-कोरोना काल में भी जीवन यापन के लिए मासूमों को मौत से लेनी पड़ी टक्कर
विश्व बाल श्रम निषेध दिवस: धूप हो या छांव, चाहे विश्वव्यापी कोरोना का कहर लेकिन कुछ ऐसी मासूम जिन्दगियां हैं जिन्हें अपने व अपने परिवार के लोगों का पेट पालने के लिए मौत को मात देते हुए कबाड़ ढोने का कार्य करना पड़ता है। जब कोरोना काल में लाॅकडाउन के दौरान सड़कों पर सन्नाटा था। ऐसे में सड़क किनारे बैठकर किसी पेड़ की छाया में ऐसे मासूमों को अपने बगल में कबाड़ की बोरियां रखकर अपने खाने का जुगाड़ करते देखा गया।
कबाड़ ढोते हुए बीत रहा है दो मासूमों का जीवन
इनमें से दो मासूमों से बात करने पर पता चला कि उनके माता-पिता तो हैं पर घर पर हैं और वे कबाड़ बीनकर अपने परिवार के भरण पोषण के लिए निकले थे। महानगर को यूं तो स्मार्ट सिटी का दर्जा मिले करीब 4-5 वर्ष होने को हैं पर नगर के बीचोबीच गोविन्द चौराहे पर आज भी कुछ कबाड़ बीनने वाले मासूम देखे जा सकते हैं। उनके जीवन की व्यवस्था आज तक नहीं हो सकी है। उनमें से विवेक व शुभम से बातचीत की तो पता चला कि उनके माता-पिता गोविन्द चौराहे पर रहते हैं। दोनों सड़क किनारे बैठकर किसी तरह आम का जुगाड़ कर अपने पेट की भूख मिटाने का प्रयास कर रहे थे।
छत के नाम पर पेड़ की छांव ही उनके लिए काफी थी। इससे पहले कि उनसे उनकी शिक्षा के बारे में या कुछ और पूछते वे वहां से भाग निकले। यह स्थिति केवल शुभम या विवेक की नहीं है। ऐसे न जाने कितने शुभम और विवेक हैं जिनका जीवन कबाड़ ढोते हुए बीत रहा है। इन्हें न अपने जीवन की चिंता है और न ही अपने शरीर की। जहां स्वच्छता और सामाजिक दूरी की बात इतनी जोर शोर से चल रही है। वहीं इनपर ये नियम कानून लागू होते दिखाई ही नहीं देते। ऐसा नहीं है कि प्रशासन इनके लिए प्रयास नहीं करता लेकिन वे नाकाफी होते हैं।
महानगर में बाल श्रमिकों की संख्या करीब 500
एक एनजीओ के अनुसार महानगर में आईटीआई, बिजौली, गोविन्द चौराहा समेत कई ऐसे स्थान हैं जहां लोग झुग्गी-झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं। इन्हीं के बच्चे कुछ कबाड़ तो कुछ अन्य प्रकार के कार्य करते हुए जीवन यापन के लिए प्रयासरत रहते हैं। इनमें अधिकांश को कबाड़ ढोते हुए देखा जा सकता है। इस संबंध में चाइल्ड लाइन के अमरदीप ने बताया कि जीवन शाह, सैंयर गेट, गोविन्द चौराहा आदि स्थानों से चाइल्ड लाइन ने कई बार रैस्क्यू करते हुए कई बच्चों को बरामद भी किया। साथ ही श्रम विभाग द्वारा ऐसे लोगों पर कार्रवाई भी की गई।
बाल श्रम की परिभाषा
सामान्यतः बाल श्रम को ऐसे पेशे या कार्य के रूप में परिभाषित किया जाता है जो बच्चे के लिये खतरनाक हो। जो कार्य बच्चों को स्कूली शिक्षा से वंचित करता है या जिस कार्य में बच्चों को स्कूली शिक्षा और काम के दोहरे बोझ को संभालने की आवश्यकता होती है। इसमें वे बच्चे शामिल हैं जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार, राष्ट्रीय कानून द्वारा परिभाषित न्यूनतम कानूनी उम्र से पहले किसी व्यावसायिक कार्य में लगाया जाता है।
कार्य जो बाल श्रम नहीं हैं
