27.1 C
New Delhi
March 29, 2024
विचार

सिविल सेवा परीक्षा-क्यों घटते हिन्दी माध्यम के सफल अभ्यार्थी

सिविल सेवा परीक्षा-क्यों घटते हिन्दी माध्यम के सफल अभ्यार्थी

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने अपनी परीक्षा 2019 के परिणामों की घोषणा कर दी है। उसमें कुल 829 उम्मीदवारों का चयन हुआ है। अब ये सफल उम्मीदवार बनेंगे देश के बड़े बाबू, राजनयिक, आला पुलिस अफसर वगैरह। यहां तक तो सब ठीक है। पर बीते कुछ सालों से चल रहा रुझान इस बार भी जारी रहा। दरअसल, हिन्दी माध्यम से भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा को पास करने वाले तेजी से घट रहे हैं। इस बार हिन्दी माध्यम से परीक्षा देने वाला सबसे अव्वल अम्यार्थी 317वें स्थान पर रहा। यानी उससे ऊपर लगभग सब अंग्रेजी से पेपर देने वाले ही रहे। इसका छोटा-मोटा अपवाद भी हो सकता है।

अब जो उम्मीदवार 317वें स्थान पर रहा है, उसे आईएएस, आईपीएस या आईएफएस जैसी उच्च कैडर तो मिलना असंभव है। ये ही भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के क्रीम कैडर माने जाते हैं । यह दसेक साल पुरानी बात होगी जब टॉप 10 में तीन-तीन, चार-चार हिन्दी माध्यम वाले विद्यार्थी भी सफल हो जाते थे। अब हिन्दी माध्यम का पहला सफल छात्र 316 पायदान के बाद आ रहा है। थोड़ा पीछे चलते हैं। साल 2010 तक हिन्दी माध्यम के लगभग 45 फीसद अम्यार्थी प्री- क्वालीफाई करके मुख्य परीक्षा देते थे। जो अब यह आंकड़ा घट कर 10 से 12 फीसद हो गया है। कहने वाले यह भी कह रहे हैं कि सबसे बड़ा फैक्टर यह है कि प्री क्वालीफाई करके मुख्य परीक्षा में ही न पहुंच पाना।

हिन्दी वाले गायब नहीं हो जाते

मान लें कि कुछ तो कमी जरूर है सिस्टम में, नही तो ऐसे ही हिन्दी वाले गायब नहीं हो जाते। हिन्दी वालों का सिविल सर्विसेज की परीक्षा से बाहर होना देश की आधी से ज्यादा आबादी को बुरी तरह चिंतित कर रहा है। सवाल यह है कि आखिर कुछ वर्ष पहले तक जो छात्र समूह बढ़िया परिणाम दे रहा था वो एकाएक दुर्दशा का शिकार क्यों होने लगा।

मुझे लगता है कि बात भाषा की नहीं, मानसिकता की भी है। हिन्दी में दिए गए उत्तरों की परीक्षकों की निगाह में कद्र नहीं है। भले ही वे सही हों। फिर हिन्दी बोलने वालों का आत्मविश्वास तो वैसे ही हमेशा धरातल पर होता है। रही-सही कसर इंटरव्यू का अंग्रेजीदां हाव-भाव कर देता है। अगर आप मुख्य परीक्षा को पास कर भी लेते हैं तो इंटरव्यू में पर्याप्त नंबर नहीं मिलते हैं। तो क्या मातृ भाषा में शिक्षा देने वाली बातें मात्र नाटक हैं? अकबर इलाहाबादी ने ठीक ही लिखा था- ‘तालीम का ज़ोर इतना, तहज़ीब का शोर कितना। बरकत जो नहीं होती, नीयत की ख़राबी है।’

आखिर हिन्दी वाले क्यों फिसड्डी साबित हो रहे हैं सिविल सर्विस परीक्षा में। कुछ कारण जो समझ आ रहे हैं, वे इस तरह से है- पठन सामग्री की कमी, अनुवादित पुस्तकों और प्रश्नपत्रों में ग़लत अनुवाद, परीक्षकों द्वारा हिन्दी माध्यम परिक्षार्थियों की उपेक्षा या जान बूझकर कम अंक देना, हिन्दी माध्यम विद्यार्थियों और परीक्षकों की कमजोर शैक्षणिक पृष्ठभूमि, हिन्दी माध्यम परीक्षार्थियों का अंग्रेज़ी माध्यम के अनुपात में कम होना, वगैरह।

अच्छे कोचिंग संस्थानों की भारी कमी है

एक बात तो साफ है कि हमारे यहां कोचिंग संस्थानों की कोई कमी नहीं, लेकिन, अच्छे कोचिंग संस्थानों की भारी कमी है। ये ही बच्चों को विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार करने का दावा करते हैं । देश के सभी शहरों में क्लर्क से लेकर सिविल सर्विस जैसी दूसरी बड़ी परीक्षाओं की इनमें तैयारी करवाई जाती है। हिन्दी में कोचिंग संस्थान तो कुकुरमुत्ते की तरह उग आए हैं, हर शहर के हर गली मोहल्ले में । दिल्ली के मुखर्जी नगर में इस तरह की सैकड़ों संस्थान हैं। पर क्या उनमें फैक्ल्टी कायदे के नहीं है? आपको पढ़ाने वाला ही कमजोर होगा तो आप बेहतर परिणाम की उम्मीद तो मत करें।

एक बात ये भी लगती है कि जो कथित तौर पर अच्छे संस्थान हैं, वे भी अपने विद्यार्थियों को स्तरीय पठन सामग्री उपलब्ध नहीं करवा पाते। इसलिए हिन्दी माध्यम के अभ्यार्थी मात खा रहे हैं। उन्हें इन्टरनेट पर जाकर पठन सामग्री ढूंढने को कहा जाता है I वे सारी पठन सामग्रियां अंग्रेजी में ही होती हैं I अब हिंदी माध्यम के पढ़े बच्चें बेचारे अपनी बुद्धि से उस पठन सामग्री को समझेंगे, पूरी तरह ग्रहण कर सार्थक उत्तर दे पायेंगे I

अगर यही स्थिति रही तो देश को भविष्य में कभी शशांक जैसे विदेश सचिव नहीं मिलेगे। शशांक देश के सफल विदेश सचिव थे। उन्होंने हिन्दी माध्यम से सिविल सर्विस की परीक्षा में शानदार प्रदर्शन किया था।

एक तरफ भारत की चाहत रही है कि हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का दर्जा मिल जाए और दूसरी तरफ हमारी शिखर नौकरशाही से ही हिन्दी गायब हो रही है। हिन्दी को विश्व …

Related posts

छत्तीसगढ़ नक्सली हमले में 23 जवान हुए शहीद

Buland Dustak

उदयपुर: इतिहास, संस्कृति, दर्शनीय स्थानों और महलों का अनूठा संगम

Buland Dustak

एयर इंडिया टाटा ग्रुप के सुपुर्द, अब होगा हवाई अड्डों का कायाकल्प

Buland Dustak

पर्यावरण चिंतन: बहुत जरूरी है Single Use Plastic से मुक्ति

Buland Dustak

भारत, ईदी अमीन और अफगानिस्तान संकट

Buland Dustak

भारत में खत्म हो शिक्षा के नाम पर धर्म के प्रचार की छूट

Buland Dustak