लखनऊ: शारदीय नवरात्र के पांचवे दिन मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा होती है। इस बार तृतीया और चतुर्थी तिथि एक ही दिन होने के कारण नवरात्र के तीसरे दिन शनिवार को ही मां चंद्रघंटा और माता कूष्माण्डा की एक साथ आराधना की गयी। ऐसे में इस बार चैथे दिन मां स्कंदमाता की पूजा होगी।
नवदुर्गा के पांचवें रूप स्कंदमाता की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। मां भक्त के सारे दोष और पाप दूर कर देती हैं। मां अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।
भगवान स्कंद कुमार कार्तिकेय नाम से भी जाने जाते हैं। ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इन्हीं भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां दुर्गाजी के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।
मां स्कंदमाता का मंत्र-
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
देवी मां स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है। स्कंदमाता को पार्वती एवं उमा के नाम से भी जाना जाता है।
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नवरात्र-पूजन के पांचवें दिन (इस बार चैथे दिन) का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित मन वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाओं एवं चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है।
नवदुर्गा के पांचवे स्वरूप मां स्कंदमाता की अलसी औषधी के रूप में भी पूजा होती है। अलसी औषधि से वात, पित्त, कफ जैसी मौसमी रोग का इलाज होता है। इस औषधि को नवरात्र में माता स्कंदमाता को चढ़ाने से मौसमी बीमारियां नहीं होती। साथ ही स्कंदमाता की आराधना के फल स्वरूप मन को शांति मिलती है।