ख़ाली कन्धों पर जिम्मेदारियों का बोझ उठा कर चलने को तैयार एक युवक तब अपने आप में हारा हुआ महसूस करने लगता है जब उसे अपनी काबिलियत के अनुसार मनचाहा काम नहीं मिलता। तब हम कहतें कि देखो फलां आदमी बेरोजगार है।
बेरोजगार…. एक ऐसा शब्द है, जो शब्द कम और ज़ख्म ज्यादा लगता है। बेरोजगारी का असल मायने में आशय यह है कि जब कोई व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार बाजार में उपलब्ध काम तो करना चाहता है लेकिन उसे उसकी योग्यता के अनुरूप कार्य नही मिलता।
जैसे मान लीजिए कि, कोई शख़्स एमए पास है और वो इस योग्यता के साथ निर्धारित श्रम दर पर काम करने को इच्छुक है, लेकिन उसकी योग्यता के अनुरूप बाज़ार में काम उपलभ्ध ही नही है।
इस श्रेणी में हम उन तमाम लोगों को शामिल करतें हैं जो काम करने के इच्छुक है, इसमें 15 से 59 साल तक के सभी नागरिकों को शामिल करतें हैं जो अपनी पढ़ाई पूरी क़र चुके हैं, बाकायदे किसी काम की ट्रेनिग भी ले चुके हैं और काम करना चाहतें हैं।
बेरोजगारों में उन लोगों को शामिल नही किया जाता जो काम करना ही नही चाहतें और जो काम करने के योग्य नही है जैसे – बुजुर्ग, बच्चे, विद्यार्थी और बीमार व्यक्ति, यहाँ उन व्यक्तियों को भी शामिल नही किया जाता जो कि अपना व्यापर खोलने की कोशिश में लगें हों।
कोरोना ने गढ़ दी बेरोजगारी की नई परिभाषा
बेरोजगारी…….वर्तमान परिदृश्यों में इस शब्द कि प्राथमिकता इतनी बढ़ जाएगी ये तो कभी सोचा नही था, पर कोरोना ने इस शब्द की वास्तविक परिभाषा गढ़ के रख दी है।
इन दिनों बेरोजगारी का आलम तो ये हो गया है कि, क्या बीए, क्या बी एससी, क्या एमबीए और क्या पीएचडी, सब के सब एक ही कतार में लगे हुए है। हालात तो तब पता चलतें है, जब एक सफाई कर्मचारी कि रिक्तियों को पूर्ण करने के लिए डिप्लोमा और पीएचडी होल्डर तक आवेदन करने लगतें है।
तब ऐसे समय में सवाल ये उठता है कि आखिर इसका जिम्मेदार कौन है? क्यों सरकारें अपने एजेंडे में इतने बड़े मुद्दे को मात्र दिखावे के रूप में जगह देती है? देश के युवाओं के उज्जवल भविष्य का ठीकरा आखिर किसके सर फ़ोड़ा जा सकता है?
और ऐसा क्या हो गया कि आज़ादी के 70 साल बाद भी हम इन तमाम सवालो के जवाब नही ढूंढ पाएं। आइये आज कुछ सवालो के जवाब टटोलने की कोशिश करतें हैं।
सियासतदारों से मेरे कुछ सवाल
सवाल नंबर एक - आखिर आज़ादी के 72 साल बाद भी सरकारें नौकरी देने में क्यों असमर्थ है? नंबर दो - बेरोजगारी दर क्या है और इसका आंकलन कैसे करतें हैं? सवाल नम्बर तीन - बेरोजगारी के सरकारी आंकड़ें क्या कुछ हाल बयां करतें है साथ ही कोरोना ने कितने बदत्तर किये हालात?
जहाँ तक बेरोजगारी का सवाल है कई सरकारों और सियासी पार्टियों ने इसका प्रयोग एजेंडे के रूप में किया। साल 2014 में एनडीए ने भी हर साल 2 करोड़ नौकरियों का वादा युवाओं को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए किया था। हाँ ये बात और है कि उसे एक चुनावी जुमले में तब्दील में होने में ज्यादा वक्त नहीं लगा।
फिर हाल ही में बिहार चुनाव में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने भी युवाओं को रिझाने के लिए 10 लाख नौकरी देने का वादा कर डाला युवाओं ने जम कर वोट भी किया, लेकिन मामला बहुमत के आंकड़े को छू नही पाया और शायद युवाओं का सपना इस बार भी टूट गया।
श्रम शक्ति धारणा के अनुसार क्या है बेरोजगारी दर
आपने कई बार न्यूज़ चैनलों और अख़बारों के पन्नो में ये खबरें पढ़ी होगी कि बेरोजगारी दर अपने चरम पर है। आखिर इसके मायने क्या हैं। दरअसल बेरोजगारी दर को श्रम शक्ति धारणा के अनुसार एक सूत्र में बाँधा गया है। जिसके अनुसार बेरोजगारों की संख्या और वर्तमान समय मे उबलब्ध काम की संख्या से भाग देकर निकाला जाता है जिसमे 100 से गुणा कर प्रतिशत दर निकली जाती हैं।
बेरोजगारी दर = बेरोजगारों की संख्या/ श्रम शक्ति × 100 = – – %
कोरोना महामारी ने बद से बदत्तर किये हालात
एक नज़र सरकारी आंकड़ों पर डालें तो मालूम होगा कि, स्थिति कितनी विकट होती जा रहीं है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के अनुसार कोरोना महामारी के बाद से ही बेरोजगारी दर में बेतहाशा बृद्धि देखने को मिली है।
जहाँ इस साल जून में ये दर शहरी इलाकों में 12.02 और ग्रामीण इलाकों में 10.52 तक दर्ज की गयी थी, तो वहीं जुलाई में अनलॉक की प्रक्रिया के दौरान हालात कुछ सुधरें थे।
जुलाई माह में बेरोजगारी दर शहरी इलाके में 9.15 थी, तो वहीं ग्रामीण इलाकों में 6.6 थी। कयास लगाये जा रहें थे की अगस्त में हालात सुधरेंगे लेकिन ऐसा नही हुआ और एक बार फिर इसमें रिकॉर्ड बढ़ोतरी दर्ज की गयी।
सीएमआईइ की ताज जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि अगस्त महीने में शहरी बेरोजगारी दर फिर से बढ़ कर 9.83 तक पहुँच गयी है तो वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में ये आंकड़ा 7.65 तक पहुँच गया है।
क्यों युवाओं ने पीएम के जन्मदिन पर मनाया राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस
आपको याद होगा इस साल सितंबर माह में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिवस को भी कई यूथ संगठनों ने राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस तक घोषित कर दिया था। और देश भर में राष्ट्र व्यापी अभियान भी चलाया था।
सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक इसका जिक्र हो रहा था । लेकिन सोचने वाली बात तो ये है कि, आखिर उसका फायदा कितना हुआ? ये कहना अतिश्योक्ति होगी कि साल के अंत तक सब कुछ ठीक हो जाएगा।
‘बेरोजगारी पहले भी थी कोरोना ने सिर्फ कंगाली में आटा गीला करने का काम किया है’।
बाकी आप समझदार लोगों में गिने जातें हैं जो सिर्फ आंकड़ो में उलझ कर परिस्तिथियों के ठीक होने के इंतजार में बैठें हैं।
गरिमा सिंह
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