नई दिल्ली: करीब 41 सालों से संसदीय राजनीति में सक्रिय रहे वरिष्ठ कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा में कार्यकाल पूरा हो रहा है। ऐसे में आज (मंगलवार को) अपने विदाई भाषण में उन्होंने कहा कि मुझे अपने हिंदुस्तानी मुसलमान होने पर फख्र है। उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में समाज में जिस तरह की बुराइयां हैं, वह हिंदुस्तानी मुसलमानों में नहीं हैं।
नेहरू-गांधी परिवार के करीबी और विश्वासपात्रों की सूची में गुलाम नबी आजाद का नाम प्रमुखता से आता है। उनकी तेज तर्रार प्रतिक्रिया और स्पष्ट नीति के कारण जटिल से जटिल मुद्दों पर भी कांग्रेस पार्टी अपना स्टैंड तय करने में कामयाब रही है। घटक दलों को साथ जोड़ने और रूठे को मनाने जैसे मसलों पर कांग्रेस के लिए गुलाम नबी आजाद एक महत्वपूर्ण कड़ी रहे हैं। उनकी इस खूबी की वजह से ही कांग्रेस आलाकमान का भरोसा इन पर मजबूत रहा है।
41 सालों का लम्बा संसदीय राजनीति कार्यकाल
जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले से नाता रखने वाले गुलाम नबी आजाद का जन्म 07 मार्च, 1949 को हुआ था। अपने 41 सालों के लंबे संसदीय राजनीति कार्यकाल में वह वर्ष 2014 से राज्यसभा में विपक्ष के नेता भी रहे। इस दौरान वह पांच बार राज्यसभा और दो बार लोकसभा सांसद रहे।
वर्ष 1973 में कांग्रेस के सदस्य के तौर पर सक्रिय राजनीति में कदम रखने वाले गुलाम नबी आजाद 1973-75 के बीच ब्लेस्सा की पार्टी समिति के ब्लॉक सचिव का पद संभाला था। इसके बाद 1975 में वो जम्मू-कश्मीर युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और फिर 1977 में डोडा जिले के कांग्रेस अध्यक्ष बने।
वर्ष 1978 से 1981 तक आजाद ने अखिल भारतीय मुस्लिम युवा कांग्रेस के अध्यक्ष का पद भी संभाला। इसके बाद 1986 में कांग्रेस कार्य समिति के भी सदस्य बनाए गए। फिर वर्ष 1987 में वह अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव बने और नौ बार इस पद पर बने रहे।
पार्टी में विश्वसनीयता बनाते हुए आजाद ने कई केंद्रीय मंत्रालय भी संभाले। इनमें मुख्यत: पर्यटन, नागरिक उड्डयन और संसदीय मामले शामिल रहे। वहीं आजाद के जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस समिति का अध्यक्ष रहते कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में 21 सीटों पर जीत मिली थी। तब कांग्रेस दूसरी बार प्रदेश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनकर उभरी थी। गुलाम नबी आजाद जम्मू-कश्मीर राज्य के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं।
विदाई भाषण में भावुक हुए आजाद, कहा- ‘खुदा से दुआ, कश्मीर में खत्म हो आतंकवाद’
राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद मंगलवार को अपने कार्यकाल की समाप्ति पर दिए भाषण में भावुक हो गये। उन्होंने भाषण के अंत में आतंकी कार्रवाई का एक वाकया याद करते हुए कश्मीर से आतंकवाद के खात्मे की कामना की। उन्होंने कहा कि वो खुश किस्मत हैं कि उन्हें पाकिस्तान जाने का मौका नहीं मिला। उन्हें एक हिन्दुस्तानी मुसलमान होने पर गर्व है।
राज्यसभा से मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के चार सदस्य गुलाम नबी आजाद, शमशेर सिंह, मीर मोहम्मद फैयाज और नजीर अहमद का कार्यकाल समाप्त हो गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित अन्य नेताओं के विदाई वक्तव्य के बाद गुलाम नबी आजाद ने अपने संबोधन में कहा कि उनका जन्म जम्मू में हुआ लेकिन उनकी शिक्षा कश्मीर में हुई।
भारतीय मुसलमान होने पर गर्व
उन्होंने वह दौर भी देखा है जब वहां पाकिस्तान की आजादी के दिन 14 अगस्त को जश्न मनाया जाता था। तब वह उन गिने-चुने लोगों में से होते थे जो भारत का गणतंत्र दिवस मनाते थे। आज वह जब पाकिस्तान की ओर देखते हैं तो उन्हें भारतीय मुसलमान होने पर गर्व महसूस होता है।
आजाद ने कहा, “मैं कभी पाकिस्तान नहीं गया और मुझे लगता है कि मैं भाग्यशाली हूं। मैं उन सौभाग्यशाली लोगों में से हूं, जो कभी पाकिस्तान नहीं गए। जब मैं पाकिस्तान में परिस्थितियों के बारे में पढ़ता हूं, तो मुझे हिंदुस्तानी मुसलमान होने पर गर्व महसूस होता है।” आजाद ने अपने भाषण में उन क्षणों का जिक्र किया जब वह संजय गांधी, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के निधन पर बहुत रोए थे।
ओडिशा में बाढ़ के दौरान हालात देखकर और जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले में गुजरात के लोगों की मौत पर भी वह बहुत रोए थे। गुजरात के लोगों पर आतंकी हमले का जिक्र आते ही वह भावुक हो गए और कहा कि आज वह यही दुआ करते हैं कि इस देश से आतंकवाद खत्म हो जाए।
कश्मीरी पंडितों का जिक्र करते हुए आजाद ने कहा कि उजड़े आशियानों के लिए आज हमें फिर से प्रयास करना है। उन्होंने कहा, “गुजर गया वो जो छोटा सा एक फसाना था, फूल थे चमन था आशियाना था। न पूछ उजड़े नशेमन की दांस्तां, मत पूछ कि चार तिनके थे लेकिन आशियाना तो था।” उन्होंने सदन से अलग होने के बाद भी मिलते रहने तथा याद किए जाने को लेकर आशा व्यक्त करते हुए कहा कि ‘दिल ना उम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है, लम्बी है गम की शाम, मगर शाम ही तो है।’
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