हीरा खनन: आज के दौर में जिस प्रकार से भारत ने ऑक्सीजन की किल्लत झेली है उसका प्रमाण दुनिया के सामने है। कोरोना वायरस की दूसरी लहर में हज़ारों लोगों की मौत हो गई क्योंकि उन्हें ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं मिल पाया। जब ऑक्सीजन का अकाल पड़ा तब लोगों को पर्यावरण की अहमियत समझ आई और उसके बाद 5 जून 2021 को “विश्व पर्यावरण दिवस” के मौके पर पौधरोपण करने का संकल्प लिया।
अभी इसे बीते हुए कुछ ही दिन हुए हैं कि मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड के ज़िला छतरपुर से ऐसी खबर आई जिसके सुनते ही भारत के लोगों में हड़कम्प मच गया।
बक्सवाहा जंगल में लगे 2 लाख से अधिक पेड़ों की बलि चढ़ाकर शुरू होगा “हीरा खनन” का कार्य
छतरपुर ज़िला काफी महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि यहां “बक्सवाहा जंगल” मौजूद है साथ ही “पन्ना नेशनल पार्क” भी यहीं स्थित है। अब कहा यह जा रहा है कि इस बक्सवाहा जंगल में लगे 2 लाख से अधिक पेड़ों की बलि चढ़ाकर “हीरा खनन” का कार्य शुरू करने का प्लान बन चुका है। इस कार्य का जिम्मा “एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड” को सौंपा गया है।
इस कार्य को 364 हेक्टर ज़मीन पर किया जाएगा और खनन का कार्य “राष्ट्रीय खनिज विकास निगम” को सौंपा गया है। साथ ही इस पूरी परियोजना में 55 हज़ार करोड़ की लागत लगेगी और इस पर कार्य शुरू भी हो चुका है। उम्मीद है कि 2022 तक सारे पेड़ कट जाएंगे और पूरा वन साफ हो जाएगा।
अब प्रश्न यह भी है कि आखिर मध्य प्रदेश को ही हीरा खनन के लिए क्यों चुना गया? इसका जवाब है कि “भारतीय खनन ब्यूरो” के अनुसार देश के चार राज्यों में हीरा खनन किया जा सकता है जिनमे से ओडिशा, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ हैं। लेकिन इन सबमें सबसे अधिक मध्य प्रदेश में हीरा खनन के अवसर रहतें हैं। अगर इतिहास के पन्नों को पलटेंगे तो पाएंगे कि हीरा खनन यहाँ पहली बार नहीं हो रहा है बल्कि पिछले 400 सालों से होता चला आ रहा है।
क्या होंगे “हीरा खनन” करने के फायदे
अब बड़ा सवाल यह है कि “हीरा खनन “करने के फायदे क्या होंगे? तो इस परियोजना का मकसद यह है कि बक्सवाहा वन को काटकर उसमें से खनन करके 34 मिलियन “हीरे की चट्टान” को पाना है। यदि यह परियोजना सफल हुई तो सालाना 1550 करोड़ रूपये मध्य प्रदेश की सरकार को मिलेंगे।
जिसकी वजह से उसको तो फायदा होगा ही साथ में देश का भी विकास होगा और यह पूरे भारत का सबसे बड़ा हीरा खनन होगा। लेकिन यह सब इतना आसान नहीं है क्योंकि इसका विरोध तगड़े तरीके से भारत में हो रहा है और हाल ही में ट्विटर पर ट्रेंड भी चल गया था “सेव बक्सवाहा फॉरेस्ट“।
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कई सामाजिक और पर्यावरणविद् कार्यकर्ताओं ने इसके खिलाफ आवाज़ उठाई है। यहाँ तक कि एक कार्यकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में इसके विरुद्ध याचिका भी दायर कर दी है। अब यह मामला पर्यावरण से जुड़ा है ऐसे में सुप्रीम कोर्ट इस पर कड़ा रुख ले सकती है। अब सवाल यह है कि आखिर इस परियोजना को रोकने का प्रयास क्यों किया जा रहा है?
तो इसका पहला जवाब है पर्यावरण का रक्षण। जितने पेड़ लगे नहीं उससे अधिक कट जाएंगे तो ज़ाहिर तौर पर वातावरण और प्रदूषित होगा साथ ही तरह-तरह की बीमारियां भी जन्म लेंगी और इसका दूसरा जवाब “पानी” है।
बुन्देलखण्ड एक्सप्रेस वे के निर्माण में कटेंगे 2 लाख पेड़-पौधे
बुन्देलखण्ड में जल की किल्लत पहले से ही है और इस परियोजना में पानी का उपयोग बहुत ही अधिक होगा। ऐसे में शहर के लोगों को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ जाएगा। इसके अलावा “बुन्देलखण्ड एक्सप्रेस वे” का भी निर्माण होना है जिसमें करीब दो लाख पेड़-पौधे काटे जाएंगे। एक तो वैसे भी बुन्देलखण्ड में इतनी खेती होती नहीं हैं क्योंकि अधिकतर ज़मीनो पर वहाँ सूखा पड़ा है। ऊपर से ये सारे पेड़ काटे जा रहें हैं।
बड़ी बात यह है कि यह वृक्ष वहाँ के व्यक्तियों के लिए आय का साधन है। जैसे कि महुआ के वृक्षों की वजह से यहाँ लोगों की आमदनी हो जाती थी लेकिन जब पेड़ ही कट जाएंगे तब वहाँ के लोग कहाँ जाएंगे, क्या खाएंगे और अपना खर्चा-पानी कैसे निकालेंगे यह सब सवाल वहाँ के लोगों में हैं? इसी लिए इसका विरोध किया जा रहा है।
इस विरोध पर मध्य प्रदेश सरकार ने कहा है कि इस परियोजना से जनता काफी खुश है क्योंकि इससे रोजगार के अवसर मिलेंगे। बाहरी लोग हैं जो इसका विरोध कर रहे हैं। तो कुल मिलाकर हीरा खनन की वजह से पूरे जंगल को वृक्ष विहीन कर दिया जाएगा जो कि बहुत ही दुःखद खबर है।
भारत में वैसे ही पौधारोपण कम किया जाता है और जो हैं उन्हें भी काटा जा रहा। यानी “हीरों” की चाह में हम “हरियाली” गवाँ रहे हैं। खैर, इन सब का वातारवरण में कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा यह तो आने वाले समय में जल्द पता चल जाएगा ।
यशस्वी सिंह (मीडिया छात्र)
इलाहाबाद विश्विद्यालय