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November 21, 2024
हेल्थ

HIV-AIDS पीड़ितों के लिए समाज को बदलनी होगी अपनी बीमार मानसिकता

हमारे देश में कई ऐसी बीमारियां हैं जिन पर हम खुलकर बात नही करना चाहते। क्योंकि उन बीमारियों को हमेशा से ही कलंक के समान माना जाता है। HIV-AIDS भी उन्ही में से एक है। यह ऐसी बीमारी है जिसका नाम सुनकर ही लोगों के मन में एक अजीब सा डर बैठ जाता है।

HIV-AIDS होने की वजह से HIV यानी ह्यूमन इम्यूनोडिफिशंसी वायरस होता है। एड्स के लक्षण दिखने में 5 से 10 वर्षों  तक का समय लग सकता है। जब मरीज को इसके बारे में पता चलता है तब वह खतरनाक रूप ले चुकी होती है। एड्स का पता चिकित्सकों द्वारा जाँच के बाद ही लगाया जा सकता है।

HIV-AIDS

HIV-AIDS कैसे करता है हमला? 

एचआईवी मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक सेल्स पर हमला करता है। यह वायरस अपनी जीन को अजीब तरीके से मानव कोशिकाओं में ढाल लेता है। एचआईवी संक्रमण का मतलब एड्स से  होता है क्योंकि जब यह वायरस पहचाना जाता है तभी ही एड्स की पहचान करनी संभव हो पाती है।

HIV-AIDS एक बेहद ही अलग तरह का वायरस होता है। इसके विषाणु अपने आप को तेजी से बदलते रहते हैं। आज भले ही सरकारी प्रयासों के चलते  समाज में  तेजी से एड्स के लिए जागरुकता आई है, लेकिन उतनी ही तेजी से लोग इस बीमारी को छुपा भी रहे हैं।

यह एक ऐसा वायरस है जो लंबे समय तक असक्रिय रह सकता है। इसी कारण कई एचआईवी पॉजिटिव लोग इस वायरस के होने पर भी बरसों जिंदा रहते हैं। लेकिन जब यह वायरस सक्रिय होने लगता है तो रोग प्रतिरोधी कोशिकाएं अपना काम सही ढंग से नही कर सकती है। जिससे शरीर का इम्यूनिटी सिस्टम कमजोर होने लगता है। जो कि बाद में एक बीमारी का रूप ले लेता है। 

एड्स इतनी खतरनाक बीमारी क्यों?

यह वायरस सबसे खतरनाक इसलिए माना जाता है क्योंकि इसके शरीर में जाने के बाद से ही संक्रमित व्यक्ति के आनुवांशिक तत्वों से जुड़ जाता है और आने वाली पीढ़ियां भी इसकी चपेट में आने लगती है। और उनमें लगातार संक्रमण को बढ़ाता चला जाता है।

एड्स का भले ही अभी तक पूर्णरूप से इलाज संभव न हो। लेकिन समय रहते इस बीमारी के बारे में पता चल जाए तो मरीज को बचाया भी जा सकता है। जिस व्यक्ति को एचआईवी का संक्रमण हो जाता है। उसे ऐसी बीमारियां होने होने का खतरा बढ़ जाता है जो स्वस्थ इम्यून सिस्टम वाले व्यक्ति को नहीं हो सकती है।

बिना प्रोटेक्शन का इस्तेमाल किए किसी के साथ शारीरिक संबंध बनाना एक ऐसी स्थिति है जिसमें एड्स फैलने की संभावना काफी अधिक होती है। वही एक ही सिरिंज और सुई का कई बार इस्तेमाल करने से संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है।

ऐसी दूषित सुई जो एचआईवी संक्रमित रक्त से या किसी चिकित्सक उपकरणों का इस्तेमाल किसी दूसरे व्यक्ति पर किया जाए तो यह संक्रमण यह फैल सकता है। इस के अलावा संक्रमित योनि स्राव, वीर्य और खुले घावों के संपर्क में आने से इस संक्रमण का फैलाव हो सकता है और महिला के शिशु को स्तनपान कराने से भी यह फैलता है। 

