पिछले कई वर्षों से देखने को मिल रहा है कि सर्दियों की शुरुआत होने पर राजधानी दिल्ली और देश के कई बड़े शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर गंभीर श्रेणी में पहुँच जाता है। जब भी दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों में इसकी समस्या पर बात होती है, तो पराली को ही कसूरवार ठहरा दिया जाता है। जबकि ग्रीन थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के द्वारा एक विश्लेषण किया गया था, जिसमें 24 अक्टूबर से 8 नवंबर तक का आकलन बताता है कि इस साल की सर्दियों के शुरुआती चरण के दौरान दिल्ली के प्रदूषण में 50 प्रतिशत से अधिक वाहनों का योगदान रहा ।
पराली का धुआं पूरे उत्तर भारत में छा जाता है। जिसके चलते इस पूरे क्षेत्र में लोगों के अंदर खतरनाक धुंआ चला जाता है,जिससे उन्हें श्वांस संबंधी और हृदय संबंधी रोग होने का खतरा काफी बढ़ जाता है। किसानों को खेत में धान की फसल के तुरंत बाद ही गेंहू की फसल तैयार करने का काफी अधिक दबाव होता है। जिसके चलते न चाहते हुए भी वे खेत में ही पराली को जला देते हैं। इससे खेत में जलने वाली पराली का धुआं पूरे आसमान में फैल जाता है। हालांकि दिल्ली के बाहर के स्रोतों के साथ ही पड़ोसी राज्यों में बायोमास जलने के डेटा से यह बात निकलके आई है कि वायु प्रदूषण की समस्या में पराली बहुत मजबूत वजह नहीं है।
प्रदूषण दिल की सेहत के लिए खतरनाक
वायु प्रदूषण की वजह कोई भी हो लेकिन जब बड़े पैमाने पर धुआं होता है तो इससे पूरा माहौल दमघोंटू हो जाता है। वही कोरोना वायरस की बात की जाए तो कोरोना अपने जैसे प्रतिरूप को बनाने के लिए फेफड़ों की कोशिकाओं को इस्तेमाल में लाता है, या फिर फेफड़ों की कोशिकाओं को खा जाता है। जिसके चलते सांस लेना भी फेफड़ों के लिए अत्यधिक मेहनत वाला काम हो जाता है। ऐसे में कोरोना काल में इसको काफी खतरनाक माना जा रहा है। यह पर्यावरण के लिए तो घातक है ही, इसी के साथ हमारे शरीर को भी नुकसान पहुँचा रहा है।
प्रदूषण का स्तर नवंबर-दिसंबर के महीने में काफी बढ़ जाता है जिसके चलते खुली हवा में सांस लेना काफी मुश्किल हो जाता है। सर्दियों में वायु प्रदूषण के बढ़ने का प्रभाव हमें दिखने लगता है। हवा में सांस लेने से कई प्रकार की बीमारियों से घिर जाते हैं। आंखों में जलन, गले में खराश, नाक में खुजली, छींक आने जैसी समस्या आम बात हो जाती है। कई राज्यों में नवंबर-दिसंबर के महीने में यह इतना बढ़ जाता है कि खुली हवा में सांस लेना तक दुश्वार हो जाता है। यह दिल की सेहत के लिए काफी खतरनाक हो सकता है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि हवा में मौजूद PM 2.5 जो कण होते है वे बेहद हानिकारक होते हैं। जिसके चलते हवा में PM 2.5 का स्तर बढ़ जाता है और हार्ट अटैक का खतरा बढ़ने लगता है।
वायु प्रदूषण से गंभीर बीमारियों का बढ़ता है खतरा
इस रिसर्च में पाया गया कि मार्च 2020 में कोविड होने के कारण अमेरिका में जो लॉकडाउन लगाया गया था उससे हवा में PM 2.5 के स्तर में कमी आई। जिसके चलते अमेरिका में हार्ट अटैक के मरीजों की संख्या घटी। वायु प्रदूषण फेफड़ों के लिए भी काफी नुकसानदायक होता है। आंकड़ो से पता चलता है कि भारत में सीओपीडी यानी क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज के 5.5 करोड़ मरीज हैं।
सीओपीडी यानी क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, यह ऐसा शब्द है जो फेफड़े की गंभीर बीमारियों के लिए प्रयोग किया जाता है। इन बीमारियों में फेफड़ों में हवा के प्रवाह में रुकावट आती है। औद्योगिक धुएं का एक्सपोजर, धूम्रपान, चूल्हे का लंबे समय तक उपयोग करना तथा और कुछ ऐसे कारण हैं, जिससे सीओपीडी की समस्या हो सकती है। सीओपीडी को फेफड़ों का अटैक भी कहते है। यदि कोई लंबे समय तक इसके संपर्क में रहे तो उसे सीओपीडी होने का खतरा काफी बढ़ जाता है। हर साल वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण कई तरह की गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ता जाता है।
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प्रदूषण सर्दियों में लेता है खतरनाक रूप
वायु प्रदूषण का सबसे अधिक असर फेफड़ों पर दिखता है, जो कि सांस लेने से संबंधित खतरनाक समस्याओं का कारण बन जाती है। इसके चलते हाइपरटेंशन, स्ट्रोक पुरानी फेफड़ों की बीमारी, डायबिटीज़ और हार्ट अटैक जैसी समस्याओं को बढ़ा देता है। इनमें से कई बीमारियां ऐसी हैं जो कोरोना के जोखिम को और बढ़ा सकती है। वायु प्रदूषण के चलते शरीर में जब दूषित तत्व जाते हैं तब शरीर की भीतरी कोशिकाओं में संक्रमण के चलते कई तरह के बदलाव आते हैं। इसमें मुख्य रूप से घबराहट और चिड़चिड़ान और सांस फूलने की समस्या अधिक रहती है।
इसी के साथ सीओपीडी, अस्थमा या एलर्जी का रोगी हो जाता है। ऐसी स्थिति में बचाव के लिए जरूरी सावधानियां बरतने की जरूरत है। वायु प्रदूषण सर्दियों में काफी खतरनाक रूप ले लेता है, इसका कारण यह है कि ओजोन गैस ,कोहरे और ठंड की वजह से उपर नहीं उठ पाती है। ऐसी स्थिति में जो छोटे कण होते है वे हवा में तैरते रहते हैं जो कि सांस के माध्यम से शरीर के अंदर चले जाते हैं।
प्रदूषण के जो प्रमुख कारक है, वे हैं डीजल, पेट्रोल गाड़ियां और फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुंआ। ये कण उन लोगों के लिए काफी हानिकारक होते हैं जिन्हें अस्थमा और सीओपीडी की समस्या पहले से होती है। सामान्य की तुलना में देखा जाए तो बच्चों और बुजुर्गों के फेफड़े काफी नाजुक होते हैं जिससे संक्रमण फैल सकता है। इन हवाओं में जो प्रदूषण होता है उससे सांस लेना काफी मुश्किल हो गया है। जिससे सेहत पर बुरा असर पड़ता है।
सोनाली