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July 27, 2024
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दिल्ली पुलिस का 74वां स्थापना दिवस, सीने पर हैं कई दाग

नई दिल्ली : राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा संभालने वाली दिल्ली पुलिस ने मंगलवार को अपनी सेवा के 74 वर्ष पूरे किए। लेकिन, ‘शान्ति, सेवा और न्याय’ के मोटो के साथ काम करने वाली दिल्ली पुलिस के सीने पर कई दाग भी लगे हैं।

बीते एक दशक में कई मोर्चों पर दिल्ली पुलिस को महत्वपूर्ण कामयाबी मिली तो कई जगहों पर वह असफल होती भी नजर आई। इसमें 16 दिसंबर, 2012 का निर्भया मामला, 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन और 26 जनवरी को लाल किले की प्राचीर पर हिंसक प्रदर्शन सरीखी घटनाओं ने दिल्ली पुलिस की छवि को धूमिल किया है।

देश की राजधानी दिल्ली के लिए पुलिस बल का गठन 16 फरवरी, 1948 को किया गया था। इससे पहले पंजाब के अधिकारी यहां की पुलिस व्यवस्था को संभालते थे। राजधानी दिल्ली में बीते 74 वर्षों से कानून व्यवस्था संभाल रही दिल्ली पुलिस को बीते एक दशक में बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।

राजनीतिक पार्टियों द्वारा होने वाले प्रदर्शन से लेकर सरकार को घेरने वाले अन्य प्रदर्शनों को संभालने का काम दिल्ली पुलिस के लिए सिरदर्द बनता रहा है। खासतौर से वर्ष 2011 के बाद हालात ज्यादा राजनीतिक होने लगे। 2011 में सबसे पहले अन्ना आंदोलन व बाबा रामदेव आंदोलन ने पुलिस की परेशानियां बढ़ाई।

Delhi Police Foundation Day

दिल्ली में हुए दंगे ने की छवी खराब

दिसंबर 2019 में सीएए विरोधी अभियान के चलते जामिया विश्वविद्यालय में जहां उपद्रव मचा तो शाहीन बाग में 100 से ज्यादा दिनों तक धरना चलता रहा। इन सबके बीच फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगे भड़क गए। इस दंगे में 50 से ज्यादा लोगों की हत्या कर दी गई, जबकि बड़ी संख्या में लोग घायल हुए।

दंगे में पुलिस की भूमिका को लेकर कई सवाल उठाए गए, जिससे पुलिस की छवी खबरा हुई। एसआईटी ने जिन लोगों को गिरफ्तार किया, उस पर भी कई सवाल उठाए गए। दंगे के ऐसे हालात में कमान संभालने के लिए 1985 बैच के आईपीएस अधिकारी एसएन श्रीवास्तव को बुलाया गया। वहीं तीन दिन बाद तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक सेवानिवृत्त हो गए।

अपनों ने भी छोड़ा साथ

वर्ष 2019 में दिल्ली पुलिस के इतिहास में ऐसा वर्ष है, जब उसके अपने ही पुलिसकर्मी सड़क पर प्रदर्शन करने के लिए उतर आये। घटना तीस हजारी कोर्ट की है। यहां पुलिस व वकीलों के बीच हुए संघर्ष के बाद कई जगहों पर पुलिस के जवानों की जमकर पिटाई हुई।

इसके चलते तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक से सुरक्षा की मांग को लेकर पुलिस मुख्यालय पर हजारों जवानों ने प्रदर्शन किया। पुलिस कमिश्नर को खुद सड़क पर उतरे जवानों को सुरक्षा का आश्वाशन देने के लिए आना पड़ा। वहीं जवानों ने अपने पुलिस कमिश्नर के विरोध में जमकर नारे भी लगाए।

ट्रैक्टर रैली में टॉप-कॉप पुलिस हुई फेल

बीते गणतंत्र दिवस के मौके पर भी ट्रैक्टर रैली में जमकर हिंसा हुई। इस दौरान अपने आपको टॉप-कॉप कहने वाली दिल्ली पुलिस पूरी तरह से विफल साबित हुई। 400 से ज्यादा पुलिसकर्मी इस हिंसा में घायल हुए।

लाल किले पर जिस तरह से उपद्रव मचाया गया, उससे देश की छवि को नुकसान पहुंचा। पुलिस द्वारा ट्रैक्टर रैली को लेकर किये गए सभी इंतजाम नाकाफी साबित हुए और प्रदर्शनकारियों ने एक-एक कर इनके सभी बेरिकेड को तोड़कर लाल किले में प्रवेश किया।

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