एड्स से बचाव के तरीके

जब यह वायरस शरीर में ज्यादा हावी होने लगता है तो इसे कंट्रोल करना बेहद मुश्किल हो जाता है। एंटी रेट्रोवाइरल थेरपी और दवाइयों का इस्तेमाल करके  एड्स का उपचार किया जाता है।

इन दवाइयों के इस्तेमाल से HIV का प्रभाव को कम होता है, इसी के साथ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करना और अन्य रोगों को ठीक करना होता है। कहना गलत नहीं होगा कि एड्स से सुरक्षा ही एड्स का इलाज है। 

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HIV-AIDS के लक्षण

एड्स के शुरुआती दौर में यह पहचान पाना कठिन होता है। मरीज़ को यह नही पता चल पाता कि  एचआईवी शरीर में आ चुका हैं या नहीं, क्योंकि इसके लक्षण 5 से 10 वर्षों में ही उभर सकते हैं।

हालांकि डॉक्टरों का कहना है कि यदि शरीर से अधिक पसीना निकलता है, बार-बार थकान की शिकायत होना, सारे शरीर में खुजली और जलन होना, जांघों और बगलों की लसिका ग्रंथियों की सूजन से गांठें पड़ना, बार-बार दस्त लगना, मुंह में सफेद चकत्तेदार धब्बे उभरना, अचानक वजन कम होने लगना; तेज बुखार रहना, लगातार खांसी आना, निमोनिया, टीबी, स्किन कैंसर जैसी समस्याएं होने लगे तो एड्स का टेस्ट करवाने में जरा भी देर नहीं करनी चाहिए।  

बदलनी होगी बीमार मानसिकता: अकेले  2020 में HIV-AIDS से दुनियाभर में 15.44 लाख लोगों की मौत हो चुकी है। 2007 से 2018 के बीच HIV संक्रमण में 37 फीसदी की गिरावट देखी गई है। साथ ही इससे होने वाली मौतों में 45 फीसदी की गिरावट आई है।

यूनीसेफ की रिपोर्ट बताती है कि  दुनियाभर में एचआईवी से संक्रमित लोगों की संख्या लगभग 3.7 करोड़ हो चुकी हैं। जागरूकता न होने के चलते एचआइवी पीड़ितों के साथ भेदभाव की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही हैं जिससे उन्हें मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ता है।

सम्मान की रक्षा के लिए कानून

HIV-AIDS पॉजिटिव लोगों की गरिमा और सम्मान की रक्षा के लिए केंद्रीय सरकार ने के द्वारा एचआइवी-एड्स संशोधन बिल-2014 बनाया था जिसे 2017 में लागू किया गया है। जिसके तहत एड्स पीड़ितों के साथ भेदभाव करने वालों को 3 महीने से लेकर 2 साल की जेल और 1 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। इसके बावजूद एड्स के मरीजों के साथ समाज आज भी सौतेला व्यवहार कर रहा है।

एड्स को लेकर लोगों में गलत धारणाएं: कानून बनने के बाद स्थिति में कुछ सुधार की स्थिति देखने को मिल रही है, लेकिन राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन का कहना है कि वर्तमान में लगभग 18 फीसदी एचआइवी पॉजिटिव लोगों को अपने पड़ोसियों और नौ फीसद मरीजों  को शिक्षण संस्थानों में अपमान और प्रताड़ना झेलनी पड़ती हैं।

कार्यस्थल पर कई पीड़ितों को अपनी बीमारी को छुपाकर रखना पड़ता है। एड्स पीड़ित लोगों का सामाजिक तिरस्कार करना आज आम बात हो गई हैं। समाज को अपने अंदर बदलाव लाने की आवश्यकता है, और यह तब ही हो सकता है जब लोग जागृत हो। 

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