“मैं राजीव कपूर महान एक्टर राज कपूर साहब का सबसे छोटा बेटा जिसे दुनिया सिर्फ एक.. फ़िल्म से जानती हैं” (एक इंटरव्यू के दौरान दिवंगत अभिनेता राजीव कपूर के शब्द)
कपूर खानदान ने खो दिए अपने दो नायाब मोती
कपूर फैमिली का नाम बॉलीवुड के इतिहास से जुड़ा हुआ है। फ़िल्म इंडस्ट्री की शुरुआत और यहीं रखी गयी कपूर परिवार की नींव। पृथ्वीराज कपूर से लेकर रणबीर कपूर तक लगभग हर पीढ़ी ने अपना नाम इस इंडस्ट्री में दर्ज किया है और इसी के इर्द गिर्द एक मुकाम भी हासिल किया है।
लेकिन इस परिवार का एक चेहरा जो चर्चित तो हुआ लेकिन एक समय के बाद गुमनामी में ही जीता रहा। जी हां आप सही समझ रहें हैं – हम बात कर रहे हैं अस्सी – नब्बे के दशक के एक बेहद रोमांटिक एक्टर राजीव कपूर जी की। जिनका बीते मंगलवार को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। अभी तक ज्ञात खबरों की मानें तो उनकी मौत का कारण कार्डियक अरेस्ट बताया जा रहा हैं।
मशहूर बॉलीवुड अभिनेता निर्माता एवं निर्देशक राज कपूर के सबसे छोटे बेटे और पृथ्वीराज कपूर के पोते राजीव का जन्म 25 अगस्त 1962 में मुम्बई महाराष्ट्र में हुआ था। इनका निक नेम चिम्पू था और इसी नाम से इंडस्ट्री उन्हें जानती भी थी। उनके बड़े भाई चिंटू यानी कि ऋषि कपूर और रणधीर कपूर बॉलीवुड के बहुचर्चित चेहरे हैं। जिसमे ऋषि कपूर का निधन बीते साल हो गया एक ही साल में कपूर खानदान ने अपने दो नायाब मोती खोये है।
राजीव को कभी मिला ही नही उनके अभिनय का श्रेय
इस लेख की शुरुआत में राजीव के कहे शब्द से ही उनके भीतर समाए हुए दर्द की एक झलक देखने को मिलती है। दर्द ऐसा जो अंदर ही अंदर सारी उम्र उन्हें कचोटता रहा। एक टीस जो शायद कभी मेन स्ट्रीम मीडिया तक नही पहुँच पाई। तो चलिए एक बंद किताब के पन्नो को टटोलने की कोशिश करतें हैं और देखतें है कितने राज बाहर आतें हैं।
साल 1983 में “एक जान हैं हम” से अपने बॉलीवुड कॅरिअर की शुरुआत करने वाले राजीव कपूर की शुरुआती पारी दर्शको को कुछ ख़ास रास नही आई। ऐसा इसलिए नही था कि उनका अभिनय कम रहा इसके पीछे कमजोर और घिसी -पिटी कहानी को जिम्मेदार माना जा सकता है।
लेकिन ये बॉलीवुड है यहां आपका एक गलत कदम आपके आने वाले भविष्य को गड्ढे में धकेल सकता है। जैसे हर इंसान की ज़िंदगी मे एक ऐसा पल जरूर आता है जब मौका उसके सामने होता है बस वहां बाज़ी मारने की जरूरत रहतीं हैं। राजीव के सामने भी ऐसा मौका आया। जब आरके बैनर के तले उनके पिता राज कपूर के निर्देशन में बनी फिल्म “राम तेरी गंगा मैली” रिलीज़ हई।
इस फ़िल्म में राजीव मुख्य किरदार में थे और उनके ऑपोज़िट थी उस दौर में डेब्यू करने वाली अभिनेत्री मंदाकिनी। फ़िल्म दर्शको को खूब पसंद आई। अब लग रहा था कि राजीव कपूर की सोई हुई किस्मत के जागने वाली है लेकिन सब कुछ इससे उलट हुआ। फ़िल्म हिट जरूर हुई लेकिन इसका क्रेडिट ले गयी मंदाकिनी।
