इन दिनों देश की राजधानी दिल्ली में कोरोना के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए फिर से लॉकडाउन लगाने कि गुंजाईश पैदा हो रही है।
यहाँ एक बात सोचने वाली है कि कोरोना महामारी और इससे निपटने के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने चंद महीनो पहले जो आर्थिक हालात पैदा किये थे, उस सदमे से लोग अब तक उबर नहीं पाये हैं और ऐसे में जब लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था एक बार फिर से पटरी पर आने का प्रयास कर रही है तो इस समय दोबारा लॉक डाउन के बारे में सोचना भी पाप है।
देश की अर्थव्यवस्था का बंटाधार करने के लिए इतना लंबा लॉक डाउन ही काफी था।
कोरोना ने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी
कहतें हैं कि जब प्रकृति अपना खेल दिखाती है तो सब कुछ लेने पर उतारू हो जाती है, फिर ‘क्या अपना क्या पराया’, वो तो कुछ भी नही देखती है।
ऐसा ही मंजर लोगों ने सदीयों बाद फिर महसूस किया है। कोरोना महामारी ने पिछले 9 महीनो से पुरे विश्व भर में जो तांडव मचा रखा है, इससे तो आप और हम भली भांति परिचित हैं।
मार्च – अप्रैल के महीने में कोरोना महामारी और उससे मरने वालों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि के कारण सरकारों ने तत्कालिक प्रभाव में लॉकडाउन लगाने के निर्देश दिये थे।
उस वक़्त लिया गया ये फैसला कितना सही था और कितना गलत, ये हमारे और आपके लिए एक अलग बहस का मुद्दा है। कई अर्थशास्त्रीयों का कहना था कि लॉकडाउन लगाना कोरोना का समाधान नही। तो यहाँ प्रश्न ये उठता है कि, अगर लॉक डाउन नही तो फिर क्या करें?
कोरोना के बढतें मामले को देख सरकारें हाथ पे हाथ धरे बैठी तो नही रह सकती, लेकिन पिछली बार हुए लॉक डाउन और बेरोजगारी के कारण पलायन के मंजर को याद कर आज भी रूह कॉप जाती है तब प्रश्न ये उठता है कि तो किया क्या जाए?
बेहतर मेडिकल सुविधाएँ ही कोरोना का ईलाज
वैसे सही मायनो में देखा जाए तो लॉकडाउन असल में समस्या का समाधान नही है। अभी हाल ही में देश की राजधानी में कोरोना के बढतें मामलो को देख लॉकडाउन लगने के अशआर नज़र आ रहे थे, जिसे उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने सिरे से खारिज कर दिया।
इस मुद्दे पर उप मुख्यमंत्री से बात की गयी तो उन्होंने साफ़ तौर पर ये बात कही कि, लॉकडाउन कोरोना समस्या का समाधान नही है। पिछली बार जो लॉक डाउन के कारण आर्थिक हालात पैदा हुए थे उसके भयानक मंजर आज भी आँखों के सामने मंडरा रहें हैं।
कोरोना का एक मात्र समाधाम हैं, बेहतर मेडिकल सुविधाएँ। अगर प्रत्येक राज्य में अस्पतालों के हालात अच्छे कर दिये जायें, हॉस्पिटल में बेड की व्यवस्था के साथ ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग की सुविधाएं करें तो लॉकडाउन की आवश्यकता ही नही।
हमें ये भी उम्मीद थी कि सर्दियों में कोरोना बढ़ेगा, लेकिन इसके लिए लॉक डाउन नही बल्कि अस्पतालों में सुविधाएं बढ़ाई जाएगी और हाँ..जहां लगे कि इस ज़ोन में हालात बिगड़ रहें है तो वहां कुछ रेस्ट्रिक्शन भी लगाये जाएंगे जिसमे ऑड – इवन कर दुकानों को खोलने के निर्देश दिए जाएंगे लेकिन ये सिर्फ काँटेन्मेंट ज़ोन तक ही सीमित होंगे।
इस वक़्त दिल्ली में 26000 लोग होम इसोलेशन में रखें गये है जो अपने आप में इस तरह का पहला सफल प्रयोग हैं। इसके साथ ही 60000 से अधिक टेस्टिंग हर रोज़ हो रही है जो कि पुरे देश में सबसे ज्यादा हैं। इस वक़्त पुरी दिल्ली में 15000 के करीब कोविड बेड उपलब्ध है जिसमे 50 प्रतिशत के आस – पास खाली पड़ें हैं।
इस वक़्त आईसीयू में बेड की सुविधाएं एक बड़ी समस्या है जिसके निदांन हेतु हमने केंद्र सरकार से सहायता मांगी है और हमें उम्मीद है कि जल्दी ही बाकी के बेड भी हमें मुहैय्या कर दिए जाएंगें।
कोरोना से लड़ाई हमारी अकेले कि नही
ऐसे में एक बात तो स्पष्ट है कि कोरोना से लड़ना है तो लॉकडाउन लगाना ही समाधान नही है। ऐसे में जरूरत है कि पूरे देश की सरकारें अच्छी से अच्छी मेडिकल सुविधा लोगो को मुहैय्या कराये, साथ ही आम नागरिकों को इस बात पर ध्यान रखना चाहिये कि हम अपने आप में पूरी जागरूकता बरतें। मास्क, सैनिटाइजर और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन आज भी उतना ही जरुरी है। सेल्फ रेगुलेशन भी कोरोना महामारी के रोकथाम मे बड़ा सहयोगी है। सरकार द्वारा जारी दिशा निर्देशों में एक बात तो बिल्कुल सटीक है कि "जब तक दवाई नही तब तक ढिलाई नही"
–गरिमा सिंह
यह भी पढ़ें: IGNOU ने पर्यावरण विज्ञान में शुरू की MSc., उत्तराखंड में होगा अध्ययन केन्द्र