-दुनिया के सबसे बड़े व्यापार समझौते में भारत के बाहर रहने की ये है वजह
नई दिल्ली: दुनिया के सबसे बड़े व्यापार समझौते पर चीन सहित एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 15 देशों ने हाल ही में हस्ताक्षर किए हैं। इन देशों के बीच क्षेत्रीय वृहद आर्थिक भागीदारी (RCEP) करार हुआ है। इस समझौते में भारत शामिल नहीं है। हालांकि, इन देशों ने उम्मीद जताया कि इस समझौते से कोविड-19 महामारी के झटकों से उबरने में मदद मिलेगी। साथ ही RCEP पर 10 देशों के दक्षिणपूर्व एशियाई राष्ट्रों के संगठन (आसियान) के वार्षिक शिखर सम्मेलन के समापन के बाद वर्चुअल तरीके से हस्ताक्षर किए गए। भारत में इस बात पर चर्चा है कि आखिर भारत आरसेप में शामिल क्यों नहीं हुआ और इस फैसले का भारत पर क्या असर होगा।
आरसीईपी समझौते में भारत शामिल नहीं होकर एक तरह से अच्छा ही किया है। क्योंकि, इसमें शामिल होने से चीन और बांग्लादेश के मुकाबले भारत के स्थानीय व्यापार तबाह हो जाते। उन्होंने कहा कि खासकर दूध, साईकिल और वस्त्र उद्योग पूरी तरह से चौपट हो जाता। मालवीय ने कहा कि इस समझौते के अंतर्गत आरसीईपी में शामिल देश अपना समान यहां डंप करते, जिसकी वजह से यहां का लोकल व्यापार इन देशों के सस्ते उत्पाद के सामने नहीं टिक पाता।
भारत पिछले साल ही समझौते की बातचीत से पीछे हट गया था, क्योंकि समझौते के तहत शुल्क समाप्त होने के बाद देश के बाजार आयात से पट जाएंगे, जिससे स्थानीय उत्पादकों को भारी नुकसान होता। मालवीय ने बताया कि समझौते के तहत अपने बाजार को खोलने की अनिवार्यता की वजह से घरेलू स्तर पर विरोध की वजह से भारत इससे बाहर निकल गया था। वैसे भी RCEP में चीन प्रभावशाली भूमिका में है।
जानिए क्या है आरसीईपी
आरसेप के तहत सभी सदस्य देशों के लिए टैरिफ कटौती पर एक जैसे ही मूल नियम होंगे। इसका मतलब ये है कि वस्तुओं के आयात और निर्यात के लिए तय प्रक्रियाएं कम होंगी। इससे कारोबार में सहूलियत मिलेगी और बहुराष्ट्रीय कंपनियां इस क्षेत्र में निवेश करने के लिए आएंगी। साथ ही इस क्षेत्र को सप्लाई चेन और डिस्ट्रीब्युशन हब के तौर पर विकसित करने में मदद मिलेगी। इसमें व्यापार का एक ही नियम होगा, जिसका फायदा सबको मिलेगा। RCEP का सबसे पहला प्रस्ताव साल 2012 में किया गया था।
आठ साल बाद हुआ समझौता
आरसीईपी का ये समझौता करीब आठ साल तक चली वार्ताओं के बाद पूरा हुआ है। इस समझौते के दायरे में दुनिया की लगभग एक-तिहाई वैश्विक अर्थव्यवस्था आएगी। समझौते के बाद आगामी कुछ साल में सदस्य देशों के बीच कारोबार से जुड़े शुल्क और नीचे आ जाएंगे।
इस समझौते पर हस्ताक्षर हो जाने के बाद इसमें शामिल सभी देशों को RCEP को 2 साल के दौरान अनुमोदित करना अनिवार्य होगा, जिसके बाद यह प्रभाव में आएगा। समझौते के तहत नए टैरिफ साल 2022 से लागू हो जाएंगे, जिसके बाद सभी सदस्य देशों के बीच आयात-निर्यात शुल्क 2014 के स्तर पर पहुंच जाएंगे।
क्या है आरसीईपी के मायने
RCEP करार से सदस्य देशों के बीच व्यापार पर शुल्क और नीचे आएगा। यह पहले ही काफी निचले स्तर पर है। इस समझौते में भारत के फिर से शामिल होने की संभावनाओं को जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा ने कहा कि उनकी सरकार समझौते में भविष्य में भारत की वापसी करने की पूरी संभावना समेत स्वतंत्र एवं निष्पक्ष आर्थिक क्षेत्र के विस्तार को समर्थन देती है और उन्हें इसमें अन्य देशों से भी समर्थन मिलने की उम्मीद है।
चूंकि आयात के लिए चीन एक प्रमुख सोर्स होने के साथ-साथ अधिकतर सदस्य देशों के लिए निर्यातक भी है। ऐसे में माना जा रहा है कि इस समझौते से चीन अब एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में व्यापार नियम को अपने तरीके से प्रभावित कर सकता है। साथ ही चीन का जोर इस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व बढ़ाने पर हो सकता है।
समझौते में शामिल हैं ये देश
इस समझौते में आसियान के दस देशों (इंडोनेशिया, थाईलैंड, सिंगापुर, मलयेशिया, फिलीपींस, वियतनाम, ब्रुनेई, कंबोडिया, म्यांमार और लाओस) के अलावा चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं।
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