीं गढ़ सकते। सबसे बड़ा संकट आज यह है कि गुरु-शिष्य के संबंध आज बाजार के मानकों पर तौले जा रहे हैं।

युवाओं का भविष्य जिन हाथों में है, उनका बाजार तंत्र किस तरह शोषण कर रहा है इसे समझना जरूरी है। इसके चलते योग्य लोग शिक्षा के क्षेत्र से पलायन कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि जीवन को ठीक से जीने के लिए यह व्यवसाय उचित नहीं है।

नई पीढ़ी बहुत जल्दी और ज्यादा पाने की होड़ में

शहरों में पढ़ रही नई पीढ़ी की समझ और सूचना का संसार बहुत व्यापक है। उसके पास ज्ञान और सूचना के अनेक साधन हैं जिसने परंपरागत शिक्षकों और उनके शिक्षण के सामने चुनौती खड़ी कर दी है। नई पीढ़ी बहुत जल्दी और ज्यादा पाने की होड़ में है। उसके सामने एक अध्यापक की भूमिका बहुत सीमित हो गयी है। नए जमाने ने श्रद्धाभाव भी कम किया है। उसके अनेक नकारात्मक प्रसंग हमें दिखाई और सुनाई देते हैं।

गुरु-शिष्य रिश्तों में मर्यादाएं टूट रही हैं, वर्जनाएं टूट रही हैं, अनुशासन भी भंग होता दिखता है। नए जमाने के शिक्षक भी विद्यार्थियों में अपनी लोकप्रियता के लिए कुछ ऐसे काम कर बैठते हैं जो उन्हें लांछित ही करते हैं। सीखने की प्रक्रिया का मर्यादित होना भी जरूरी है।

परिसरों में संवाद, बहसें और विषयों पर विमर्श की धारा लगभग सूख रही है। परीक्षा को पास करना और एक नौकरी पाना इस दौर की सबसे बड़ी प्राथमिकता बन गयी है। ऐसे में शिक्षकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती इस पीढ़ी की आकांक्षाओं की पूर्ति करने की है।

साथ ही उनमें विषयों की गंभीर समझ पैदा करना भी जरूरी है। शिक्षा के साथ कौशल और मूल्यबोध का समावेश न हो तो वह व्यर्थ हो जाती है। इसलिए स्किल के साथ मूल्यों की शिक्षा बहुत जरूरी है।

कारपोरेट के लिए पुरजे और रोबोट तैयार करने के बजाए अगर हम उन्हें मनुष्यता, ईमानदारी और प्रामणिकता की शिक्षा दे पाएं और स्वयं भी खुद को एक रोलमाडल के प्रस्तुत कर पाएं तो यह बड़ी बात होगी। शिक्षक अपने विद्यार्थियों के लिए एक दोस्त, दार्शनिक और मार्गदर्शक के रूप में सामने आते है। वह उसका रोल माडल भी हो सकते हैं।

Also Read: Yoga Break App: काम के बीच चाय ब्रेक से अच्छा है योग ब्रेक लेना
शिक्षक दिवस विशेष: शिक्षक ही राष्ट्र निर्माता हैं

आज के समय में युवा और छात्र समुदाय एक गहरे संघर्ष में है। उसके जीवन की चुनौतियों काफी कठिन है। बढ़ती स्पर्धा, निजी क्षेत्रों की कार्यस्थितियां, सामाजिक तनाव और कठिन होती पढ़ाई युवाओं के लिए एक नहीं कई चुनौतियां है।

कई तरह की प्राथमिक शिक्षा से गुजर कर आया युवा उच्च शिक्षा में भी भेदभाव का शिकार होता है। भाषा के चलते दूरियां और उपेक्षा है तो स्थानों का भेद भी है। अंग्रेजी के चलते हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के छात्रों की हीनभावना तो चुनौती है ही।

आज के युवा के पास तमाम चमकती हुयी चीजें भी हैं, जो जाहिर है सबकी सब सोना नहीं हैं। उसके संकट हमारे-आपसे बड़े और गहरे हैं। उसके पास ठहरकर सोचने का अवकाश और एकांत भी अनुपस्थित है। मोबाइल और मीडिया के हाहाकारी समय ने उसके स्वतंत्र चिंतन की दुनिया भी छीन ली है।

वह सूचनाओं से आक्रांत तो है पर काम की सूचनाएं उससे कोसों दूर हैं। ऐसे कठिन समय में वह एक बेरहम समय से मुकाबला कर रहा है। बताइए उसे इन सवालों के हल कौन बताएगा? जाहिर तौर पर शिक्षा के क्षेत्र को बचाने की जिम्मेदारी आज शिक्षक समुदाय पर है।

शिक्षक ही राष्ट्र निर्माता हैं और इसलिए आज की चुनौतियों से लड़ने तथा अपने विद्यार्थियों को तैयार करने की जिम्मेदारी हमारी ही है। शिक्षक दिवस पर यह संकल्प अध्यापकों व विद्यार्थियों को ही लेना होगा तभी शिक्षा का क्षेत्र नाहक तनावों से बच सकेगा।

भारत निश्चय ही एक नई करवट ले रहा है

गुरु-शिष्य परंपरा को समारोहों में याद की जाने वाली वस्तु के बजाए अगर हम उसकी सही तस्वीरें गढ़ सकें तो यह बड़ी बात होगी। किंतु देखा यह जा रहा है गुरु तो गुरूघंटाल बन रहे हैं और छात्र तोल-मोल करने वाले माहिर चालबाज।

काम निकालने के लिए रिश्तों का इस्तेमाल करने से लेकर रिश्तों को कलंकित करने की कथाएं भी हमारे सामने हैं, जो शर्मसार भी करती हैं और चेतावनी भी देती है। नए समय में गुरु का मान-स्थान बचाए और बनाए रखा जा सकता है, बशर्ते हम विद्यार्थियों के प्रति एक ईमानदार सोच रखें, मानवीय व संवेदनशील व्यवहार रखें, उन्हें पढ़ने के बजाए समझने की दिशा में प्रेरित करें, उनके मानवीय गुणों को ज्यादा प्रोत्साहित करें।

भारत निश्चय ही एक नई करवट ले रहा है, जहां हमारे नौजवान बहुत आशावादी होकर अपने शिक्षकों की तरफ निहार रहे हैं, उन्हें सही दिशा मिले तो आसमान में रंग भर सकते हैं।

हमारे युवा भारत में इस समय दरअसल शिक्षकों का विवेक, रचनाशीलता और कल्पनाशीलता भी कसौटी पर है। क्योंकि देश को बनाने की इस परीक्षा में हमारे छात्र अगर फेल हो रहे हैं तो शिक्षक पास कैसे हो सकते हैं?

Related posts

भारतीय रक्षा क्षेत्र को मजबूत करेगी DRDO की Advanced Chaff Technology

Buland Dustak

डॉ. कलाम का आत्मनिर्भर भारत

Buland Dustak

सावित्रीबाई फुले का आदर्श जीवन सम्पूर्ण सभ्यता के लिए महान प्रेरणा

Buland Dustak

आधुनिक-प्राकृतिक खेती और प्रदूषित होती धरती का मर्म

Buland Dustak

मधुमक्खी पालन: रानी मधुमक्खी 1 बार गर्भधारण कर देती है 15 लाख अंडे

Buland Dustak

जांबाज स्वतंत्रता सेनानियों में से एक बंगाल की वीरांगना थीं-बूढ़ी गांधी

Buland Dustak