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इंडो-गंगेटिक प्लेन के प्रदूषण का हिमालय के पर्यावरण पर बुरा असर

-'एयरोसोल, वायु गुणवत्ता, जलवायु परिवर्तन और ग्रेटर हिमालय में जल संसाधन और आजीविका पर प्रभाव' पर एरीज में आयोजित हुआ ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन

नैनीताल इंडो-गंगेटिक प्लेन: मुख्यालय स्थित एरीज यानी आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर के सहयोग से संयुक्त रूप से ‘एयरोसोल, वायु गुणवत्ता, जलवायु परिवर्तन और जल संसाधनों और आजीविका पर प्रभाव’ पर तीन दिवसीय ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन हुआ। 14 से 16 सितम्बर के बीच आयोजित हुए इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य वायुमंडलीय एयरोसोल, वायु प्रदूषण और हिमालयी जलवायु परिवर्तन और मॉनसून, ग्लेशियर, जल संसाधनों आदि पर इसके प्रभाव के बारे में ज्ञान को साझा करना रहा। 

सम्मेलन का उद्घाटन मुख्य अतिथि भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के जलवायु परिवर्तन कार्यालय के सलाहकार और प्रमुख डॉ. अखिलेश गुप्ता ने किया। सम्मेलन में गढ़वाल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो अन्नपूर्णा नौटियाल, एरीज के निदेशक प्रो. दीपांकर बैनर्जी, पूर्व निदेशक प्रो. राम सागर, के साथयूलेन्स एजुकेशन फाउंडेशन नेपाल की सीईओ प्रो. अर्निको पांडे ने विषय पर चर्चा करते हुए कहा कि हिमालय पर एयरोसोल्स और वायु प्रदूषक सामग्री अधिक तेजी से खतरनाक साबित होते हुए बढ़ती है। इससे हिमालयी क्षेत्र में तापमान बढ़ रहा है और हिमालय के ग्लेशियर बहुत तेज गति से पिघल रहे हैं। इससे बाढ़ आदि की आशंका बढ़ जाती है। 

इंडो-गंगेटिक प्लेन
इंडो-गंगेटिक प्लेन क्षेत्र में फसल जलने की गंभीर समस्या

प्रो. होपके ने कहा कि भारत, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश को जोड़ने वाला भारत-गंगा का मैदान एक वैश्विक आकर्षण का केंद्र है। इंडो-गंगेटिक प्लेन क्षेत्र में फसल जलने की गंभीर समस्या है और बड़े पैमाने पर उद्योगों, ऑटोमोबाइल आदि के कारण प्रदूषण का स्तर बढ़ता है। यह प्रदूषक धूल कण और एयरोसोल हिमालयी क्षेत्र में पहुंचते हैं और हिमालय के पर्यावरण व ग्लेशियरों पर विपरीत प्रभाव डालते हैं।

दिमित्रिस ने हिमालय पर एयरोसोल्स के बड़े अवशोषित एयरोसोल्स, धूल में मौजूद ब्लैक कार्बन और ब्राउन कार्बन, कार्बोनेसियस एयरोसोल आदि विभिन्न प्रकारों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि पश्चिमी भारत और धूल के परिवहन से हिमालय के वातावरण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। प्रो. त्रिपाठी ने वायु प्रदूषण की माप के लिए कम लागत वाले सेंसर के महत्व को समझाया। 

प्रो. रितेश गौतम, प्रो. शुभा वर्मा, प्रो. जोनास और प्रो. हरीश चंद्र नैनवाल ने कहा कि हिमालय ग्लेशियर के पिघलने में विशेष रूप से ब्लैक कार्बन और ब्राउन कार्बन हिमालय पर बेहद बुरा प्रभाव डालते हैं और तापमान में वृद्धि करते हैं। डॉ. नीरज, डा. जेसी कुणियाल, डॉ. मनीष नाजा, डॉ. नरेंद्र सिंह व डॉ. किरपा राम ने भी हिमालय क्षेत्र में महाद्वीपीय एयरोसोल के परिवहन की व्याख्या की।

यह भी पढ़ें: इथेनॉल के स्वतंत्र ईंधन के रूप में इस्तेमाल को मिली मंजूरी

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