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December 26, 2024
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ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों का हो सकेगा निर्यात

- ​फिलीपींस, वियतनाम, मिस्र और ओमान सहित कई देशों ने खरीदने में दिखाई दिलचस्पी
- ​निर्यात परमिट देने के बाद अब रूस-भारत की सरकारों ने दी ​डेवलपर को हरी झंडी 

नई दिल्ली: सुपरसॉनिक ब्रह्मोस क्रूज मिसाइलों का अब तीसरे देशों को निर्यात करने का रास्ता साफ हो गया है। रूसी-भारतीय ​​डेवलपर को रूस और भारत सरका​​र से पहले ही ​​निर्यात परमिट दिए जा चुके हैं। इसके बाद ब्रह्मोस मिसाइलों की खरीद में कई देशों ने रुचि दिखाई है लेकिन दोनों सरकारों से हरी झंडी न मिलने से इन ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का तीसरे देशों को निर्यात नहीं हो पा रहा था। 

रूस की एनपीओ मशीनोस्ट्रोयेनिया तथा भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने संयुक्त रूप से इसका विकास किया है। यह रूस की पी-800 ओंकिस क्रूज मिसाइल की प्रौद्योगिकी पर आधारित है। ब्रह्मोस कम दूरी की सुपरसॉनिक क्रूज मिसाइल है। इसे पनडुब्बी, पानी के जहाज, विमान या जमीन से भी छोड़ा जा सकता है। ब्रह्मोस के समुद्री तथा थल संस्करणों का पहले ही सफलतापूर्वक परीक्षण किया जा चुका है तथा भारतीय सेना एवं नौसेना को सौंपा जा चुका है। 

ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल
ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल

ब्रह्मोस​ ​अब तक की सबसे आधुनिक प्रक्षेपास्त्र प्रणाली

भारत और रूस के सहयोग से विकसित की गई ब्रह्मोस​ ​अब तक की सबसे आधुनिक प्रक्षेपास्त्र प्रणाली है और इसने भारत को मिसाइल तकनीक में अग्रणी देश बना दिया है। ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का सबसे पहला और सफल परीक्षण 18 दिसम्बर, 2009 को भारत ने गुरुवार को बंगाल की खाड़ी में किया था। ब्रह्मोस नाम भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मस्कवा नदी पर रखा गया है। इस परियोजना में रूस प्रक्षेपास्त्र तकनीक उपलब्ध करवा रहा है और उड़ान के दौरान मार्गदर्शन करने की क्षमता भारत ने विकसित की है।

सुपरसोनिक क्रूज ब्रह्मोस मिसाइलों के रूसी-भारतीय डेवलपर ​​ब्रह्मोस के मुख्य महाप्रबंधक प्रवीण पाठक ने सोमवार को कहा कि ​​​फिलीपींस, वियतनाम, मिस्र और ओमान सहित कई देशों ने ​​ब्रह्मोस मिसाइलों की खरीद में बहुत रुचि दिखाई है। अब हम अपने रूसी सहयोगियों के साथ काम कर रहे हैं। हमें रूस और भारत सरकार से पहले ही निर्यात परमिट मिल चुके हैं। ​अब रूस और भारत की सरकारों ने तीसरे देशों को निर्यात करने की मंजूरी दे दी है​।​​ 

​हम वास्तव में आशा करते हैं कि कोरोना महामारी खत्म होने के बाद हम ​दूसरे देशों को ​ब्रह्मोस​ मिसाइलों का निर्यात कर सकेंगे​​। ब्रह्मोस एयरोस्पेस की स्थापना 1998 में रूसी रॉकेट और मिसाइल डेवलपर एनपीओ माशिनोस्ट्रोएनिया और भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन के संयुक्त उद्यम के रूप में की गई थी।  

ब्रह्मोस मिसाइल की खासियत

​- ​यह हवा में ही मार्ग बदल सकती है और चलते फिरते लक्ष्य को भी भेदने में सक्षम

– ​इसको वर्टिकल या सीधे कैसे भी प्रक्षेपक से दागा जा सकता है।

– यह मिसाइल तकनीक थलसेना, जलसेना और वायुसेना तीनों के काम आ सकती है।

– यह 10 मीटर की ऊंचाई पर उड़ान भर सकती है और रडार की पकड़ में नहीं आती।

– अन्य मिसाइल पहचान प्रणाली को धोखा देने में सक्षम है, इसे मार गिराना असम्भव

– ब्रह्मोस की प्रहार क्षमता अमेरिका की टॉम हॉक से लगभग दुगनी और अधिक तेज

– आम मिसाइलों के विपरीत यह मिसाइल हवा को खींच कर रेमजेट तकनीक से ऊर्जा प्राप्त करती है।

– यह मिसाइल 1200 यूनिट ऊर्जा पैदा कर अपने लक्ष्य को तहस-नहस कर सकती है।

यह भी पढ़ें: अब हर सैनिकों के कंधे पर होगी ‘इग्ला मिसाइल’

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