जैसा कि हम सबको पता है कि इजराइल में यहूदी निवास करते हैं। यह आज से नहीं काफी सालों पहले से इज़राइल में रहते चलें आ रहे हैं लेकिन शुरुआत में उनको अपना अस्तित्व बताने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। पहले वह इजराइल में रहे और फिर फिलिस्तीन ने इजराइल पर कब्ज़ा कर यहूदी को बाहर निकाल दिया।

जब इजराइल यहूदी ने छेड़ी जंग
इसके बाद वे रूस गए, वहाँ की सरकार ने उन्हें ढूंढ-ढूंढ कर मारा और अपने देश से भगाया। यह सब होते देख यहूदियों ने आपस में इस विषय पर मंथन किया और निर्णय लिया कि ऐसे मारे-मारे हम सब कब तक फिरेंगे। हमें जल्द से जल्द वापस अपना देश इजराइल को हासिल करना है और यहीं से शुरू होता है इज़राइल और चार देशों के बीच युद्ध जिसे नाम “अरब-इज़राइल 1967” युद्ध का नाम दिया गया।
यहूदियों के पास दिमाग और पैसा दोनो ही अधिक होता है और जिसका इस्तेमाल वह अच्छे तरीके से करते हैं। अब उनको वापस अपना इजराइल देश चाहिए था, ऐसे में जो अमीर यहूदी थे वह इजराइल में ज़मीन लेना शुरू किए।
अब यहूदी इजराइल में धीरे-धीरे अपना पैर पसार रहे थे और देखते ही देखते अपनी सेना, शक्तिशाली हवाई जहाज़, हथियार सब बना लिए और अरब देश से युद्ध लड़ने के लिए अपने आप को तैयार कर लिया। बस दोनो देशों को यह इंतज़ार था कि पहले कौन हमला करेगा।
तभी रूस ने मिस्र के राष्ट्रपति “जमाल अब्देल नासेर हुसैन” को भड़का दिया और कहा कि इजराइल ने एक लाख सैनिकों की अपनी फौज तैयार कर दी है बस आपके देश के ऊपर हमला होने ही वाला है। जबकि हक़ीक़त यह थी कि इजराइल के पास मात्र 50 हज़ार सैनिकों की संख्या थी।
बात करें जमाल अब्देल नासेर हुसैन की तो यह बड़े ही धाकड़ नेता थे और जनता की नज़रों में उनका सम्मान काफी था लेकिन उन्होंने रूस की बात पर यकीन कर लिया और अब मिस्र ने अरब मुल्कों के साथ बातचीत करनी शुरू की और सेना तैयार करने को लेकर सहमति बनी।
चारों अरब देश मिस्र, सीरिया, जॉर्डन और इराक़ थे इजराइल के खिलाफ
चारों अरब देश यानी मिस्र, सीरिया, जॉर्डन और इराक़ के सैनिकों को मिला दें तो इसका आंकड़ा छः लाख के ऊपर पहुंच जाता है। अब एकतरफ छः लाख से अधिक सैनिक तो दूसरी तरफ इज़राइल के पास पचास हज़ार। इस आंकड़े को देख कर कोई यकीन भी नहीं कर सकता था कि इज़राइल फिर भी यह युद्ध आराम से जीत लेगा।
बहरहाल, अब अगर तुलना एयरक्राफ्ट की संख्या की करें तो अरब देश के पास करीब 950 से ऊपर एयरक्राफ्ट थे तो वहीं इज़राइल के पास मात्र 200 से ऊपर थे लेकिन इज़राइल के जो भी एयरक्राफ्ट थे वह अरब देशों के मुकाबले काफी बेहतरीन थे।

