विचार

महादेवी वर्मा : हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती

महादेवी वर्मा जयंती (26 मार्च) पर विशेष

महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से एक हैं। ये छायावादी काव्य के चार प्रमुख आधार स्तंभों में से एक के रूप में जानी जाती हैं। उनको प्रयाग महिला विद्यापीठ की कुलपति बनने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ। इन्हें अपनी रचनाओं में दर्द व पीड़ा की अभिव्यक्ति के कारण ‘आधुनिक मीरा‘ और ‘पीड़ा की गायिका‘ भी कहा जाता है।

छायावादी काव्य के पल्लवन एवं विकास में इनका अविस्मरणीय योगदान रहा। कवि निराला ने उन्हें ‘हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती‘ की उपमा से भी सम्मानित किया है। वह हिंदी साहित्य में वेदना की कवयित्री के नाम से जानी जाती हैं एवं आधुनिक हिंदी साहित्य में रहस्यवाद की प्रवर्तक भी मानी जाती हैं।

महादेवी आधुनिक हिंदी साहित्य के निर्माताओं में महत्वपूर्ण स्थान की अधिकारिणी हैं। शिक्षा एवं साहित्य के प्रति प्रेम उन्हें विरासस में मिला था। अपनी माता से उन्होंने उनके स्वभाव की मृदुलता, उदारता, प्राणिमात्र के प्रति प्रेम एवं ईश्वर के प्रति अनन्य आस्था रखना सीखा था। वह बड़ी कुशाग्रबुद्धि की बालिका थीं और बचपन से ही मां से रामायण-महाभारत की कथाएं सुनते रहने के कारण इनके मन में साहित्य के प्रति आकर्षण उत्पन्न हो गया था।

महादेवी वर्मा

फलतः मौलिक काव्य की रचना इन्होंने बहुत छोटी आयु से आरंभ कर दी थी। नौ वर्ष की छोटी उम्र में ही इनका विवाह हो गया था; किंतु इनके विवाह के कुछ दिनों पश्चात ही इनकी माता का स्वर्गवास हो गया। इनके पति डॉक्टर थे, परंतु दाम्पत्य जीवन में इनकी कोई रुचि नहीं थी।

महादेवी के ससुर स्त्री शिक्षा के विरोधी थे। इस कारण विवाह होने से इनका अध्ययन क्रम टूट गया; किंतु महादेवी का लगाव बचपन से ही सांसारिकता में नहीं था। अतः वे अपने पिता के साथ रहने लगी। इनके जीवन पर महात्मा गांधी का और कला-साहित्य साधना पर कवींद्र रवींद्र का प्रभाव पड़ा। इन्होंने नारी स्वातन्त्र्य के लिए संघर्ष किया और अपने अधिकारों की रक्षा के लिए नारियों का शिक्षित होना आवश्यक बताया।

महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च, 1907 में उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध नगर फर्रुख़ाबाद में होलिका-दहन के पुण्य पर्व के दिन एक संभ्रांत कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी एक छोटी बहन एवं दो छोटे भाई थे, जिनके नाम क्रमशः श्यामा देवी, जगमोहन वर्मा एवं महमोहन वर्मा था। Mahadevi Verma की प्रिय सखी सुभद्रा कुमारी चौहान थीं, जो इनसे उम्र में कुछ ही बड़ी थीं। बचपन में ही इन्होंने सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रेरणा पाकर लेखन कार्य आरंभ किया और अपने इस कार्य को अनवरत जारी रखा।

Mahadevi Verma की प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में संपन्न हुई। उनकी शिक्षा का प्रारंभ 1912 में इंदौर के मिशन स्कूल से हुआ। वहां विभिन्न विषय जैसे- संस्कृत, अंग्रेजी, चित्रकला की शिक्षा योग्य शिक्षकों के द्वारा दी जाती थी। उन्होंने अपनी लगन एवं अथक प्रयास से 1920 में मिडिल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। आगे चलकर बी.ए. की परीक्षा प्रयाग विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। 1932 में प्रयाग विश्वविद्यालय में संस्कृत भाषा एवं साहित्य में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। वर्मा परिवार में पिछली सात पीढ़ियों से किसी पुत्री का जन्म नहीं हुआ था।

वह अपने पिता श्री गोविद सहाय वर्मा और माता हेमारानी की प्रथम संतान थीं। काफी मान-मनौती और इंतज़ार के पश्चात वर्मा-दम्पत्ति को कन्या-रत्न की प्राप्ति हुई थी। अतः पुत्री जन्म से इनके बाबा बाबू बांके विहारी जी प्रसन्नता से झूम उठे और इन्हें घर की देवी महादेवी कहा। इनके बाबा ने उनके नाम को अपने कुल देवी दुर्गा का विशेष अनुग्रह समझा और आदर प्रदर्शित करने के लिए नवजात कन्या का नाम महादेवी रख दिया। इस प्रकार इनका नाम महादेवी पड़ा।

हिंदी के गद्य लेखकों में महीयसी महादेवी का मूर्धन्य स्थान है। Mahadevi Verma छायावाद और रहस्यवाद की प्रमुख कवयित्री हैं। महादेवी वर्मा मूलतः कवयित्री हैं, कितु उनका गद्य भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। उनके गद्य में भी काव्य जैसा आनंद आता है। सरस कल्पना, भावुकता एवं वेदनापूर्ण भावों के अभिव्यक्त करने की दृष्टि से इन्हें अपूर्व सफलता प्राप्त हुई है।

वस्तुतः महादेवी वर्मा हिंदी काव्य साहित्य की विलक्षण साधिका थीं। एक कवयित्री के रूप में वह विलक्षण प्रतिभा की स्वामिनी थीं तथा इनके काव्य की विरह-वेदना अपनी भावात्मक कहनता के लिए अद्वितीय समझी जाती है। साहित्य और संगीत का अपूर्व संयोग करके गीत विधा को विकास की चरम सीमा पर पहुंचा देने का श्रेय महादेवी को ही है। महादेवी वर्मा का नाम हिंदी साहित्य जगत में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाता है।

वेदना के स्वरों की अमर गायिका Mahadevi Verma ने हिंदी-साहित्य की जो अनवरत सेवा की है उसका समर्थन दूसरे लेखक भी करते हैं। कवितामय हृदय लेकर और कल्पना के सप्तरंगी आकाश में बैठकर जिस काव्य का सृजन किया, वह हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि है। हिंदी गीतों की मधुरतम कवयित्री के रूप में महीयसी महादेवी वर्मा अद्वितीय गौरव से मंडित हैं। जीवन के अंतिम समय तक साहित्य-साधना में लीन रहते हुए 80 वर्ष की अवस्था में 11 सितंबर, 1987 को प्रयाग में वेदना की महान कवयित्री महादेवी वर्मा ने अपनी आंखें सदा-सदा के लिए बंद कर ली।

देवेन्द्रराज सुथार

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