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December 18, 2024
Dustak Special

‘कोरोना वेस्ट मटेरियल’- पर्यावरण के लिए खतरे की घंटी हो रहा साबित

-कोरोना वेस्ट मैनेजमेंट की है सख्त ज़रुरत

कोरोना वेस्ट मटेरियल: जनवरी की सर्द सुबह जब कोहरे की चादर में लिपटा ये पूरा शहर सूरज के निकलने का इन्तेजार कर रहा था, उससे ठीक पहले मैं सुबह की सैर पर निकल पड़ीं थी। चलतें चलतें नज़र एकाएक सड़क पर पड़ी तो देखा कि पैरो के नीचे कुछ उलझा पड़ा था।

एक बार तो उसे लात से मार हटाने की कोशिश की लेकिन वो और उलझ गया फिर ध्यान से देखा तो एक मास्क उलझ पड़ा था। शायद ये वहीं मास्क था जिसे कभी किसी ने अपने मुँह पर लगाया होगा। हो सकता है वो कोरोना मरीज का ही हो खैर ये अतिशयोक्ति थी??

कोरोना वेस्ट मटेरियल

पर पता नही मैंने इतना तो नही सोचा और आगे चल पड़ें। थोड़ा दूर जाने पर मन में और जिज्ञासा पैदा हुई कि न जाने कितने ही मास्क शायद इसी तरह से जमीन पर पड़े होंगे। और सिर्फ मास्क ही क्यों सैनिटाइजर कि बोतलें, पीपीई किट, फेश शील्ड भी तो थी…

उनका क्या हुआ होगा ??? अब क्योंकि ये सभी सामान सिंगल यूज़ प्लास्टिक के बने होतें है जिसका निस्तारण कर पाना काफी मुश्किल होता है। तो मन में ये सवाल उठना जायज भी था।

मुझे उस वक़्त लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री का वो भाषण भी याद आया जिसमे उन्होंने ये कहा था कि साल 2022 तक हम भारत से सिंगल यूज़ प्लास्टिक को पूरी तरह से हटा देंगे। मैं मन ही मन मुस्कुराई और वापस घर की तरफ रुख किया। विषय गहरा था इसलिए शोध किया और पाया कि.

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1. वैक्सीन आने के बावजूद कोरोना वेस्ट पर्यावरण के लिए चुनौती का विषय

एक बात और नोट करने वाली है कि वैक्सीन आने के बाद नए कोरोना कॉलर ट्यून में भी इस बात पर जोर दिया गया है कि “दवाई भी और कड़ाई भी” यानी कि मास्क और जरूरी चीज़े आगे भी प्रयोग में आती रहेंगी। अब सवाल ये है कि इनका निस्तारण करने के लिए जो सरकारों ने गाइड लाइन दी है क्या ग्राउंड लेवल पर भी वो हकीकत है या फिर ये सिर्फ हवा में कही गयी बातें हैं?

अब थोड़ा फ़्लैश बैक में चलतें है। 30 जनवरी 2020 को भारत मे पहला कोरोना मरीज़ आया था। अब तक विश्व के अन्य देशो में कोरोना अपने पाँव पसार चुका था। उस समय मास्क, पीपीई किट, फेश शील्ड जैसी प्लास्टिक की बनी चीजो कि खरीददारी अपने चरम पर थी।

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन (WHO) की एक रिपोर्ट की मानें तो, उस वक़्त तक दुनिया भर में हर महीने 90 लाख मास्क, 76 लाख ग्लव्स और करीब 16 लाख तक फेश शील्ड की जरूरत पड़ रही थी। अकेले भारत मे 4.5 लाख पीपीई किट की मैन्यूफैक्चरिंग चलती थी। इतने बड़े पैमाने पर हो रहे इन प्लास्टिक मटेरियल के डीकंपोस और रीसाइक्लिंग कि प्रक्रिया आखिर कैसे हुई होगी??

2. अस्पतालों में मेडिकल वेस्ट के लिए सरकारी गाइड लाइन

एसोसिएट चैम्बर्स ऑफ कामर्स एन्ड इंडस्ट्री की एक रिपोर्ट की माने तो भारत मे रोजाना करीब 775 टन के बराबर मेडिकल वेस्ट निकलता रहा है। कोरोना के आने से पहले ये आंकड़े करीब 550 टन के बराबर था। तो सीधे तौर पर 20 से 25 प्रतिशत का ये अतिरिक्त और खास कर प्लास्टिक वेस्ट का निस्तारण करना किसी भी देश के लिए चुनौती का विषय हैं।

