यूँ तो कोरोना संकट का सामना पुरा विश्व व्यापक स्तर पर कर ही रहा है। जहाँ एक ओर देश चरमराती हुई अर्थव्यवस्था से परेशान है, तो वहीं आम जनमानस से लेकर कारपोरेट सेक्टर पर भी इसकी छाप जम कर देखने को मिली हैं। अब ऐसे हालात में दिवाली की जगमगाहट में कमीं साफ़ तौर पर नज़र आ रही है।
दुनिया पिछले 8 महीनो से कोरोना की चपेट में हैं। ऐसे समय में देश में लगे लॉकडाउन ने ख़ास तौर पर मध्यम वर्ग की कमर तोड़ रखी है। जिसकी चर्चा औरों की अपेक्षा कम हुई है।
देश में एक राज्य से दूसरे राज्यों की ओर पलायन करतें मजदूर, गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते लोगों को आराम पहुँचाने के लिए सरकार ने अपनी नीतियों के तहत कुछ राहत देने कि कोशिश की है। जिसमे सबसे प्रमुख नवम्बर माह तक मुफ्त राशन वितरण व्यवस्था हैं।
ऐसे में ये देखना महत्वपूर्ण है कि सरकार ने मध्यम वर्ग को राहत पहुँचाने के लिए कौन से कदम उठाये? कोई कदम उठाये भी या नही? देखा जाये तो कोरोना ने मध्यम वर्ग की ज़िन्दगी एक ही झटके में अस्त – व्यस्त कर दी है।
लोगों के पास काम नही है, आय के साधन नगण्य होतें जा रहे हैं और सारी जमापूंजी अब धीरे – धीरे समाप्त होने की कगार पर है। अगर हम बात करें कोरोना संकट के दौरान नौकरी गवा देने वाले लोगों कि तो ये आंकड़ा निश्चित तौर पर हैरान कर देने वाला है।
कोरोना काल में 13 करोड़ लोगों ने अपनी नौकरी गवाई
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईइ) इंडियन सोसायटी ऑफ़ लेबर इकोनॉमिक्स के आंकड़ों कि माने तो कोरोना संकट के दौरान कुल 13 करोड़ नौकरी पेशा लोगों ने अपनी नौकरी गवाई हैं। इसमें 40 प्रतिशत यानी कि करीब सवा पाँच करोड़ के आस-पास लोगों को नौकरी से बर्खास्त होना पड़ा है, जो कि किसी निजी संसथान में काम करतें थे।
एक नज़र देश के बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, सूरत और बेंगलुरु पर डालें तो, हर साल त्यौहारों के मौके पर यहाँ कि तस्वीरें देखने लायक होती थी। तमान तरह कि लाइटों के साथ जगमग करते बाजारों की शोभा देखते बनती थी, पर इस बार मंजर हर बार से अलग हैं।
यूँ तो कोरोना महामारी के दौरान कई त्यौहार आये और गये, पर दीवाली पर बाजारों के गुलजार होने के अनुमान लगाएं जा रहें थे। लेकिन आम आदमी की जेब पर पड़ी मार के चलते अब सब कुछ धुंधला – धुंधला सा नज़र आ रहा है। अगर हम ऑटोमोबाइल, होटल, रेस्टोरेंट और टूरीरिस्म एंड ट्रैवेल सेक्टर की बात करें तो इस पर कोरोना का व्यापक असर पड़ता दिख रहा है।
अब जहाँ देश का माध्यम वर्ग, मजदूर और किसान देश के उत्पादन के साधनों में अपना योगदान देतें हैं तो वहीं ये तबका वस्तुओं के उपभोग का भी इंजन है।
इस बात का सटीक आंकलन सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी कि रिपोर्ट के अनुसार भी किया जा सकता है। पिछली तिमाही यानी कि अप्रैल से जून तक कि जीडीपी में अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट देखने को मिली थी।
ये गिरावट करीब 23 प्रतिशत के आस – पास रिकॉर्ड की गयी सबसे भारी गिरावटों में से एक है। ऐसे में ताजा खबरों की माने तो अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत को लेकर अपने अनुमान में भी अमूल – चूल परिवर्तन के निर्देश दिये है।
मध्यम वर्ग पर पड़ी मंदी की मार
आंकड़ो की मानें तो इस साल कि जीडीपी, दक्षिण एशिया के अन्य छोटें देशों जैसे- बांग्लादेश, भूटान, म्यामार और श्रीलंका से भी पीछे रहने वाली हैं। किसी भी देश की जीडीपी यह निर्धारित करती है कि, उस देश में प्रति व्यक्ति कितना उद्पादन किया जा रहा है। ऐसे में इस साल कि माने तो बांग्लादेश कि जीडीपी 1888 डॉलर रहेगी, जबकि भारत कि जीडीपी मात्रा 1877 डॉलर ही रह जाएगी।
GDP के मामले में भारत, दक्षिण एशिया में सिर्फ पाकिस्तान और नेपाल से ही बेहतर स्थिति में हैं। अब ऐसे में ये तो साफ़ है कि साल 2020 अर्थव्यवस्था की दृष्टि से काफ़ी परेशानी पैदा करने वाला है। क्योंकि इस समय उत्पाद और सेवाओं का वितरण ठहर सा गया है। जब तक माल और सेवाओं का वितरण सही ढंग से नहीं होगा जीडीपी में ग्रोथ के कोई अशआर नज़र नही आ रहें हैं।
जीडीपी सीधे तौर पर उत्पाद और सेवाओं कि संख्या और आयतन पर निर्भर करतीं है और इसकी कमी से व्यापार का टर्न ओवर कम होता जा रहा है। बाजार में लिक्विडिटी नही है। जिसके कारण पूरी अर्थव्यवस्था ठप्प सी पड़ गयी है। ऐसे में सरकार के राजस्व में कमी आयी है और आम लोगों के पास पैसे की कमी है।
ऐसी स्थिति में सरकार को चाहिए था कि मध्यम वर्ग को सीधे तौर पर राहत मुहैया कराई जाए, लेकिन ऐसा कोई कदम सरकार उठाने को तैयार नही। इन दिनों देश के प्रधानमंत्री पुरे देश से दीवाली पर लोकल फॉर वोकल होनें का संदेश देते नज़र आ रहैं है, देखतें है इसका कितना असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है और इसका आम जनमानस की ज़िन्दगी पर।
गरिमा सिंह
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