विचार

छत्तीसगढ़ नक्सली हमले में 23 जवान हुए शहीद

छत्तीसगढ़ के टेकलगुड़ा के जंगलों में 22 जवान मारे गए और दर्जनों घायल हुए। माना जा रहा है कि इस मुठभेड़ में लगभग 20 नक्सली भी मारे गए। यह नक्सलवादी आंदोलन बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से 1967 में शुरु हुआ था। इसके आदि प्रवर्तक चारु मजूमदार, कानू सान्याल और कन्हाई चटर्जी जैसे नौजवान थे। ये कम्युनिस्ट थे लेकिन माओवाद को इन्होंने अपना धर्म बना लिया था। मार्क्स के ‘कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो‘ के आखिरी पेराग्राफ इनका वेदवाक्य बन गया है। ये सशस्त्र क्रांति के द्वारा सत्ता-पलट में विश्वास करते हैं। इसीलिए पहले बंगाल, फिर आंध्र व ओडिशा और फिर झारखंड और मप्र के जंगलों में छिपकर ये हमले बोलते रहे हैं और कुछ जिलों में ये अपनी समानांतर सरकार चलाते हैं।

chhattisgarh_Naxal_attack

इस समय छत्तीसगढ़ के 14 जिलों में और देश के लगभग 50 अन्य जिलों में इनका दबदबा है। ये वहां छापामारों को हथियार और प्रशिक्षण देते हैं और लोगों से पैसा भी उगाहते रहते हैं। ये नक्सलवादी छापामार सरकारी भवनों, बसों और नागरिकों पर सीधे हमले भी बोलते रहते हैं। जंगलों में रहनेवाले आदिवासियों को भड़काकर ये उनकी सहानुभूति अर्जित कर लेते हैं और उन्हें सब्जबाग दिखाकर अपने गिरोहों में शामिल कर लेते हैं। ये गिरोह इन जंगलों में कोई भी निर्माण-कार्य नहीं चलने देते हैं और आतंकवादियों की तरह हमले बोलते रहते हैं। पहले तो बंगाली, तेलुगु और ओड़िया नक्सली बस्तर में डेरा जमाकर खून की होलियां खेलते थे लेकिन अब स्थानीय आदिवासी जैसे हिडमा और सुजाता जैसे लोगों ने उनकी कमान संभाल ली है।

पर्याप्त सूचना न होने कारण नक्सलियों के घेरे में आये पुलिसकर्मी

केंद्रीय पुलिस बल आदि की दिक्कत यह है कि एक तो उनको पर्याप्त जासूसी सूचनाएं नहीं मिलतीं और वे बीहड़ जंगलों में भटक जाते हैं। उनमें से एक जंगल का नाम ही है-अबूझमाड़। इसी भटकाव के कारण इस बार सैकड़ों पुलिसवालों को घेरकर नक्सलियों ने उन पर जानलेवा हमला बोल दिया। 2013 में इन्हीं नक्सलियों ने कई कांग्रेसी नेताओं समेत 32 लोगों को मार डाला था। ऐसा नहीं है कि केंद्र और राज्य सरकारों ने अपनी आंख मींच रखी है। 2009 में 2258 नक्सली हिंसा की वारदात हुई थी लेकिन 2020 में 665 ही हुईं। 2009 में 1005 लोग मारे गए थे जबकि 2020 में 183 लोग मारे गए।

आंध्र, बंगाल, ओडिशा और तेलंगाना के जंगलों से नक्सलियों के सफाए का एक बड़ा कारण यह भी रहा है कि वहां की सरकारों ने उनके जंगलों में सड़कें, पुल, नहरें, तालाब, स्कूल और अस्पताल आदि बनवा दिए हैं। बस्तर में इनकी काफी कमी है। पुलिस और सरकारी कर्मचारी बस्तर के अंदरूनी इलाकों में पहुंच ही नहीं पाते। केंद्र सरकार चाहे तो युद्ध-स्तर पर छत्तीसगढ़-सरकार से सहयोग करके नक्सल-समस्या को जड़ से उखाड़ सकती है। यह भी जरूरी है कि अनेक समाजसेवी संस्थाओं को सरकार आदिवासी क्षेत्रों में सेवा-कार्य के लिए प्रेरित करे।

नक्सली हमला
पिछले कुछ वर्षों में छत्तीसगढ़ के कुछ बड़े नक्सली हमले
  • श्यामगिरी (9 अप्रैल 2019): दंतेवाड़ा में लोकसभा चुनाव के दौरान मतदान से ठीक पहले नक्सलियों ने चुनाव प्रचार के लिए जा रहे भाजपा विधायक भीमा मंडावी की कार पर जबरदस्त हमला किया था। हमले में भीमा मंडावी के अलावा उनके चार सुरक्षाकर्मी की हत्या हो गयी।
  • दुर्गपाल (24 अप्रैल 2017): सुकमा जनपद के दुर्गपाल के पास नक्सलियों द्वारा घात लगाकर किए गए हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 25 जवान शहीद।
  • दरभा (25 मई 2013): बस्तर के दरभा घाटी में हुए नक्सली हमले में कांग्रेस के आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा, कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष नंद कुमार पटेल, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल समेत 30 अन्य लोग मारे गए।
  • धोड़ाई (29 जून 2010): नारायणपुर जिले के धोड़ाई में सीआरपीएफ जवानों पर नक्सलियों का हमला, 27 जवान शहीद।
  • दंतेवाड़ा (17 मई 2010): यात्री बस में दंतेवाड़ा से सुकमा जा रहे सुरक्षाबल जवानों पर नक्सलियों ने बारूदी सुरंग लगाकर हमला किया, जिसमें 12 विशेष पुलिस अधिकारी समेत 36 लोग मारे गए।
  • ताड़मेटला (6 अप्रैल 2010): बस्तर के ताड़मेटला में सीआरपीएफ के जवान सर्चिंग आपरेशन के लिए निकले थे, जहां नक्सलियों ने बारुदी सुरंग लगाकर 76 जवानों की हत्या कर दी।
  • मदनवाड़ा (12 जुलाई 2009): राजनांदगांव के मानपुर इलाके में पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चौबे समेत 29 पुलिसकर्मियों पर नक्सलियों ने हमलाकर उनकी हत्या कर दी।
  • उरपलमेटा (9 जुलाई 2007): एर्राबोर के उरपलमेटा में सीआरपीएफ और जिला पुलिस के दल पर नक्सलियों ने हमला बोला दिया था, जिसमें 23 पुलिसकर्मी मारे गए।
  • रानीबोदली (15 मार्च 2007): बीजापुर के रानीबोदली में पुलिस के एक कैंप पर आधी रात को नक्सलियों ने हमला कर 55 जवानों को मार दिया।

-डॉ. वेदप्रताप वैदिक

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