वह लम्बी दूरी तय कर, तगड़ा हमला करने में सक्षम थे। इजराइल यह जान रहा था कि हमारे पास सैनिकों की कमी है साथ ही एयरक्राफ्ट भी कम हैं। ऐसी परिस्थिति में हमें युद्ध में जीत की बहुत ही सटीक रणनीति बनानी होगी।
अब आता है युद्ध का दिन। सुबह का वक्त था, और मिस्र की सेना नाश्ता कर रही थी। किसी ने सोचा नहीं था कि इज़राइल इतनी सुबह-सुबह ही हमला करना शुरू देगा। वहीं दूसरी ओर इज़राइल ने अपने एयरक्राफ्ट को मिस्र में छोड़ने की तैयारी कर रहा था।
इजराइल ने मिस्र में छोड़े थे लगातार 40 एयरक्राफ्ट
इजराइल की रणनीति यह थी कि अगर युद्ध जीतना है तो हमें आश्चर्यचकित तरीके से हमला करना होगा। चारों अरब देशों के एयरक्राफ्ट को पहले ध्वस्त करना होगा ताकि वह इजराइल पर हमला ना कर सकें। साथ ही इज़राइल की तरफ से मिस्र में तैनात जासूसों ने बेहद ही सटीक जानकारी दी जिसका फायदा इजराइल को मिला। तारीख 5 जून 1967 और सुबह का वक्त था। यह किसी ने बिल्कुल भी नहीं सोचा था कि इज़राइल इतनी सुबह से ही हमला करना शुरू कर देगा।
वहीं मिस्र ने अपनी सुरक्षा के लिए रडार भी लगाए थे। अगर कोई एयरक्राफ्ट इजराइल की तरफ से आ रहा होगा तो वह रडार के माध्यम से पता चल जाएगा। तभी इजराइल की तरफ से दनादन 40 एयरक्राफ्ट छोड़े गए और रडार में कैद हो गये। जब यह एयरक्राफ्ट रडार में कैद हुए हुए तो मिस्री सेना को लगा कि हो सकता है यह अमेरिका से आया हो क्योंकि उन्हें ज़रा भी यकीन नहीं कि इज़राइल इतनी भारी मात्रा में एयरक्राफ्ट छोड़ेगा वो भी इतनी सुबह।
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और यहाँ होती बहुत बड़ी चूक और इसका नतीजा यह रहा कि इज़राइल के एयरक्राफ्ट ने मिस्र के एयरक्राफ्ट को ध्वस्त कर दिया। वहीं मिस्र की सेना में हड़कम्प मच गया। किसी को कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि आखिर इसका सामना कैसे करें। अब जब अधिकतर मिस्र के एयरक्राफ्ट खत्म हो गए तो वह ज़मीनी युद्ध पर आ गए पर इज़राइल अपने एयरक्राफ्ट से हमले कर, मिस्री सैनिको का अंत करता रहा।
यह हमला 5 से 7 जून तक चला और इज़राइल ने मिस्र को उखाड़ फेंका। उसके बाद 7 से 8 जून जॉर्डन तथा 9 से 10 जून तक सीरिया के ऊपर ताबड़तोड़ हमले करके अपना जीत कर परचम लहरा दिया।

जब इजराइल ने मात्र छः दिन में ही युद्ध जीत लिया
5 से 10 जून तक चले इस युद्ध में इज़राइल के सामने अरब देश टिक ही नहीं पाए और इजराइल की एकतरफा जीत हो गई। इसी के साथ युद्ध जीतने के अलावा इजराइल ने काफी जगह पर भी कब्ज़ा किया जैसे कि मिस्र का “सीनाई प्रायद्वीप“, फिलिस्तीन की ज़मीन साथ ही “गोलान हाइट्स” जो कि सीरिया का था उस पर भी कब्जा जमा लिया।
अब 1967 के छः साल बाद यानी 1973 में फिर अरब देश और इज़राइल के बीच युद्ध होता है लेकिन इस बार जीत किसी की नहीं हुई। जब दोबारा युद्ध हुआ तो उसके बाद अरब देश और इज़राइल दोनों ने युद्ध पर विराम लगाने का निर्णय लिया।
मिस्र के राष्ट्रपति “अनवर सादात” ने इस पहल को आगे बढ़ाया और दोनों के बीच “शांति सन्धि” हुई। इस संधि के बाद इज़राइल ने सीरिया, फिलिस्तीन और मिस्र पर जो अपना कब्ज़ा जमाया था उसने उन सब देशों को वापस कर दिया। तो कुल-मिलाकर इस युद्ध के बाद जो इज़राइल की मजबूत छवि बनी है और वह आजतक कायम है।
इसी लिए आज भी इज़राइल के दुश्मन तो बहुत देश हैं पर जल्दी कोई टक्कर लेने की सोचता नहीं है। इसी के साथ कम सैनिकों और विमानों के बावजूद इज़राइल ने यह छः दिन युद्ध जीत कर इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज कराया।
यशस्वी सिंह (मीडिया छात्र)
इलाहाबाद विश्विद्यालय