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April 25, 2024
विचार

Krishnammal Jagannathan: आजादी के आंदोलन में सामाजिक न्याय की प्रतिमूर्ति

Krishnammal Jagannathan भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सामाजिक न्याय का प्रतीक बनीं क्योंकि बगैर सामाजिक न्याय के देश की स्वतंत्रता अधूरी थी। तमिलनाडु की यह वीरांगना एक दलित परिवार में जन्मीं थीं, अपने अदम्य साहस और कृतसंकल्प से उन्होंने न केवल उच्च शिक्षा ग्रहण की, बल्कि अपने जैसे लोगों के सामाजिक न्याय के लिए भी लड़ीं।

एक समाज सेविका के रूप में उन्होंने सीमान्त और भूमिहीन किसानों की लड़ाई लड़ी। इसके लिए उन्होंने LAFTI यानी लैंड फाॅर टिलर्रस फ्रीडम जैसा आंदोलन भी चलाया। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उन्होंने दक्षिण भारत में गांधीवादी सिद्धांतों को स्थापित करने में अपनी महती भूमिका का निर्वाह किया।

Krishnammal Jagannathan

Krishnammal Jagannathan 16 जून, 1926 को तमिलनाडु के दिदींगुल जिले में एक भूमिहीन दलित परिवार में पैदा हुईं थीं। उनके माता-पिता दिन-रात मेहनत मजदूरी से ही परिवार का पालन-पोषण कर रहे थे। माता-पिता के बूते ही उन्होंने विश्वविद्यालय स्तर की पढ़ाई पूरी की और गांधीवादी सर्वोदय आंदोलन से जुड़ गईं।

वे हमेशा से अन्याय और शोषण के खिलाफ रहीं। उन्होंने बचपन में अपनी मां को गर्भावस्था में भी मजदूरी करते देखा था। उनकी मां की ऐसी दशा ने ही उन्हें समानता और सामाजिक न्याय के प्रति संघर्ष के लिए प्रेरित किया।

सर्वोदय आंदोलन के दौरान ही वे शंकरलिंगम जगन्नाथन से मिलीं। उनके साथ काम करते हुए वे उन्हें पसंद करने लगीं। यह जोड़ी विचारों और काम में एक दूसरे की सहयोगी थी। इसलिए कृष्णमल और शंकरलिंगम ने साथ-साथ चलने का निश्चय किया। भारत छोड़ो आदोलन में भाग लेने के कारण शंकरलिंगम को जेल की सजा मिली।

जहां से वे देश की स्वतंत्रता यानी 1947 में ही बाहर आ सके। इसके बाद इन दोनों ने 1950 में विवाह किया। वे दोनों गांधीवादी विचारों से प्रभावित थे, इसलिए वे गांधीवादी सिद्धांतों को मूर्तरूप देना चाहते थे। वे जानते थे कि बिना ग्रामीण जीवन को संवारे एक विकासशील देश की कल्पना नहीं की जा सकती।

इसलिए उन्होंने ग्राम समाज के उत्थान के लिए काम करना शुरू किया। इसलिए वे साथ-साथ विनोबा भावे के भूदान आंदोलन से जुड़ गए और इसके लिए काफी महत्वपूर्ण काम किया। भूदान आंदोलन के लिए उन्होंने सत्याग्रह का प्रयोग करते हुए करीब चार मिलियन एकड़ भूमि का वितरण करवाया था।

स्वतंत्रता के बाद भी Krishnammal Jagannathan काफी सक्रिय रहीं। वर्ष 1968 में किल्वेनमनी नरसंहार में 42 दलित महिला और बच्चों को जलाकर मार डाला गया, क्योंकि उन्होंने उचित मजदूरी मांगी थी। इस कांड के बाद पति-पत्नी ने तमिलनाडु के तंजावुर जिले में भूमि सुधार की जरूरत को समझते हुए अपना पूरा ध्यान इस काम में लगा दिया।

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भूमिहीनों और भूमि सुधार जैसे कामों के लिए कृष्णमल ने पति के साथ मिलकर 1981 में एलएएफटीआई की स्थापना की। इसके माध्यम से इन दोनों ने भूमिहीन और जमींदारों के बीच कई तरह के समझौते करवाये। इससे भूमिहीन लोग सही कीमत पर जमीन भी खरीद सके। यह आंदोलन काफी सफल रहा। इसके माध्यम से उन्होंने करीब 13,000 एकड़ जमीन 13,000 परिवारों को दिलवाई। उनके इस महत्वपूर्ण काम को आज भी याद किया जाता है।

LAFTI के माध्यम से वे किसानों और भूमिहीनों के बीच जाकर उनकी जीविका के लिए कई प्रकार हुनर सिखाने का अभियान भी चलाया। वे किसानों और महिलाओं-बच्चियों को खाली समय में सिलाई, बुनाई चटाई बुनाई, कालीन बुनाई, चिनाई आदि तरह-तरह का काम सिखलाया करती थीं।

इस तरह महिलाएं खेती के अलावा आपनी आय बढ़ाने के लिए दूसरों कामों को भी कर सकीं। अपनी वृद्धावस्था के दिनों में भी वे काफी सक्रिय रहीं। 2004 की सुनामी में वे एलएएफटीआई के माध्यम से लोगों की सहायता के लिए सामने आईं। इसी तरह वे अपने आसपास के पर्यावरण के प्रति भी चिंतित थीं, इसके लिए उन्होंने तटीय पारिस्थितीय तंत्र को बचाने में भी अपनी महती भूमिका निभाई।

1993 में तमिलनाडु के तटीय समुद्री इलाके में बड़े-बड़े झींगा फाॅर्म खड़े हो गए थे, जिनके कारण वहां के पारिस्थितीय तंत्र के साथ-साथ वहां के रहने वाले लोगों पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा था। इस बात को लेकर उन्होंने वहां के लोगों के साथ मिलकर सत्याग्रह किया। काफी संघर्ष के बाद उन्हें 1996 में न्याय मिला, जब सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे फाॅर्म पर रोक लगा दी।

Krishnammal Jagannathan के इस तरह के कामों को देखते हुए वे देश-विदेश तक में उनकी प्रसिद्ध हुई। उन्हें उनके कामों के लिए सम्मानित किया गया। 1987 में स्वामी प्रनवनंदा पीस एवार्ड, 1989 को पद्मश्री सम्मान, भगवान महावीर एवार्ड, जमनालाल बजाज एवार्ड से सम्मानित किया गया।

1999 को स्विट्जरलैंड में उन्हें समिट फाउंडेशन एवार्ड भी मिला। 2008 को सिएटल विश्वविद्यालय द्वारा ओपस पुरस्कार भी उन्हें मिला। 2020 में उन्हें देश का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान पद्म विभूषण दिया गया। आज भी वे अपने मिशन में लगी हुई हैं।

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