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शुरुआती दौर में जब कोरोना मरीजो की तादाद अस्पतालों में कम हुआ करती थी, तब सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) ने अस्पतालों को एक गाइड लाइन जारी की थी। जिसमे साफ लिखा था कि, “अस्पतालों में कोरोना मरीजो के चलतें निकलने वाले मेडिकल वेस्ट के लिए एक अलग से बॉक्स रखा जाएगा जिसको एक अलग कलर कोड के साथ अलग नाम (कोविड वेस्ट) दिया जाएगा।”

अब क्योंकि मास्क, फेश शील्ड, ग्लव्स, पीपीई किट और गॉगल्स आदि सभी सिंगल यूज़ प्लास्टिक से बनतीं है जिस कारण एक बार के बाद इसे दोबरा उपयोग में नही लाया जा सकता जिस कारण इस मेडिकल वेस्ट की संख्या में इतना इजाफा हुआ।

3. 1% कोविड वेस्ट भी सागरों को प्रदूषित कर सकता है

खैर अस्पतालों में होने वाले वेस्ट को तो फिर भी इस गाइड लाइन के तहत कुछ हद तक निस्तारण किया जा सकता है और इसके लिए लगातार प्रशासन द्वारा काम भी किया जा रहा है। लेकिन एक आम व्यक्ति जो रोजाना इन चीज़ों का इस्तेमाल कर उसे इधर उधर फेक रहा है उनका क्या? उन्हें हम किसी कटेगरी में फिक्स करने की कोशिश करें?

COVID Masks On Beaches

यहाँ ये बात आप सोच रहें होंगे कि एक मास्क से शुरू हुई इस पूरी कथा पर इतनी माथापच्ची क्यों ? एक ही तो मास्क था उसे उठाकर कूडेदान में डालो और किस्सा खत्म? लेकिन यहां शायद आप गलत हैं। इंसान की सेफ्टी के लिए बने ये इकविपमेंट इंसान की जान के लिए ही नही बल्कि पूरे पर्यावरण के लिए घातक साबित हो सकतें हैं।

अप्रैल में आई वर्ल्ड वाइड फोरम फ़ॉर नेचर की एक रिपोर्ट की माने तो यदि पूरी दुनिया से सिर्फ 1 प्रतिशत भी कोविड वेस्ट अगर गलत तरीके से डीकंपोस किये जातें हैं तो, साल भर में लाखो टन का कचरा समुद्र में आ जाएगा। अब जरा ये सोचिये की जब एक प्लास्टिक की बोतल को अपने आप डीकंपोस होने में सैकड़ो साल का समय लगता है तो फिर इतनी बड़ी संख्या में निकलने वाले इन मेडिकल वेस्ट का क्या होगा???

कोविड वेस्ट से निपटने के लिए एक आम व्यक्ति को क्या करना चाहिए

कोविड वैक्सीन तो वैसे भारत मे बनाई जा चुकी है। जिसे बनाने में भारत बायोटेक कंपनी ने अपनी जान झोंक दी थी। लेकिन वैक्सीन की पहुँच अभी तक प्रत्येक देशवासी तक नही है इसलिए ऐसे में जरूरी है कि हम पुरानी गाइड लाइन के अनुसार ही “दो गज दूरी और मास्क है जरूरी” के नक्शे कदम पर चलकर अपनी बारी का इंतजार करें।

इसके साथ अपको याद होगा अगस्त – सितंबर के महीने में कुछ मशहूर भारतीय क्रिकेटरों, फिल्म स्टारों और बड़ी हस्तियों ने एक मुहीम चलाई थी जिसमे वो हैंड मेड मास्क को बनाने और उसे पहनने का सुझाव देतें नज़र आ रहें थे।

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ऐसा करने के दो फायदें है एक तो क्योंकि ये मास्क कपड़ों के बनाने के निर्देश दिए गए थे इसलिए प्लास्टिक वेस्ट से छुटकारा पाने का ये एक अच्छा रास्ता था, साथ ही इसे बार बार धो कर भी यूज़ किया जा सकता था।

लेखक के विचार

मेरे विचार से प्रत्येक व्यक्ति को अपने आस – पास घटित हो रही छोटी से छोटी घटनाओं को अपने स्तर से विश्लेषित जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से हर विषय पर आपकी समझ का विस्तार होता है। तभी तो एक छोटे से मास्क से शुरू हुई ये चर्चा इतनी वृहत होती चली गयी।

और जहां तक कोरोना मेडिकल वेस्ट की बात है तो हमे इस विषय मे भी अपनी समझ को और विस्तृत करने की आवश्यकता है। कई बार हम सही चीज़ों को जानतें हुए भी गलत की तरफ रुख करतें है और इसे बुद्धिमानी समझतें है जो कि निहायती मूर्खतापूर्ण कदम है।

गरिमा सिंह (दिल्ली विश्वविद्यालय)

यह भी पढ़ें: एस्ट्राजेनेका की कोविड वैक्सीन को WHO ने बताया सुरक्षित

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