हमेशा से ही खुशाल दिखने वाले भारत की स्थिति अब समय के साथ बदलती जा रही है। वर्तमान में चारों तरफ नकारात्मकता आसानी से देखने को मिल रही है। लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर दिखाई दे रहा है। कई लोगों में अवसाद यानी डिप्रेशन के लक्षण और तनाव की स्थिति देखने को मिल रही है। लोगों के मन में गम सहने की हिम्मत सिमट रही है।
हर सातवां व्यक्ति मानसिक विकार से ग्रस्त
भारत में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं गंभीर रूप लेती जा रही हैं। ऐसे में समाज के लिए यह बेहद चिंता की बात है। रही-सही कसर कोरोना महामारी ने पूरी कर दी है जब से कोरोना आया है।
तब से यह संकेत मिल रहे हैं कि अलग-अलग आयु के लोगों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी स्थिति पहले से अधिक बिगड़ रही है। वर्ष 2020 की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में हर सातवां व्यक्ति किसी न किसी तरह के मानसिक विकार से ग्रस्त है। अभी भी बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी को घबराहट का सामना करना पड़ रहा है।
क्या है डिप्रेशन और इस के लक्षण?
अवसाद एक मानसिक रोग है, जिसमें व्यक्ति को अकेलापन उदासी और तनाव महसूस होता है। जिसे मुख्य तौर पर मनोदशा विकार से जोड़ा जाता है। इसका असर व्यक्ति की सोच और व्यवहार पर पड़ता है।
आज भले ही लोग शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर काफी सजग दिखाई दे रहे हैं, लेकिन मानसिक सेहत को संभालने की प्रवृत्ति आज भी उनमें दिखाई नहीं देती है। कई लोग बिगड़ी मनोस्थिति को स्वीकार नही कर पाते हैं। वे इस बात से अनजान है कि आज जो हमारी जीवनशैली है उसमें तनाव और अवसाद जीवन का हिस्सा बन चुके हैं।
कम उम्र में ही बढ़ रही है मानसिक बीमारियां
21 वी सदी में भी कई गांवों और कस्बें ऐसे हैं जहां डिप्रेशन के लक्षण व समस्या को अंधविश्वास से जोड़ दिया जाता है। हम जिस समाज में रह रहे हैं वहां मानसिक रोग और इससे जुड़ी हुई जितनी भी समस्याएं है उनका होना आज भी शर्म की बात मानी जाती है। कई लोग इसके बारे में अभी भी खुल कर बात नहीं करना चाहते हैं।
ऐसे में पीड़ित को ओर भी ज्यादा मुसीबतों का सामना करना पड़ जाता है। मनोवैज्ञानिक चिकित्सा प्रणाली में सुधार समय की आवश्यकता है। ताकि लोग इस समस्या को लेकर जागरूक हो सकें। इस समस्या का सबसे ज्यादा असर युवाओं में देखने को मिल रहा है। उन्हें कम उम्र में ही मानसिक बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है।
जीवन से हार मान लेने की बढ़ती प्रवृत्ति
हर उम्र और हर तबके के लोगों में जीवन से हार मान लेने की प्रवृत्ति बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। आज के दौर मे हर किसी के जीवन मे कोई न कोई उलझन और तनाव है। और यही अवसाद का सबसे बड़ा कारण है।
बार-बार नाकामयाबी मिलना, परिवार में क्लेश, नुकसान या किसी अपने की मृत्यु जैसे कारणों से व्यक्ति आसानी से अवसाद का शिकार हो जाता है। अवसाद से घिरा व्यक्ति अपने लिए ही विनाश का कारण बन रहा है। वह जीवन के बजाय मृत्यु के बारे में सोचने लगा है।
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पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के अधिक मामलें
भारत में अवसाद अब सबसे आम मानसिक विकार माना जा रहा है, ताजा आंकड़े बताते हैं कि 45.7 मिलियन लोग इससे ग्रस्त हैं। एसडीआई यानी उच्च सामाजिक-जनसांख्यिकीय सूचकांक राज्य समूह में अवसाद के विकारों के सबसे अधिक प्रसार को तमिलनाडु, केरल, गोवा और तेलंगाना में देखा गया है, वही सबसे कम आंध्र प्रदेश और ओडिशा में अवसाद के विकारों को देखा गया है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को अधिक अवसाद यानी डिप्रेशन के मामलें देखने को मिले हैं।
नीतियों और सुविधाओं की आवश्यकता
काम में या अन्य चीजों में मन न लगना, उदासी महसूस होना, नींद में कमी आना, बेकार के ख्याल आना, थकान महसूस होना, एकाग्रता की कमी आना, ऐसा महसूस हो कि जीवन बोझ है। आमतौर पर डिप्रेशन के लक्षण और संकेत हैं।
दुनिया में सबसे बड़ी आबादी वाले देश भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए संसाधनों की काफी कमी हैं। शहर की तुलना में गांवों की स्थिति ओर भी खराब है। ऐसे में सरकार को ध्यान देने की ज़रूरत है। सही नीतियों और सुविधाओं की आवश्यकता है।