राजीव कपूर की पिता राज कपूर से नाराजगी
दरअसल उस फ़िल्म में मंदाकिनी के कुछ बोल्ड सीन्स को ज्यादा पसंद किया गया। जिस पर सेंसर की कैंची नही चली हालांकि इस फ़िल्म के आने के बाद इस पर काफी बवाल भी हुआ। लेकिन ये तो हमारी इंडस्ट्री की पुरानी आदत है “जितना बड़ा बवाल फ़िल्म उतनी बड़ी हिट।”
खैर.. राजीव कपूर यहां भी कमजोर पड़े फिर बीच में राजीव के अपने पिता राज कपूर से अनबन की खबरें ख़ूब आयी। मीडिया ने इसे ज्यादा टूल दिया। खबर में कितनी सच्चाई थी या बिल्कुल नही थी इसका जिक्र कभी खुल कर तो नही हुआ, पर ऐसा माना जाता है कि इस नाराजगी के कारण ही राजीव अपने पिता के अंतिम दर्शन के समय वहां उपस्थित नही हुए थे ।
दरअसल राजीव चाहतें थे कि पिता राज कपूर उनके लिए एक और फ़िल्म बनाये जिसमे उन्हें मुख्य किरदार या नायक के रूप में प्रोजेक्ट किया जाए लेकिन राज कपूर साहब तो अपने मर्जी के मालिक थें। उन्होंने बेटे की कही बात नही मानी और उसे अपने साथ असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में काम सौपने दिया। बस यही से दोनों के बीच नाराजगी का दौर शुरू हुआ।
राजीव को अभिनय में नही मिली कामयाबी तो निर्माता के रूप में किस्मत आजमाई
एक अभिनेता के रूप में राजीव की अंतिम फ़िल्म साल 1990 में आई “ज़िम्मेदार” थी जो कि बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप रही। अब राजीव ने अभिनय छोड़ निर्माता और निर्देशक के रूप में नई पारी खेलनी चाही। उनके निर्देशन में बनी फिल्म प्रेम ग्रंथ, आ अब लौट चलें और हीना भी बॉक्स आफिस पर कुछ ख़ास धूम नहीं मचा सकी और अपने 13 साल के बॉलीवुड कॅरिअर में राजीव ने बहुत से उतार चढ़ाव देखें।
अंत मे इंडस्ट्री से दूर रहना ही सबसे मुनासिब समझा। बॉलीवुड से उनकी ये दूरी कुछ मायने में सही भी थी पर शायद उन्हें अपने आप से एक मलाल रह गया जो उनके इस शब्द में जाहिर हो रहा है।
एक टीवी इंटरव्यू के दौरान राजीव के कहे शब्द
“बाप बड़ा, बहुत बड़ा… जिसे दुनिया महान कहतीं हैं। मेरे दो भाई और दो बहनें और दोनों ही बहनें उस दौर की, जब उनसे परिवार में ज्यादा उम्मीद नहीं की जाती थी, मगर फिर भी उन्होंने इंडस्ट्री में अपनी – अपनी जगह बनाई। भाइयों में एक हिट हीरो हुआ।
दूसरा कम चला मगर फिर उनकी दोनों बेटियों ने फिल्म इंडस्ट्री पर तो जम कर राज किया। और मैं… सबसे पीछे रह गया, साधारण ग्लैमर से दूर, पर कोई अफसोस नहीं हैं। यूं जीने का भी अपना सुकून है पब्लिक की नजर और स्क्रूटिनी से दूर बिल्कुल शांत”
गरिमा सिंह (दिल्ली विश्वविद्यालय)
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