ग्वालियर: प्रेम, विरह व श्रृंगार से परिपूर्ण संगीत की भावनात्मक मिठास दिलों को जोड़ती है। संगीत सरहदों में नहीं बंधता। संगीत का संदेश भी शास्वत है और वह है प्रेम। इस साल के तानसेन समारोह में भी भारतीय शास्त्रीय संगीत के मूर्धन्य साधकों और सात समुंदर पार से लेटिन अमेरिकी देश से आए संगीत कला साधकों ने अपने गायन-वादन से यही संदेश दिया। पूरब और पश्चिम की सांगीतिक प्रस्तुतियों का गुणीय रसिकों ने रविवार को सायंकालीन सभा में जीभरकर आनंद उठाया।
भारतीय संगीत महाविद्यालय ग्वालियर के आचार्यों एवं विद्यार्थियों द्वारा प्रस्तुत सुमधुर ध्रुपद गायन के साथ तानसेन समारोह की तीसरी एवं रविवार की सांध्यकालीन सभा का आगाज़ हुआ। राग “मधुवंती” ताल चौताल में निबद्ध बंदिश के बोल थे “मेरे मन माही जिन रचियो संसार”। इस प्रस्तुति में संगीत संयोजन संजय देवले का था। पखावज पर संजय आग्ले एवं हारमोनियम पर मुनेन्द्र सिंह ने संगत की।
तानसेन के आँगन में जले विश्व संगीत के अलाव
दिसम्बर की सर्द सांध्यबेला में जब सात समुंदर पार स्थित उत्तर अमेरिकी देश मैक्सिको से आए डेनियल रावि रैंजल ने स्पेनिश गिटार से शास्त्रीय संगीत एवं वेस्टर्न म्यूजिक की मीठी-मीठी मिश्रित धुन निकालीं तो एक बारगी ऐसा लगा मानो सुर सम्राट तानसेन के आँगन में विश्व संगीत के अलाव जल उठे हैं।
डेनियल रावि ने मैक्सिको के पारंपरिक लोकगीतों पर आधारित धुनें बजाकर रसिकों की खूब वाहवाही लूटी। उन्होंने क्यूबन व ब्राजीलियन पारंपरिक सोंग सहित यूरोपियन ला, लिरोना, ला मजा, ओजला व साकुरा सोंग की धुनें भी स्पेनिश गिटार से निकाली। उनका कहना था कि भारतीय शास्त्रीय संगीत का आकर्षण उन्हें मैक्सिको से भारत खींच लाया। वर्तमान में वे भारत (नई दिल्ली) में सितार वादन की शिक्षा ले रहे हैं।
गोकुल गाँव का छोरा
जबलपुर से आए शास्त्रीय संगीत के उदीयमान गायक विवेक कर्महे ने माधुर्य से भरी गायकी से गुणीय रसिकों का मन मोह लिया। उन्होंने राग ” मुलतानी” में एक ताल में निबद्ध बंदिश ” गोकुल गाँव का छोरा..” का गायन किया तो वातावरण भक्तिमय हो गया। इसके बाद उन्होंने द्रुत तीन ताल में तराना पेश किया।
जब कर्महे ने जब अपनी बुलंद एवं खनकदार आवाज़ में एक ताल में निबद्ध बंदिश “नैनन में आन बान” प्रस्तुत की तो घरानेदार गायकी जीवंत हो गई। राग मुलतानी अत्यंत मधुर एवं गंभीर प्रकृति का राग है। जिसमें भक्ति रस की अनुभूति होती है। कर्महे ने अपने गायन में इसे साबित करके दिखाया। उनके साथ तबले पर श्रुतिशील उद्धव व हारमोनियम पर जितेन्द्र शर्मा ने मिठास भरी संगत की।
सुर बहार से झरी मीठे-मीठे सुरों की फुहार
रविवार की सांध्यकालीन तानसेन समारोह में प्रतिष्ठित कलाकार पुष्पराज कोष्टी एवं भूषण कोष्टी ने दुर्लभ वाद्य यंत्र सुर बहार की जुगलबंदी से समा बांध दिया। सुर बहार से झरे मीठे-मीठे सुरों की फुहार से संगीत रसिक सराबोर हो गए। उन्होंने राग दुर्गा में आलापचारी से जुगलबंदी पेश की।
इसके बाद ताल-चौताल में गत बजाई। सुर बहार वादन में सिलसिलेवार बढ़त कमाल की रही। उन्होंने आलाप जोड़झाला में पखावज के साथ लयकारी का सुंदर प्रयोग किया। सुर बहार की जुगलबंदी के साथ पखावज पर संजयपंत आग्ले ने संगत की।
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मेरो मन बांध लीनो
सभा का समापन पूना से आये धनंजय जोशी के ख़याल गायन से हुआ। पंडित अजय पोहनकर के शिष्य जोशीजी ने राग यमन से गायन की शुरुआत की। संक्षिप्त आलाप से शुरू करके उन्होंने इस राग में तीन बंदिशें पेश की।एकताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे- “मेरो मन बांध लीनों” जबकि तीन ताल में मध्यलय की बंदिश के बोल थे- “माई सुगम रूप”।
इसी राग में आपने द्रुत तीन ताल में पंडित सी आर व्यास की बंदिश – ऐरी न माने पिया ” भी पेश की। रात के पहले प्रहर के इस राग को धनंजय जी ने बड़े ही कौशल से गाया।
राग के सिलसिलेवार विस्तार में सुर खिलते चले गए। फिर सुरों को वहलाते हुए विविधता पूर्ण तानों की अदायगी मन को मोहने वाली रही। राग बागेश्री से गायन को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने दो बंदिशें पेश की। मध्यलय तीन ताल की बंदिश के बोल थे-” ऋतु बसंत–” जबकि द्रुत तीन ताल की बंदिश के बोल थे- जो हमने तुमसे बात कही”।
इस राग को भी जोशीजी ने बडे सलीके से और रंजकता से पेश किया। गायन का समापन भैरवी से किया। उनके साथ तबले पर मनोज पाटीदार, और सारंगी पर फारुख लतीफ खांन ने संगत की। हारमोनियम पर जितेंद्र शर्मा ने साथ दिया।