टोक्यो ओलम्पिक 2020 खत्म होने के कगार पर खड़ा था पर हिंदुस्तान की झोली में अभी भी “स्वर्ण” नहीं आ सका था। लेकिन देश को कहीं ना कहीं जैवलिन थ्रोअर “नीरज चोपड़ा” से आस थी कि शायद ये भारत को स्वर्ण पदक दिलाने में कामयाब हो सकें और आखिरकार नीरज ने देशवासियों की उम्मीदों को नहीं तोड़ा और टोक्यो ओलम्पिक 2020 के अंतिम दिन भारत को “जैवलिन थ्रो” में स्वर्ण पदक जिता दिया है।
यह देश के दूसरे खिलाड़ी बने हैं जो भारत को ओलम्पिक के”व्यक्तिगत खेलों” के इतिहास में दूसरी बार स्वर्ण पदक जीते हैं। इससे पहले आज से 13 साल पीछे यानी 2008 ओलम्पिक खेलों में निशानेबाज़ी में “अभिनव बिंद्रा” ने व्यक्तिगत खेल में पहला स्वर्ण पदक जीता था।
बात करें नीरज चोपड़ा के बारे में तो इनका जन्म 24 दिसम्बर 1997 को हरियाणा के पानीपत में एक मध्यमवर्गी किसान परिवार में हुआ था। इनके पिता जी किसान हैं और माता जी भी किसानी तथा घर सँभालती हैं। इनकी स्कूली पढ़ाई चंडीगढ़ से हुई पर इनका रुझान जैवलिन थ्रो में शुरू से ही था। जब ये 12 वर्ष के थे तब इनका वजन 90 किलो था।
इसे कम करने के लिए जिम जाने लगे पर जल्द ही उसे छोड़ दिया और बाद में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया में गए और यहाँ आकर इन्होंने अपने ऊपर जमकर मेहनत की और मात्र कुछ ही महीनों में अपने आप को पूरा बदल डाला और इसके बाद एकेडमी ज्वाइन की।
जैवलिन थ्रो सीखने की जिज्ञासा कैसे जागी?
मात्र 13 साल की उम्र में वह 4 घण्टे की यात्रा करके 2011 में ताऊ देवी लाल काम्प्लेक्स जो कि पंचकुला में स्थित है वहाँ दाखिला लेने वह पहुँच गए। यह इनके घर से काफी दूर था इस वजह से यह पंचकुला में ही रहने लगे और एक तरह से 2011 के बाद से उन्होंने अपना घर छोड़ दिया। पहले तो इन्हें दौड़ पसन्द थी लेकिन एक दिन इनके चाचा ने नीरज चोपड़ा को शिवाजी स्टेडियम लेकर गए और वहाँ के खिलाड़ी जैवलिन थ्रो का अभ्यास कर रहे थे।
उनका यह खेल देखते ही नीरज ने यह ठान लिया था कि वह अब से जैवलिन थ्रो में ही अपने आप को आगे ले जायँगे। सबसे खास बात इनके अंदर यह है कि शुरू से ही वह सीखने को लेकर तैयार रहा करते थे। अपने सीनियर खिलाड़ियों से टिप्स लिया करते थे।
इनके कोच बताते हैं कि नीरज चोपड़ा कॉपी और पेन के साथ बैठ जाते थे और जब इनके सीनियर खिलाड़ियों को कोच सही ढंग से जैवलिन थ्रो का तरीका बताते, तो नीरज वह सभी बातें अपनी कॉपी में लिख लिया करते और उन्हीं बातों को ध्यान में रख कर वह अभ्यास किया करते थे।
शुरुआत में इनका थ्रो 25 से 30 मीटर से अधिक दूर नहीं जा पाता था क्योंकि इनकी तकनीक गलत थी। इनके कोच ने नीरज के ऊपर काफी मेहनत की और इनके थ्रो में धीरे-धीरे सुधार आने लगा।
एक के बाद एक जीतते गए खिताब:
13 वर्ष की उम्र से लगातार अभ्यास की वजह से इनका खेल अब बेहतर हो चुका था और सीनियर कैटेगरी में जूनियर नैशनल चैम्पियनशिप में इन्होंने 68 मीटर का जैवलिन थ्रो फेंक कर इस चैम्पियनशिप के इतिहास में सबसे लम्बा थ्रो फेंकने का भी रिकार्ड बना दिया।
