स्वतंत्रता दिवस से करीब दो दिन पहले केन्द्र सरकार द्वारा नई अधिसूचना जारी करते हुए 1 जुलाई 2022 से भारत में Single Use Plastic वस्तुओं के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा करते हुए ‘सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्त भारत‘ बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है। Single Use Plastic के बढ़ते खतरों को देखते हुए इस पर प्रतिबंध लगाया जाना बेहद जरूरी भी है।
वैसे दो साल पहले ही स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से अपने सम्बोधन में देश को प्लास्टिक कचरे से मुक्त कराने का अभियान छेड़ने का आह्वान कर दिया था। उसके बाद उन्होंने ‘मन की बात‘ कार्यक्रम के माध्यम से भी देशवासियों से देश को प्लास्टिक मुक्त भारत बनाने की अपील करते हुए तमाम सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं से आग्रह किया कि वे प्लास्टिक कचरे का निस्तारण करने के लिए आगे आएं।
देशवासियों से यह आह्वान करने के बाद उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की ओर से ग्रेटर नोएडा में आयोजित सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए Single Use Plastic से छुटकारा पाने के लिए पूरे विश्व समुदाय का भी आह्वान किया था।
Single Use Plastic पर प्रतिबंध लगाने के लिए दिल्ली सरकार ने कमर कस ली है
केन्द्र सरकार द्वारा Single Use Plastic पर प्रतिबंध लगाए जाने को लेकर अधिसूचना जारी करने के कुछ ही दिनों बाद अब दिल्ली सरकार द्वारा भी इसे लेकर कमर कस ली गई है। दरअसल दिल्ली सरकार ने भी अब सिंगल यूज प्लास्टिक के प्रयोग के खिलाफ सराहनीय अभियान चलाने का बड़ा निर्णय लिया है।
हालांकि अभीतक दिल्ली में सिंगल यूज प्लास्टिक के प्रयोग के खिलाफ विधिक एजेंसियां अभियान चलाती रही हैं लेकिन अब दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) द्वारा Single Use Plastic के खिलाफ बड़ा अभियान चलाने के लिए तैयार किए गए एक्शन प्लान के तहत एनफोर्समेंट ड्राइव भी चलाया जाएगा।
चूंकि विभिन्न धार्मिक और सामाजिक समारोहों में बड़ी संख्या में लोगों के इकट्ठा होने पर प्लास्टिक का उपयोग काफी ज्यादा होता है, इसीलिए इस एक्शन प्लान के तहत ऐसे समारोहों पर नजर रखी जाएगी और डीपीसीसी द्वारा इसके लिए राज्यस्तरीय स्पेशल टास्क फोर्स तथा जिलास्तरीय टास्क फोर्स गठित करने का निर्णय लिया गया है, जो उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए शिकंजा कसेंगी।
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दिल्ली में Single Use Plastic के उपयोग की सटीक जानकारी मिल सके, इसके लिए डीपीसीसी दिल्ली की तमाम जगहों से प्रतिदिन का आंकड़ा मंगाएगी कि शहर में प्लास्टिक कचरे का कुल कितना उत्पादन हो रहा है। इन आंकड़ों के आधार पर सिंगल यूज प्लास्टिक यूनिट्स को बंद कराने में आसानी हो सकेगी।
आज प्लास्टिक कचरे की विकराल होती समस्या के मद्देनजर प्रत्येक राष्ट्र का कर्त्तव्य है कि धरती पर प्लास्टिक कचरे से उत्पन्न पर्यावरणीय समस्याओं से दुनिया को राहत दिलाने के लिए वह अब अपने स्तर पर इस दिशा में ठोस कदम उठाएं।
‘स्वच्छ भारत अभियान‘ में पॉलीथीन सबसे बड़ी बाधा है
5 जून 2018 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2022 तक भारत को प्लास्टिक से निजात दिलाने का लक्ष्य रखा था और प्लास्टिक के खतरनाक प्रभावों को देखते हुए उन्होंने देशवासियों से गांधीजी की 150वीं जयंती तक अर्थात् 2 अक्तूबर 2019 तक ही प्लास्टिक रूपी मुसीबत से छुटकारा पाने का आह्वान किया था। तब लगने लगा था कि बहुत जल्द भारत को सिंगल यूज प्लास्टिक रूपी मुसीबत से छुटकारा मिल जाएगा।
