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June 26, 2025
देश

पत्रकार मारिया रेसा और दिमित्री मुराटोव को इस वर्ष का नोबेल शांति पुरस्कार

नई दिल्ली: नॉर्वेजियन नोबेल समिति ने ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ की रक्षा के लिए दो पत्रकारों मारिया रेसा और दिमित्री मुराटोव को 2021 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चुना है।

नोबेल समिति की ओर दी गई जानकारी के अनुसार रेसा और मुराटोव को फिलीपींस और रूस में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ी ‘साहसी लड़ाई’ के लिए शांति पुरस्कार दिया जा रहा है। समिति का मानना है कि दोनों दुनिया में लोकतंत्र और प्रेस की स्वतंत्रता के लिए प्रतिकूल होती जा रही परिस्थितियों का सामना कर रहे सभी पत्रकारों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

नोबेल शांति पुरस्कार

‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का एक निडर रक्षक किया है साबित

समिति के अनुसार मारिया रेसा ने अपने मूल देश फिलीपींस में सत्ता के दुरुपयोग, हिंसा के इस्तेमाल और बढ़ते अधिनायकवाद को उजागर किया है। 2012 में उन्होंने खोजी पत्रकारिता के लिए एक डिजिटल मीडिया कंपनी रॉप्पलर की सह-स्थापना की। वह आज भी इसकी प्रमुख हैं।

एक पत्रकार और सीईओ के रूप में रेसा ने खुद को ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का एक निडर रक्षक साबित किया है। इन्होंने दुतेर्ते शासन के विवादास्पद, जानलेवा ड्रग-विरोधी अभियान की आलोचना की।

इस ड्रग विरोधी अभियान में इतनी बड़ी संख्या में मौतें हुईं, जो अपनी आबादी के खिलाफ छेड़े गए युद्ध की तरह प्रतीत होती हैं। उन्होंने दर्शाया है कि कैसे सोशल मीडिया का उपयोग नकली समाचार फैलाने, विरोधियों को परेशान करने और सार्वजनिक सोच में बदलाव करने के लिए किया जा रहा है।

1995 से दिमित्री मुराटोव 24 वर्षों तक अखबार के प्रधान संपादक

नॉर्वेजियन नोबेल समिति के अनुसार दिमित्री आंद्रेयेविच मुराटोव ने दशकों से रूस में तेजी से चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का बचाव किया है। 1993 में, वह स्वतंत्र समाचार पत्र नोवाजा गजेटा के संस्थापकों में से एक थे। 1995 से वे कुल 24 वर्षों तक अखबार के प्रधान संपादक रहे हैं।

नोवाजा गजेटा आज रूस में सबसे स्वतंत्र समाचार पत्र है। इसमें सत्ता के प्रति मौलिक रूप से आलोचनात्मक रवैया रखा गया है। समाचार पत्र की तथ्य-आधारित पत्रकारिता और पेशेवर अखंडता ने इसे रूसी समाज के निंदात्मक पहलुओं पर जानकारी का एक महत्वपूर्ण स्रोत बना दिया है, जिसका शायद ही कभी अन्य मीडिया द्वारा उल्लेख किया गया हो।

1993 में अपनी शुरुआत के बाद से नोवाजा गजेटा ने भ्रष्टाचार, पुलिस हिंसा, गैरकानूनी गिरफ्तारी, चुनावी धोखाधड़ी और ‘ट्रोल फैक्टरी’ से लेकर रूस के भीतर और बाहर रूसी सैन्य बलों के उपयोग तक के विषयों पर महत्वपूर्ण लेख प्रकाशित किए हैं।

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समिति के अनुसार नोवाजा गजेटा को विरोधियों की ओर से उत्पीड़न, धमकी, हिंसा और हत्या का शिकार होना पड़ा है। समाचार पत्र की शुरुआत के बाद से, इसके छह पत्रकार मारे गए हैं, जिनमें अन्ना पोलितकोवस्काजा भी शामिल हैं, जिन्होंने चेचन्या में युद्ध से जुड़े खुलासे किए थे। हत्याओं और धमकियों के बावजूद, प्रधान संपादक मुराटोव ने अखबार की स्वतंत्र नीति को छोड़ने से इनकार कर दिया है।

102 बार प्रदान किया गया है नोबेल शांति पुरस्कार

समिति का कहना है कि स्वतंत्र और तथ्य आधारित पत्रकारिता सत्ता के दुरुपयोग, झूठ और प्रोपेगेंडा से बचाने का काम करती है। नॉर्वेजियन नोबेल समिति मानती है कि जागरूक समाज के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जानकारी की स्वतंत्रता जरूरी है। ये अधिकार लोकतंत्र और युद्ध तथा संघर्ष से बचाव के लिए बेहद जरूरी हैं।

मारिया रेसा और दिमित्री मुराटोव को नोबेल शांति पुरस्कार देने का उद्देश्य इन मौलिक अधिकारों की रक्षा और बचाव के महत्व को रेखांकित करना है। अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता के बिना वर्तमान समय में राष्ट्रों के बीच भाईचारे, निरस्त्रीकरण और एक बेहतर दुनिया पाने का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल है।

नोबेल शांति पुरस्कार 1901 और 2021 के बीच 102 बार प्रदान किया गया है। अब तक 109 व्यक्ति और 25 संगठन इसे प्राप्त कर चुके हैं। रेड क्रॉस की अंतरराष्ट्रीय समिति को तीन बार (1917, 1944 और 1963 में) नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, और शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त कार्यालय को दो बार (1954 और 1981 में) नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

नोबेल भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, चिकित्सा, साहित्य, शांति और अर्थशास्त्र में दिया जाने वाला दुनिया का सबसे बड़ा और प्रतिष्ठित पुरस्कार है।

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