इसके बाद 2014 में 70 और फिर 81.4 मीटर भाला फेंक कर वर्ल्ड जूनियर रिकार्ड बना डाला। यह लगातार खिताब अपने नाम करते जा रहे थे मगर 2016 में इनके जीवन का पहला सबसे बड़ा मुकाबला गुवाहाटी के साउथ एशियन गेम्स में हुआ जहाँ इन्होंने 82.23 मीटर भाला फेंका।
इसके बाद पोलेंड में “आई•ए•ए•एफ” द्वारा अंडर 20 चैम्पियनशिप हुई और यहाँ इनका भाला 86 मीटर की दूरी तय किया। वर्ष 2018 के कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक अपने नाम किया।
अभी तक जितने भी टूर्नामेंट हुए अगर इस पर गौर करें तो इनके खेल में गज़ब का सुधार देखने को मिल रहा है और भाला फेंकने की दूरी लगातार बढ़ रही है। जिसका नतीजा आज देखने को मिल रहा है कि टोक्यो ओलम्पिक 2020 में 121 साल के बाद एथलेटिक्स में 87.58 का शानदार जैवलिन थ्रो करके देश को इस साल के ओलम्पिक में पहला स्वर्ण पदक जिताया।
2019 में हाथ की एल्बो सर्जरी के बाद भी जीता गोल्ड
लेकिन इन सबके बीच नीरज चोपड़ा को अपने जीवन में बुरा दौर भी देखने को मिला है। शुरुआत में परिवार से इस खेल को सीखने के लिए ज्यादा सपोर्ट नहीं मिला। लेकिन इनके जुनून को देख कर बाद में परिवार भी इनको प्रेरित करने लगा।
दूसरी ओर इन्हें एक बेहतर किट, भरपूर भोजन और रहने का खर्च यह सभी की ज़रूरत थी मगर आर्थिक स्थिति भी इतनी अच्छी नहीं थी। लेकिन नीरज के पिता जी समय-समय पर इनकी जरूरतें पूरी करते रहे।
इसके बाद 2019 मे जिस हाथ से ये भाला फेकते हैं उसी हाथ की एल्बो सर्जरी हुई और करीब एक साल के लिए वह इस खेल से दूर रहे। लेकिन 2020 में कोरोना वायरस के प्रकोप से टोक्यो ओलंपिक को स्थगित कर दिया गया और नीरज को एक साल के लिए भरपूर समय मिल गया जिसमें उन्होंने दिन-रात अभ्यास किया।
किन पुरस्कारों से नवाज़े जा चुके हैं नीरज?
2018 में कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने के बाद अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया। वर्तमान समय में ओलम्पिक खेल में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने के बाद इनके ऊपर इनामों की बारिश हो गई है। हरियाणा सरकार ने नीरज को 6 करोड़ की धनराशि, प्रथम श्रेणी की जॉब तथा कंसेशनल रेट पर HSVP का प्लॉट देने का फैसला किया है।
इसके अलावा BCCI तथा चेन्नई सुपर किंग्स ने भी धनराशि देने का फैसला किया है। कुल-मिलाकर अभी तक 10 करोड़ से अधिक धनराशि नीरज चोपड़ा को स्वर्ण पदक जीतने पर मिल चुकी है। साथ ही महिंद्रा ने अपनी ओर से एक्सयूवी 700 कार देने का फैसला किया है।
आने वाले समय में इनको और पुरस्कार मिलने की उम्मीद है। बहरहाल, वर्तमान में नीरज चोपड़ा की उम्र 23 वर्ष है और सेना में सूबेदार के पद पर तैनात हैं। इतनी कम उम्र में इन्होंने इतना बड़ा मुकाम हासिल कर लिया है और यह तो अभी शुरुआत है। जिस हिसाब से इनका शानदार प्रदर्शन है उसे देख कर उम्मीद नहीं यह भरोसा किया जा सकता है कि 2024 के पेरिस ओलम्पिक खेलों में भारत के लिए एक और स्वर्ण पदक इंतज़ार कर रहा है।
Also Read: टोक्यो ओलंपिक : पदक से चूकीं भारतीय युवा गोल्फर अदिति अशोक
भारत सरकार का नज़रिया इस ओलम्पिक के बाद कैसा होगा?
