प्रयागराज, 05 फरवरी (हि.स.)। माघ माह के शुक्ल पक्ष की बसन्त पंचमी तिथि को बसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विद्या और कला की देवी मां सरस्वती की पूजा पूरे विधि-विधान से की जाती है। हिन्दू धर्म में वसंत पंचमी का विशेष महत्व है।
मान्यता है कि इस दिन मां सरस्वती का जन्म हुआ था। आज के दिन गंगा स्नान के उपरान्त मां सरस्वती की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। जिसके लिए श्रद्धालुओं का संगम पर जमावड़ा लगा हुआ है।
पौराणिक मान्यता है कि वाग्देवी मां सरस्वती की आराधना और ज्ञान के महापर्व को बसन्त पंचमी के रूप में जाना जाता है। माघ मेला स्थित शिविर में काशी सुमेरूपीठाधीश्वर स्वामी नरेन्द्रानंद सरस्वती ने बताया कि आज के दिन लोग गंगा स्नान के उपरान्त सरस्वती की भी आराधना करते हैं। शिक्षा प्रारम्भ करने या किसी नई कला की शुरूआत करने के लिए यह दिन बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन लोग पीले रंग का वस्त्र पहनकर सरस्वती मां की पूजा करते हैं। बसंत पंचमी के दिन से ही बसंत ऋतु की शुरूआत होती है।
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शंकराचार्य ने बताया कि भारत में बसंत पंचमी के त्योहार को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि प्रातःकाल 6:43 से पुण्य काल शुरू हो गया जो मध्याह्न तक रहेगा। बसंत पंचमी होली के तैयारी की शुरुआत का भी प्रतीक है। बसंत पंचमी के 40 दिन बाद होली का त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार ज्ञान, संगीत और कला की देवी मां सरस्वती को समर्पित रहता है। इस दिन स्कूलों और कॉलेजों के साथ-साथ मंदिरों में भी देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।
उन्होंने बताया कि साल की छह ऋतुओं में बसंत के आगमन पर माघ शुक्ल पक्ष पंचमी पर्व पर भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा भी की जाती है। विद्या, बुद्धिदाता, सरस्वती, वाघेश्वरी देवी, वीणा वादिनी, वाग्देवी आदि नामों से पूजा जाता है। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण संगीत की देवी के जन्मोत्सव को भी वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है। शिक्षाविद, विद्यार्थी ज्ञानवान होने की प्रार्थना इसी दिन करते हैं। इस विशेष दिन अबूझ मुहूर्त मानकर विद्यारंभ,अन्नप्राशन, विवाह, मुंडन गृह प्रवेश के शुभ कार्य भी किए जाते हैं।