Friendship Day Special : मित्रता से बड़ा संसार में कोई रिश्ता नहीं है। यह रिश्ता बहुत मजबूत होता है और नाजुक भी। जिस व्यक्ति से खून के रिश्ते नहीं बन पाते उससे परमात्मा मित्रता का रिश्ता बना देता है।
मित्रता एक ऐसा रिश्ता है जो सभी रिश्तों से ज्यादा मजबूत है। इस पर महाकवि राधेश्याम जी ने अपनी रामायण में लिखा है कि ‘मित्रता ना ऐसा रिश्ता है जब जी चाहा तब तोड़ दिया। मिट्टी का नहीं खिलौना है जो खेल-खेल में फोड़ दिया। लेकिन कुछ मित्र ऐसे होते हैं ‘जब कहा मित्र से मदद करो बोले हम अब तैयार नहीं। मुंह फेर बड़े फिर आगे को यह सिर दर्दी स्वीकार नहीं।

मित्रता के आगे सच्चामित्र लगाना अन्याय
मित्रता के आगे सच्चामित्र लगाना मित्र शब्द के साथ अन्याय करना है। क्योंकि मित्र सदैव सच्चे होते हैं। इसी वजह तो मित्रता को खत्म करने के लिए सारा जग लग जाए लेकिन मित्रता नहीं टूटती। और यदि मित्र को जरा संदेह हो जाए तो एक कच्चे धागे की तरह मित्रता टूट जाती है।
महाकवि तुलसीदास ने मित्रता के ऊपर लिखा है कि ‘जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिनहि बिलोकत पातक भारी।’ जो अपने मित्र के दुख को देखकर दुखी नहीं होते, ऐसे मित्र को देखने से बहुत बड़ा पातक लगता है। दुनिया में सच्चा मित्र बड़ी मुश्किल से मिलता है। और इसकी पवित्रता बनाए रखने के लिए दोनों के अंत:करण जब पवित्र होते हैं तो मित्र-मित्र के दुख में काम आता है। सुख में काम आता है। मित्र हर तरह से अपने मित्र का साया बनकर काम करता है।
मित्र से बड़ा कोई और शुभचिंतक नहीं
आज के बदलते युग में मित्रता शब्द भी गाली बन रहा है। कुछ लोगों ने इसे व्यवसाय बना लिया है। वह धनपतियों की बेटों से दोस्ती करते हैं। और उनके धन दौलत का दुरुपयोग कर मित्र का उपहास करते हैं। ऐसे मित्रों को परखने की जरूरत है। ऐसे मित्रों को समझने की जरूरत है। वैसे देखा जाए तो मित्र से बड़ा कोई और शुभचिंतक नहीं हो सकता। मित्र-मित्र की खातिर अपनी जान दे देते हैं। लेकिन यदि गलत मित्र मिल गया तो वह मित्र की जान भी ले लेता है।
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मित्रता की नहीं जाती है मित्रता तो हो जाती है
महाकवि तुलसीदास ने ऐसे मित्रों के ऊपर लिखा है कि मित्र दो तरह के होते हैं। ‘मिलत एक दारुण दुख देही बिछुड़त एक प्राण हरि लेहीं। तुलसी ने दोनों की तुलना सिक्के के दो पहलू से की है। एक वह मित्र हैं जो मिलते हैं तो लगता है कि भगवान मिल गए। और जब वह बिछड़ते हैं तो लगता है कि प्राण उनके साथ जा रहे हैं। और दूसरे मित्र ऐसे होते हैं जो मिलते ही तमाम तरह की पेशकश करके मांग करके मित्र को दुख के अथाह सागर में डुबा देते हैं। और वह मित्र के प्राणों को आफत में डाल देते हैं।
इस वजह से हर व्यक्ति को सोच समझकर मित्र बनाना चाहिए। वैसे मित्रता की नहीं जाती है मित्रता तो हो जाती है। यह तो प्रभु का प्रसाद है। जब परमात्मा खून के रिश्ते से जोड़ना भूल जाता है, तो वह मित्र बनाकर अगले व्यक्ति को अपना बना देता है। Friendship Day को हम भूलते चले जा रहे हैं। और विदेशी Friendship Day के नाम से मना कर मित्रों की पहचान पर चर्चा करते हैं।