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April 18, 2024
Dustak Special

मनोज बाजपेयी: असफलता से सफलता तक का सफर

कहते हैं इंसान के जीवन में मुसीबतें इसी लिए आती हैं ताकि व्यक्ति अपने लक्ष्य को पाने के लिए और जी तोड़ मेहनत करे। कुछ ऐसा ही वाक्या वर्तमान समय के मशहूर अभिनेताओं में से एक “मनोज बाजपेयी” के साथ हुआ है।

अपनी एक्टिंग के दम पर आज लाखों दिलों में राज़ करने वाले मनोज बाजपेयी का जन्म बिहार के एक छोटे से गाँव “नरकटियागंज” के किसान परिवार में हुआ था। इनके घर में भी लोग हिन्दी फिल्मों के बड़े प्रशंसक थे और इसी लिए अभिनेता “मनोज कुमार” के नाम पर इनका नाम “मनोज” रखा गया।

मनोज बाजपेयी

एक सामान्य परिवार से संबन्ध रखने वाले मनोज ने बचपन से ही एक्टर बनने का लक्ष्य निर्धारित कर लिया था। वह अमिताभ बच्चन तथा नसीरुद्दीन शाह को अपना प्रेरणास्रोत मानते हैं और जब उन्हें पर्दे पर देखते थे तो उनके अंदर एक्टर बनने की ललक और बढ़ जाती थी। लेकिन मन में सवाल भी काफी थे कि आखिर अभिनेता कैसे बनते हैं, एक्टिंग कहाँ सीखी जाती है इत्यादि जैसे प्रश्न थे और इसका उत्तर उनको नसीरुद्दीन शाह के एक इंटरव्यू में मिला जिसमें उन्होंने “नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा” यानी ‘NSD‘ का ज़िक्र किया था।

मनोज बाजपेयी: जीत की ज़िद के सामने हार भी घुटने टेक ही लेती है

यही वजह थी कि मात्र 17 साल की उम्र में ही वह बिहार से दिल्ली आ गए अपने सपनों में जान फूंकने के लिए। इनका मकसद यह था कि “नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा” में अगर एडमिशन हो जाए तो इनकी किस्मत बदल सकती है। लेकिन सोचने तथा उसे करने में काफी फर्क होता है। दिल्ली आकर स्नातक की पढ़ाई के लिए उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया लेकिन उनका सारा ध्यान एनएसडी में ही था। वह कालेज में क्लास कम और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में ज़्यादा रुचि रखते थे।

साथ ही उनको अंग्रेजी कम आती थी इस लिए उन्होंने कॉलेज में नाइजीरिया देश के मित्र बनाए ताकि उनसे बोलचाल करते-करते उनको थोड़ी बहुत अंग्रेजी का ज्ञान प्राप्त हो जाए। अब देखते ही देखते NSD में दाखिला होना शुरू हुआ और पहले प्रयास में उनको असफलता हासिल हुई। यही नहीं लगातार और दो बार उन्होंने एनएसडी में दाखिला लेना चाहा और दोनों बार उनको सिर्फ निराशा ही हाथ लगी। एक तरफ अब तक किए गए तीनों प्रयास में विफल हो रहे थे तो दूसरी ओर वह दिल्ली के थिएटर में अपने अभिनय को तराश रहे थे।

शिक्षक के पद को ठुकरा कर फिल्मी दुनिया में रखा कदम

इसी बीच उनके दोस्त रघुवीर दास ने मनोज बाजपेयी को बैरी जॉन से मिलवाया जो कि जाने-माने एक्टिंग के शिक्षक तथा निदेशक हैं। तब मनोज उनकी एक्टिंग क्लास में शामिल हो गए जहाँ उनके सहपाठी शाहरुख खान भी मौजूद थे। समय के साथ अब मनोज बाजपेयी की पहचान भी बनती जा रही थी लेकिन NSD में दाखिला लेने का सपना अभी भी उनको पूरा करना था। जिसके चलते उन्होंने चौथी बार फिर उसमें दाखिला लेना चाहा और इस बार भी उनको निराशा ही हाथ लगी।

लेकिन यह उनके लिए यह खुशी की बात थी क्योंकि NSD ने उनको एक विद्यार्थी के रूप में ना लेकर एक शिक्षक के तौर पर अपने कॉलेज में लेना चाहा। मतलब जिस कॉलेज में वह विद्यार्थी बनने का सपना लेकर आए थे उसी में वह शिक्षक बन रहे हैं इससे बड़ी उपलब्धि और क्या हो सकती है।

बहरहाल, उनको शिक्षक नहीं अभिनेता बनना था इस लिए उन्होंने शिक्षक का पद नहीं ग्रहण किया। इसी के बाद से शुरू हो गया मनोज बाजपेयी का फिल्मी सफर। 1994 में “द्रोहकाल” में अभिनय करने का मौका मिला पर फिल्म उतना प्रभावित ना कर सकी। इसके बाद शेखर कपूर की फिल्म “बैंडिट क्वीन” में एक छोटा सा किरदार मिला जिससे लोगों के बीच उनकी थोड़ी-बहुत पहचान मिलने में मदद मिली।

Manoj Bajpayee Films

फिल्म सत्या से मनोज बाजपेयी को मिली नई पहचान

इसके बाद 1998 राम गोपाल वर्मा के द्वारा बनाई गई फिल्म “सत्या” में मनोज बाजपेयी का किरदार “भीखू म्हात्रे” को बहुत ही अधिक पसन्द किया गया और इस फिल्म की वजह से मनोज अब देशभर में विख्यात हो चुके थे। साथ ही इस फिल्म के लिए उनको “राष्ट्रीय पुरस्कार” से सम्मानित किया गया। इसके अलावा 2003 में आई “पिंजर” के लिए भी उनको राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज़ा गया और 2019 में “पद्मश्री” से भी सम्मानित किया गया है।

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उसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और एक के बाद एक सुपरहिट फिल्में देते रहे जैसे स्पेशल 26, गैंग्स ऑफ वासेपुर, राजनीति इत्यादि जैसे फिल्म में अपने शानदार अभिनय की वजह से लोगों के दिलों में अपना स्थान सुनिश्चित कर लिया है। फिल्मों के अलावा मनोज बाजपेयी अब वेब सीरीज़ में भी नज़र आ रहे हैं।

अभी हाल ही में आई “फैमली मैन 2” में उनके दमदार अभिनय को सराहा जा रहा है। तो कुल-मिलाकर इसका निष्कर्ष यह है कि एक छोटे से गाँव से आने वाले मनोज बाजपेयी को ना ही अभिनय आता था, ना अंग्रेजी और ना ही अपने अदाकारी के भविष्य के बारे में पता था लेकिन लगातार असफलताओं के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आखिरकार जीत उनकी कड़ी मेहनत की हुई। इनके जीवन से हमें यही सीख मिलती है कि चाहे जितनी भी बड़ी मुसीबत क्यों ना आ जाए अगर हम अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ निश्चय हैं तो हमें सफल होने से कोई रोक नहीं सकता।

-यशस्वी सिंह

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