ऐसे कार्य जो बच्चों या किशोरों के स्वास्थ्य एवं व्यक्तिगत विकास को प्रभावित नहीं करते हैं या जिन कार्यों का उनकी स्कूली शिक्षा पर कोई कुप्रभाव नहीं पड़ता हो। स्कूल के समय के अलावा या स्कूल की छुट्टियों के दौरान पारिवारिक व्यवसाय में सहायता करना। ऐसी गतिविधियां जो बच्चों के विकास में सहायक होती है तथा उनके वयस्क होने पर उन्हें समाज का उत्पादक सदस्य बनने के लिये तैयार होने में मदद करती हैं, यथा परंपरागत कौशल आधारित पेशा।
विश्व बाल श्रम निषेध दिवस: संवैधानिक प्रावधान
भारतीय संविधान का अनुच्छेद-23 मानव दुर्व्यापार, बेगार तथा बंधुआ मजदूरी की प्रथा का उन्मूलन करता है। जबकि अनुच्छेद-24 किसी फैक्ट्री, खान, अन्य संकटमय गतिविधियों यथा-निर्माण कार्य या रेलवे में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के नियोजन का प्रतिषेध करता है।
आइएलओ व यूनीसेफ की रिपोर्ट चौकाने वाली
10 जून को अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और यूनिसेफ की एक नयी रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में बाल मजदूरी में बच्चों की संख्या बढ़कर 16 करोड़ हो गयी है जो दो दशक में पहली बार बढ़ी है और कोविड-19 की वजह से अभी लाखों और बच्चे बाल मजदूरी के जोखिम में हैं।
05 से 11 साल उम्र के बच्चों की संख्या आधे से अधिक
रिपोर्ट ‘चाइल्ड लेबर ग्लोबल एस्टीमेट्स 2020, ट्रेंड्स एंड रोड फॉरवर्ड’ विश्व बाल श्रम निषेध दिवस से ठीक दो दिन पहले जारी की गयी। इसमें कहा गया है कि बाल मजदूरी को रोकने की दिशा में प्रगति 20 साल में पहली बार अवरुद्ध हुई है। जबकि 2000 से 2016 के बीच बाल श्रम में बच्चों की संख्या 9.4 करोड़ कम हुई थी।
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रिपोर्ट में बाल मजदूरी में 05 से 11 साल उम्र के बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी की ओर इशारा किया गया है जो पूरी दुनिया में कुल बाल मजदूरों की संख्या की आधे से अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘दुनियाभर में बाल श्रम में बच्चों की संख्या बढ़कर 16 करोड़ हो गयी है। इसमें पिछले चार साल में 84 लाख की वृद्धि हुई है। कोविड-19 के प्रभाव के कारण लाखों और बच्चे बाल श्रम की ओर आने के जोखिम में हैं।
बच्चों के मां बाप को दिलाया जाता है शासन की योजनाओं का लाभ
इस सम्बंध में श्रम उपायुक्त नदीम ने बताया कि बाल श्रम खास तौर दो वर्गों में देखने को मिलता है। खतरनाक उद्योगों व गैर खतरनाक उद्योगों में। खतरनाक उद्योंगों में नाबालिग बच्चों का पता चलने पर उनकी शिक्षा का इंतजाम किया जाता है। शिक्षा विभाग को ऐसे बच्चों के नामों की सूची दे दी जाती है।
शिक्षा विभाग उन्हें वे सारी सुविधाएं देता है, जो शिक्षा के इतर अन्य बच्चों को मुहैया कराई जाती है। ऐसे बच्चों के मां-बाप को श्रम विभाग के तहत चल रही योजनाओं में शामिल कर लाभ दिलाया जाता है। यदि ये लोग इस वर्ग में नहीं शामिल किए जा सकते हैं तो उनको उद्योग विभाग डूडा से जोड़कर रोजगार मुहैया कराने का प्रयास किया जाता है। हालांकि वह जिले में ऐसे बच्चों की संख्या नहीं बता सके।