इस साल दशहरा का पर्व तिथि 15 अक्टूबर 2021 को है। इस पर्व को मनाने का मुख्य उद्देश्य है कि बुराई को त्याग कर अच्छे गुणों को अपनाया जाए। दशहरा का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। देश में काफी उत्साह से मनाया जाने वाला यह पर्व पंचांग के अनुसार आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को आता है।
हर राज्यों में अलग-अलग पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ इस पर्व को मनाने की प्रथा हमेशा से रही है, जो परंपरा आज भी निभाई जा रही है। नौ दिनों से जारी दुर्गा पूजा की जब समाप्ति होती है तो उसे दशहरा का प्रतीक माना जाता है।
इसलिए भारत में दशहरा के दिन कई लोग मां दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन भी करते हैं। कहा जाता है कि नवरात्रि के दिनों में माता अपने मायके आती हैं और दसवें दिन उनकी विदाई की जाती है। इसी वजह से नवरात्रि के दसवें दिन उन्हें पानी में विसर्जित किया जाता है।
माता दुर्गा ने श्रीराम को दिया था वरदान
दशहरा को विजयदशमी भी कहा जाता है, इसका अर्थ है दसवें दिन की विजय। क्योंकि माता दुर्गा ने दसवें दिन महिषासुर राक्षस को मारा था। दशहरा का पर्व मनाने का उद्देश्य श्रीराम से भी जुड़ा है। मान्यता है कि 14 वर्ष के वनवास के दौरान अधर्मी रावण ने माता सीता का हरण कर लिया था।
माता सीता को बचाने के लिए और रावण का सर्वनाश करने के लिए भगवान राम और रावण के बीच कई दिनों तक युद्ध चला। कहा जाता है कि भगवान राम ने शारदीय नवरात्रों के दिनों में शक्ति की देवी कही जाने वाली दुर्गा माता की लगातार नौ दिनों तक आराधना की, जिससे प्रसन्न होकर उन्हें माता दुर्गा ने वरदान दिया और माता दुर्गा के सहयोग से राम ने युद्ध के दसवें दिन रावण का वध किया था।
दशहरा पर्व पर शस्त्र पूजन का महत्व
दशहरा पर्व भगवान राम और माता दुर्गा दोनों का महत्व दर्शाता है कहा जाता है कि माता दुर्गा ने रावण को मारने का रहस्य बताया था। इसी परम्परा के कारण दशहरे के दिन हर वर्ष रावण के साथ ही मेघनाथ और कुम्भकर्ण के पुतले को जलाया जाता हैं। इस दिन रावण दहन के अलावा शस्त्र पूजन भी किया जाता है।
सनातन धर्म मे प्राचीन समय से ही शस्त्र पूजन किया जाता था, इसलिए कई लोग इस परंपरा का पालन आज भी कर रहे हैं। इस दिन लोग शस्त्र पूजन के साथ वाहन पूजन भी करतें हैं। कुछ लोगों के द्वारा इस दिन नया कार्य भी आरंभ किया जाता हैं, क्योंकि नए कार्य की शुरुआत करने के लिए यह दिन काफी शुभ माना जाता है।
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अधर्म पर धर्म की जीत
दशहरा को बहु-सांस्कृतिक पर्व कहा जाता है। क्योंकि देश कई हिस्सों में इस पर्व को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। पूर्व और उत्तर पूर्व में दुर्गा पूजा और विजयदशमी के नाम से जाना जाता है। वही उत्तरी, दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्रों में इसे दशहरा नाम से जाना जाता है। इस पर्व को भारत के अलावा बांग्लादेश और नेपाल में भी मनाया जाता है।
मलेशिया में दशहरा पर राष्ट्रीय अवकाश दिया जाता है। भले ही देश में अलग-अलग नामों से इस पर्व को जाना जाता है और अलग-अलग तरीकों से इसे मनाया जाता है लेकिन इस पर्व की आत्मा एक समान रहती है जो कि है ‘अधर्म पर धर्म की जीत’। और इनका जलाया जाना यही संदेश देता है कि सत्य की ही सदैव जीत होती है, चाहे झूठ कितना ही बलशाली हो।
रावण के अंदर की 10 बुराइयों का अंत
कहा जाता है कि श्री राम ने रावण के दसों सिर का वध किया था, जिसे अपने अंदर की 10 बुराईयों को खत्म करने के रूप में देखा जाता है और वह 10 बुराईयां हैं- पाप, काम, क्रोध, मोह, लोभ, घमंड, स्वार्थ, जलन, अहंकार, अमानवता और अन्याय।
इसी के साथ दशहरा पर्व को मौसम बदलने से तौर पर भी जोड़ा जाता है। दशहरा से ही सर्दियों की शुरुआत हो जाती है और यह मौसम खरीफ की खेती का भी होता है। खरीफ की कटाई की जाती है और दिवाली के बाद रबी की बोआई शुरू कर दी जाती है।