जनसँख्या के मामले में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर आता है। मगर फिर भी 130 करोड़ से अधिक लोगों में मात्र 100 से 140 के बीच का दल हिंदुस्तान की तरफ से ओलम्पिक खेलों में भाग लेने जाता है जो कि बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। क्योंकि भारत से कम जनसँख्या वाले देश मेडल की सूची में टॉप 10 में मौजूद हैं और भारत टॉप 50 के अंदर भी नहीं आ रहा।
इसकी वजह यह है कि अन्य देशों में हर खेलों की सुविधा मुहैया कराई जाती है। हर प्रकार के खेलों के उपकरण मौजूद हैं, अधिक स्पोर्ट्स सेंटर हैं और जिसके अंदर प्रतिभा होती है उसको आगे ले जाने में मदद की जाती है।
लेकिन भारत में ऐसा नहीं है क्योंकि इतनी अधिक जनसँख्या होने के बावजूद मात्र 100-150 खिलाड़ियों का दल जाना, अपने आप में एक बड़ा प्रश्न खड़ा करता है कि आखिर हम इतने पीछे क्यों है? यहाँ के लोगों में अगर प्रतिभा है तो आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और यदि आर्थिक स्थिति ठीक है तो खेल को सीखने के लिए उपकरण नहीं है।
इन सब मुद्दों पर भारत सरकार को ध्यान में रखते हुए उन खिलाड़ियों को सपोर्ट करना चाहिये जिनके अंदर सीखने की प्रतिभा हो साथ ही हर खेल के स्पोर्ट्स सेंटर खोलने की ज़रूरत है ताकि गिने-चुने खेलों के बजाए हर खेल में भारत की तरफ से कोई ना कोई ओलंपिक खेलों में मौजूद हो।
केंद्र सरकार का “खेलो इंडिया” अभियान
केंद्र सरकार ने खेल के प्रति कुछ कदम ज़रूर बढ़ाए हैं जैसे “खेलो इंडिया“। लेकिन इसी प्रकार से कुछ और बड़े कदम लेने होंगे। साथ ही लोगों को इन खेलों के प्रति जागरूक करना होगा ताकि अधिक से अधिक लोग सीखने के लिए प्रेरित हो सकें।
इसकी शुरुआत स्कूल स्तर से करनी होगी ताकि बचपन से ही बच्चे का रुझान अपने खेल के प्रति हो और वह शुरू से ही मेहनत करें। इस ओलंपिक के बाद से यह तो ज्ञात हो ही गया है कि भारतीय खिलाड़ियों में क्षमता तो है और अगर सही दिशा तथा बढ़िया उपकरण मिल जाए तो भारत ने आज जो 7 मेडल जीते हैं वह 70 मेडल हो सकते हैं।
यह सभी मुद्दे भारत सरकार के ज़हन में भी चल रहे होंगे और यदि कुछ बड़े कार्य खेल के क्षेत्र में किये जाते हैं तो आने वाले समय में हिंदुस्तान को ओलम्पिक खेलों में पहला स्थान प्राप्त करने में समय नहीं लगेगा।
-यशस्वी सिंह