-सेबी ने प्रवर्तकों की न्यूनतम लॉक-इन अवधि को घटाकर किया 18 महीने
नई दिल्ली: भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने प्रवर्तकों के निवेश के लिए प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश (IPO) के बाद न्यूनतम लॉक-इन अवधि को कुछ शर्तों के साथ 3 वर्ष से घटाकर 18 महीने कर दिया है।
SEBI ने यह कदम ऐसे समय में उठाया है, जब कई कंपनियां शेयर बाजारों में सूचीबद्ध होना चाह रही हैं। इसके अलावा बाजार नियामक ने समूह कंपनियों के लिए प्रकटीकरण संबंधित जरुरतों को भी सुव्यवस्थित किया है।

सेबी ने मंगलवार को जारी एक अधिसूचना में कहा कि यदि इश्यू का मकसद किसी परियोजना के लिए पूंजीगत व्यय का वित्तपोषण को छोड़ कुछ और या बिक्री पेशकश है, तो प्रवर्तकों की कम से कम 20 फीसदी हिस्सेदारी 18 महीने के लिए लॉक-इन होगी।
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फिलहाल यह लॉक-इन अवधि 3 वर्ष के लिए है। पूंजीगत व्यय में अन्य के साथ सिविल कार्य, विविध अचल संपत्तियां, भूमि की खरीद, भवन, संयंत्र और मशीनरी आदि शामिल हैं। इसके अलावा SEBI ने प्रवर्तकों की न्यूनतम 20 फीसदी से ज्यादा की हिस्सेदारी के लिए लॉक-इन अवधि को भी मौजूदा एक वर्ष से घटाकर 6 महीने कर दिया है।
SEBI ने न्यूनतम लॉक-इन अवधि को घटाकर किया 18 महीने
बाजार नियामक ने प्रवर्तकों के अलावा अन्य व्यक्तियों द्वारा IPO से पूर्व प्राप्त प्रतिभूतियों के लिए भी लॉक इन अवधि को आवंटन की तिथि से घटाकर 6 माह कर दिया है। फिलहाल यह अवधि एक साल है। इसके अलावा नियामक ने IPO के समय खुलासा जरूरतों को भी घटा दिया है।
उल्लेखनीय है कि SEBI ने IPO लाने वाली कंपनी की समूह कंपनियों के बारे में पेशकश दस्तावेज में जानकारी दिए जाने की आवश्यकताओं को तर्कसंगत किया है। इसमें समूह की सूचीबद्ध और गैर-सूचीबद्ध शीर्ष पांच कंपनियों के वित्तीय खुलासे को छोड़ दिया गया है, जो समूह कंपनियों के वेबसाइट पर उपलब्ध होगी।
SEBI के बोर्ड ने इस महीने की शुरुआत में इस संबंध में एक प्रस्ताव को मंजूरी देने के बाद यह कदम उठाया है। SEBI ने इसे प्रभाव में लाने के लिए पूंजी निर्गम और खुलासा आवश्यकता (ICDR) नियमों में भी संशोधन किया है।