-गौरैया के घोंसले बनाने की मुहिम से अब प्रभावित हुये हजारों लोग
हमीरपुर: केन्द्रीय विद्यालय के विज्ञान शिक्षक ने विश्व गौरैया दिवस के दिन गौरैया को बचाने के लिये अब एक मुहिम छेड़ी है, जिससे न सिर्फ हजारों लोग प्रभावित हुये हैं बल्कि 15 हजार से अधिक बच्चों ने गौरैया के घोंसले भी बना डाले हैं। ये शिक्षक बच्चों को गौरैया के घर बनाने का हुनर सिखाकर उन्हें अपनी मुहिम से जोड़ा है।
हमीरपुर जनपद के गोहांड क्षेत्र के मूल निवासी सुशील की पहचान एक पर्यावरणविद के रूप में है। ये केन्द्रीय विद्यालय लखनऊ में विज्ञान शिक्षक भी है। विश्व गौरैया दिवस पर शनिवार को हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत करते हुये उन्होंने कहा कि गौरैया बेहद घरेलू, शर्मीला और मनमोहक पक्षी है। हमसे रूठी हुई गौरैया पुनः हमारे घरों मैं टंगे घोंसले में लौट आती है तो इससे अच्छी बात क्या होगी। इसके लिए कुछ कार्य करने की जरुरत है। सर्वप्रथम अगर गौरैया आपके घर में घोसला बनाए तो उसे बनाने दें उसे हटाए नही। रोजाना अपने आंगन, खिड़की, बाहरी दीवारों पर उनके लिए दाना-पानी रखें।
गौरैया की प्रजाति बचाने के लिए पर्यावरण साफ़ रखना है जरुरी
उन्होंने कहा कि अपने वाहनों की उचित समय पर सर्विसिंग कराएं। जिससे वायु प्रदूषण कम हो और गौरैया को स्वच्छ हवा मिले। गर्मी के दिनों में अपने घर की छत पर एक बर्तन में पानी भरकर रखें। जूते के खाली डिब्बों, प्लास्टिक की बड़ी बोतलों और मटकियों में छेद करके इनका घर बना कर उन्हें उचित स्थानों पर लगाए। हरियाली बढ़ाएं, छतों पर घोंसला बनाने के लिए कुछ जगह छोड़ें और उनके घोंसलों को नष्ट न करें। प्रजनन के समय उनके अंडों की सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए। कीटनाशक का प्रयोग कम करें।
अपने शौक के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि घोंसले बनाने का शौक बचपन से है। जब वे अपने जीवन में शिक्षक बन गये और एक पिता बनकर अपने बच्चों को घोंसले बनाना सिखाने लगे तो यह शौक फिर से जागा। उन्होंने अपने बच्चों के साथ में आसपास रहने वाले और स्कूली बच्चों को विभिन्न कार्यशालाओं के माध्यम से खेल खेल में जीरो लागत वाले घोंसले बनाना सिखाया है। उनके घर के आस पास के घरों के बच्चों ने घोंसले बनाकर अपने घरों में टांगें हैं।
इंसानो की जीवनशैली बानी गौरैया के लिए बाधा
हमारी आधुनिक जीवन शैली गौरैया को सामान्य रूप से रहने के लिए बाधा बन गई। पेड़ों की अन्धाधुन्ध कटाई, खेतों में कृषि रसायनों का अधिकाधिक प्रयोग, यूकेलिप्टिस के पेड़ों का सामाजिक वानिकी के रूप में लगना। टेलीफोन टावरों से निकलने वाली तरंगें, घरों में सीसे की खिड़कियाँ इनके जीवन के लिए प्रतिकूल हैं। साथ ही साथ, जहां कंक्रीट की संरचनाओं के बने घरों की दीवारें घोंसले को बनाने में बाधक हैं। वहीं घर, गाँव की गलियों का पक्का होना भी इनके जीवन के लिए घातक है। क्योंकि ये स्वस्थ रहने के लिए धूल स्नान करना पसंद करती हैं जो नहीं मिल पा रहा है। ध्वनि प्रदूषण भी गौरैया की घटती आबादी का एक प्रमुख कारण है।
बताया कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण गौरैया हमसे दूर होती जा रही है। गौरैया के गायब होने का मतलब है सीधे-सीधे किसानों की पैदावार घटना। सिर्फ सरकार के भरोसे हम इंसानी दोस्त गौरैया को नहीं बचा सकते हैं। इसके लिए हमें आने वाली पीढ़ी विशेषकर बच्चों को हमें बताना होगा की गौरैया अथवा दूसरे विलुप्त होते पक्षियों का महत्व हमारे मनवीय जीवन और पर्यावरण के लिए क्या खास अहमियत रखता है। प्रकृति प्रेमियों को अभियान चलाकर लोगों को मानव जीवन में पशु-पक्षियों के योगदान की जानकारी देनी होगी। इसके अलावा स्कूली पाठ्यक्रमों में हमें गौरैया और दूसरे पक्षियों को शामिल करना होगा। वरना वरना वह दिन दूर नहीं जब गौरैया हमारे आस पास से पूरी तरह गायब हो जायेगी व हम उसे गूगल पर या किताबों मैं देख पाएंगे।
Read more: वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट: खुशहाल देशों की लिस्ट में फिनलैंड शीर्ष पर, भारत 139वें नंबर पर