कारगिल विजय दिवस: देश के खातिर हमारे जवानों ने कई युद्ध लड़े हैं और उन्हीं में से एक है “कारगिल युद्ध” जो कि 1999 में पाकिस्तान के खिलाफ हुआ था। इस युद्ध में भारतीय जवानों ने अपने शौर्य का प्रदर्शन किया और पाकिस्तान को हिंदुस्तान के सामने घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया।
कारगिल विजय दिवस की शुरुआत
3 मई1999 में इस युद्ध का आरंभ “कारगिल” स्थान से होता है जो लद्दाख के पास स्थित है। भारतीय सेना ने इस लड़ाई को ऑपरेशन विजय तथा एयरफोर्स ने सफेद सागर का नाम दिया था। सर्द के मौसम में पहाड़ों में बर्फ जमा हो जाती है इस वजह से जनवरी-फरवरी के महीने में पाकिस्तान तथा भारतीय सेना दोनों ही पहाड़ों पर स्थित अपनी चौकियों को छोड़कर नीचे की ओर आ जाते हैं और अप्रैल-मई के महीने में वापस अपनी चौकी पर कब्जा कर लेते हैं।
लेकिन पाकिस्तान ने यहाँ चालाकी दिखाई और 1999 के फरवरी के महीने में वह अपनी चौकियों को छोड़ कर गया नहीं ऊपर से LOC को पार कर भारत की चौकियों पर अपना कब्जा कर लिया था। वहाँ के स्थानीय चरवाहों ने जब यह देखा तो तुरन्त भारतीय सेना को इसकी जानकारी दी और जब सेना की कुछ टुकड़ी यहाँ पहुंची तो यह जानकारी सत्य साबित हुई।
यह भारत के लिए बहुत ही चिंताजनक बात थी क्योंकि यहाँ राष्ट्रीय हाइवे”एनएच 1डी” है जो लेह को श्रीनगर से जोड़ता है। ऐसे में यदि भारतीय सेना उस हाइवे से गुज़र रही हो तो पाकिस्तान भारतीय चौकी का इस्तेमाल कर उस पर हमला कर सकता है।
इन सब मामले को देखते हुए भारतीय वायुसेना ने अपनी कार्यवाही शुरू की और पाकिस्तान ने जिन चौकियों पर कब्जा किया था उस पर ताबड़तोड़ हवाई हमले करने शुरू किए जिससे पाकिस्तानी सेना को काफी नुकसान सहना पड़ा।
यहाँ तक कि -15 तापमान में भारतीय जवानों ने इस युद्ध को बखूबी लड़ा। अधिकतर हमले रात में हुआ करते थे और इन दोनो देशों के बीच करीब 60 दिन तक भीषण युद्ध हुआ। 4 जुलाई को भारतीय सेना ने टाइगर हिल, टोलोलिंग और धीरे-धीरे अन्य चौकियों पर कब्जा करना शुरू किया।
पाकिस्तान ने युद्ध विराम के लिए क्या किया?
भारतीय सेना लगातार पाकिस्तानी सेना को परास्त कर रही थी जिसे देखते हुए यहाँ के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने अमेरिकी राष्ट्रपति “बिल क्लिंटन” से मदद मांगी लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया और सलाह दी कि आप अपनी सेना को वापस बुलाइये।
ऐसे में नवाज़ शरीफ ने यह मानने से ही इंकार कर दिया कि यह इनकी सेना है। उनका कहना था कि ये “मुजाहिद्दीन” हैं जो कश्मीर के लिए लड़ रहे हैं लेकिन जब अमेरिका ने अधिक दबाव बनाया तब जाकर पाकिस्तान ने यह बात मानी कि यह उन्हीं की सेना है और 4 जुलाई को नवाज़ शरीफ ने अपनी सेना को वापस बुलाने का फैसला किया। उसके बाद वह दिन आ ही गया जब भारत ने पाकिस्तान को धूल चटाकर 26 जुलाई को कारगिल दिवस के रूप में मनाने की तैयारी करने लगा।
जवानों ने जब भारत का परचम लहराया:
इस युद्ध में भारत ने 525 से अधिक जवानों को खोया था तथा 1250 से अधिक जवान ज़ख़्मी हो गए थे। शहादत देने वालों में से अधिकांश जवान युवा थे जिनके उम्र 30 वर्ष से कम थी। इस लड़ाई को वीरता से लड़ने के लिए देश के चार जवानों को “परमवीर चक्र” से नवाज़ा गया था जिनमें योगेंद्र सिंह यादव, संजय कुमार, विक्रम बत्रा, मनोज कुमार पांडे शामिल थे।
किन हथियारों का इस्तेमाल भारत ने किया था?
उस वक्त हिंदुस्तान में परमाणु बम का परीक्षण हुआ था और हथियार के क्षेत्र में अब भारत भी आगे आ रहा था। इस युद्ध में 1980 में खरीदी गई बोफोर्स एफएच-77बी जो कि एक “आर्टिलरी गन” है इसका प्रयोग ऊंचे पहाड़ों से किया गया था। इज़राइल ने भारत को गोला-बारूद देकर अपनी ओर से मदद की और यहाँ से इन दोनो देशों के बीच जो बिगड़े रिश्ते थे वह अब सुधरने लगे थे।
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युद्ध के बाद क्या पड़ा प्रभाव?
दोनों देशों के बीच युद्ध समाप्ति के बाद अक्टूबर 1999, भारत में 13वां लोकसभा का चुनाव हुआ जहाँ एनडीए को 303 सीट मिली और पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। वहीं पाकिस्तान में तख्तापलट हो गया और परवेज़ मुशर्रफ ने नवाज़ शरीफ को हटाकर पाकिस्तान की सत्ता संभाली।
इसके बाद पाकिस्तान में इस युद्ध के बाद आरोप-प्रत्यारोप का खेल शुरू हुआ और ऐसा कहा जा रहा था कि नवाज़ शरीफ को अमेरिका से मदद नहीं लेनी चाहिए थी और इस लड़ाई में पीछे नहीं हटना चाहिए था।
दूसरी ओर नवाज़ शरीफ का कहना था कि इस युद्ध की नींव परवेज़ मुशर्रफ ने रखी थी और उनको भारत से ही इस युद्ध के बारे में जानकारी मिली है। पाकिस्तान ने अपने शहीद हुए जवानों की संख्या 400 से 500 बताई है तो नवाज़ शरीफ ने एक इंटरव्यू में 4 हज़ार जवानों के शहीद होने की संख्या बताई है।
यानी कुल-मिलाकर वहाँ का राजनीतिक माहौल काफी खराब हो गया था। बहरहाल, भारत के जवानों ने 5 हज़ार फीट की ऊँचाई पर यह युद्ध लड़कर पूरी दुनिया में भारत का कद और ऊँचा कर दिया है। इस लड़ाई में शहीद हुए जवानों को हम सब नमन करते हैं और हर वर्ष की 26 जुलाई के दिन इनकी वीरता को स्मरण कर, कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है।
-यशस्वी सिंह