कोलकाता: पूरे देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर चल रही है और लाखों लोगों की मौत हो चुकी है। चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि अभी दूसरी लहर अपनी पीक पर नहीं पहुंची है, उसके पहले ही इतनी मौतों ने पूरे देश को सदमे में डाल दिया है। इस बीच अभी दूसरी लहर का पीक प्वाइंट आने में देरी है और तब क्या होगा कोई नहीं जानता और वैक्सीनेशन और प्रोटोकॉल का बखूबी पालन किया जाए तो निश्चित तौर पर कोरोना की तीसरी लहर को बेअसर किया जा सकता है। “हिन्दुस्थान समाचार” से विशेष बातचीत के दौरान डॉ. इंद्रनील खान ने कई महत्वपूर्ण सलाह दी है।
उन्होंने बताया कि कई जगह ऐसी चर्चा चल रही है कि कोरोना की तीसरी लहर बच्चों के लिए खतरनाक है लेकिन इससे डरने की जरूरत नहीं। खान ने कहा कि सभी लोगों के बीच वैक्सीनेशन अभियान को गति देनी होगी। इससे ही कोरोना की तीसरी लहर को बेअसर साबित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि किसी भी महामारी की तीसरी-चौथी लहर होती है और इसकी भी होगी।
अभी दूसरी लहर पीक पर नहीं पहुंची है। संभवतः अगस्त के दूसरे सप्ताह के बाद तीसरी लहर की शुरुआत हो सकती है और उससे बचाव का सबसे बेहतर जरिया यही है कि लोग संक्रमितों की संख्या कम होने अथवा मौत का आंकड़ा कम होने पर सावधानी बरतना बंद न करें। जब तक इस महामारी का अंत नहीं हो जाता तब तक हमें शारीरिक दूरी, मास्क सैनिटाइजर और साफ सुथरा तरीके से रहने की अपनी आदत नहीं छोड़नी होगी।
उन्होंने कहा कि तीसरी लहर की शुरुआत से पहले अगर 50 फ़ीसदी आबादी को टीका लग जाता है तो तीसरी लहर को निष्क्रिय करने किया जा सकता है। कोरोना की चपेट में आने वाले भी स्वस्थ होकर हर्ड इम्यूनिटी के तौर पर काम करेंगे।
रोज कम से कम एक करोड़ लोगों के वैक्सीनेशन की जरूरत
खान ने कहा कि भारत की 130 करोड़ की आबादी में अभी तक महज साढ़े 17 करोड़ लोगों को टीका लग सका है। इस समय प्रतिदिन कम से कम एक करोड़ लोगों को टीका लगाने की शुरुआत करनी होगी। डॉक्टर खान ने कहा कि सरकारी और निजी क्षेत्र की संस्थाएं कोरोना रोधी दवाएं विकसित करने के साथ ही वैक्सीनेशन के निर्माण में भी एकजुट तौर पर लगें तो इस लक्ष्य को पूरा कर पाना असंभव नहीं है। भारत बायोटेक और सिरम इंस्टीट्यूट के टीकों के फार्मूले को अन्य दूसरी स्वदेशी कंपनियों के साथ साझा कर तत्काल बड़े पैमाने पर टीके का उत्पादन किया जाना चाहिए।
इस संबंध में डॉ. इंद्रनील ने कहा कि कोविड-19 के खिलाफ कठिन लड़ाई हर हाल में जीतने की जरूरत है क्योंकि हमारे पास हारने का ऑप्शन नहीं है। कोरोना से उपजे कठिन हालात के बीच रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानी डीआरडीओ की ओर से तैयार की गई 2-डीजी नामक दवा भी उम्मीद की एक किरण है। डॉ. रेड्डीज लेबोरेटरीज के सहयोग से विकसित इस दवा को कारगर मानते हुए ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ने इसके उपयोग की मंजूरी भी दे दी है। चूंकि यह एक जेनरिक दवा है, इसलिए इसके व्यापक उत्पादन में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। उत्पादन के साथ यह भी देखना होगा कि वह देशभर में यथाशीघ्र उपलब्ध हो।
बच्चों के लिए क्यों खतरनाक बताई जा रही है तीसरी लहर
कोरोना की तीसरी लहर के आने से पहले विशेषज्ञों ने इसे बच्चों के लिए सबसे खतरनाक बताया है। डॉ. खान ने बताया कि इसकी वजह महामारी का बदला हुआ स्वरूप नहीं है बल्कि हमारी मौजूदा व्यवस्थाएं है। केंद्र सरकार ने फिलहाल तीसरे चरण में 18 साल से अधिक उम्र के लोगों को वैक्सीन लगाने की अनुमति दी है। बच्चों का वैक्सीनेशन फिलहाल नहीं हो रहा है इसलिए कोरोना की तीसरी लहर उन्हीं के लिए घातक मानी जा रही है। हालांकि उन्होंने बताया कि लहर कोई भी हो, घबराने की जरूरत नहीं है।
क्या कहना है उन लोगों का जो कोविड-19 को दे चुके हैं मात
डॉक्टर खान ने महामारी को हराने के लिए जिस सकारात्मकता की बात की है उसकी पुष्टि इस बीमारी को मात देने वाले लोग भी कर रहे हैं। कोलकाता के एक बड़े हिंदी दैनिक अखबार के संपादक रह चुके शिक्षक रामकेश सिंह ने भी अपने अनुभव साझा किए हैं।
उन्होंने बताया है कि जब वह बीमारी की चपेट में आए थे तब कुछ खास लक्षण भी नहीं थे लेकिन डॉक्टरी सलाह और सकारात्मक संबल के साथ वह इसकी चंगुल से निकलने में सफल रहे। उन्होंने बताया कि अमूमन मुझे न तो बुखार हुआ और न सर्दी बल्कि सिर्फ गले में खिचखिच के साथ शुरू हुआ पहले कफ आना और फिर अगले दिन बलगम के साथ लगातार खून के थक्के। तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क किया और फिर उन्होंने दवाएं दी तथा मुझे HRCT थोरेक्स तथा कोविड टेस्ट कराने को कहा।
सीटी स्कैन पता चला कि फेंफड़ों मे संक्रमण है और कोविड पॉजिटिव होने से वह निमोनिया प्रभावित हो गया। डॉक्टर की सलाह पर दवाइयां लेना शुरू किया। छह दिन बाद मेरी स्थिति में सुधार होने लगा और इस दौरान मैं गर्म पानी का भाप लेता रहा। इस दौरान मैंने खुद पर किसी नकारात्मक भाव को हावी नहीं होने दिया।
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