दरअसल उस समय प्लास्टिक के खतरों के प्रति प्रधानमंत्री के उन आह्वानों का जमीनी स्तर पर सकारात्मक प्रभाव दिखने भी लगा है और स्वयं प्रधानमंत्री भी मानने लगे थे कि भारत जल्द ही Single Use Plastic से छुटकारा पा लेगा तथा देश में आने वाले वर्षों में सिंगल यूज प्लास्टिक की कोई जगह नहीं होगी।
हालांकि एक बार तेजी पकड़ने के बाद यह अभियान अब काफी शिथिल पड़ चुका है। सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ इस अभियान का कारण यही था कि अगर सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग नहीं रोका गया तो भू-रक्षण का नया स्वरूप सामने आएगा और फिर जमीन की उत्पादकता को वापस प्राप्त करना नामुमकिन होगा।
‘स्वच्छ भारत अभियान‘ में पॉलीथीन सबसे बड़ी बाधा है, इसीलिए लोगों से प्लास्टिक मुक्त भारत की मुहिम में योगदान देने के लिए बाजार से खरीदारी के लिए पॉलीथीन के बजाय कपड़े का थैला इस्तेमाल करने की अपील भी की जाती रही है।
दरअसल एक समय था, जब हम बाजार से कोई भी सामान लाने के लिए कपड़े का थैला लेकर ही घर से निकलते थे लेकिन समय के साथ-साथ अपनी सहूलियतों के हिसाब से हमने पॉलीथिन को इतना महत्व दिया कि कपड़े का थैला लेकर बाजार जाना आज की पीढ़ी को तो अपनी शान के खिलाफ लगता है।
पर्यावरण संरक्षण और ‘प्लास्टिक मुक्त भारत‘ के लिए उठाने होंगे कदम
जेब में 250 ग्राम का स्मार्टफोन लेकर चलने वाले लोग 50-100 ग्राम वजनी पतला थैला जेब में डालकर ले जाना पसंद नहीं करते। ऐसे में पर्यावरण संरक्षण और ‘प्लास्टिक मुक्त भारत‘ के लिए इन आदतों में बदलाव लाने हेतु Single Use Plastic से तौबा करने के लिए आमजन को जागरूक करना आज के समय में बेहद जरूरी है।
हालांकि करीब दो वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री के देश से सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध के आह्वान के बाद लोकसभा सचिवालय द्वारा देश की सबसे बड़ी पंचायत ‘संसद’ परिसर में दोबारा इस्तेमाल न हो सकने वाली प्लास्टिक की चीजों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। उसके बाद सरकारी विमानन कम्पनी ‘एयर इंडिया‘ ने भी अपनी सभी उड़ानों में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक लगाने का निर्णय लिया था।
ऐसे कदमों के बाद उम्मीद बढ़ी थी कि इसका अनुसरण करते हुए देश के तमाम राज्यों में भी एक-एक कर सभी संवैधानिक संस्थाओं, सरकारी व गैर सरकारी कार्यालयों और औद्योगिक परिसरों में भी इसी प्रकार के सकारात्मक कदम उठाए जाएंगे लेकिन इस दिशा में कोई विशेष प्रगति नहीं होना चिंता का विषय है।
‘प्लास्टिक मुक्त भारत’ अभियान से जुड़े अधिकारियों का दावा है कि Single Use Plastic में पॉलीथीन, प्लास्टिक के कप-प्लेट, बोतलें, स्ट्रा, कुछ प्रकार के सैशे इत्यादि पर प्रतिबंध लग जाने से भारत में 14 मिलियन टन प्लास्टिक की खपत कम हो जाएगी, जिससे सालाना प्लास्टिक की खपत में 5-10 फीसदी तक की कमी आएगी लेकिन यह लक्ष्य तभी हासिल हो सकेगा, जब नियमों को सख्ती से लागू कराने के प्रति सरकारें गंभीर होंगी और लोगों को भी इस दिशा में जागरूक किया जा सकेगा।
प्लास्टिक की एक थैली को नष्ट होने में लग जाते हैं 20 से 1000 साल
अब यह भी जान लेते हैं कि आखिर Single Use Plastic के खिलाफ अभियान छेड़ना क्यों जरूरी है? दरअसल यह एक ऐसा प्लास्टिक है, जिसे हम एकबार इस्तेमाल कर कूड़े में फेंक देते हैं। ब्रसेल्स आयोग के सदस्य फ्रांस टिमरमंस के अनुसार प्लास्टिक की थैली सिर्फ पांच सैकेंड में ही तैयार हो जाती है, जिसका लोग प्रायः पांच मिनट ही इस्तेमाल करते हैं, जिसे गलकर नष्ट होने में पांच सौ साल लग जाते हैं।
प्लास्टिक की एक थैली को नष्ट होने में 20 से 1000 साल तक लग जाते हैं जबकि एक प्लास्टिक की बोतल को 450 साल, प्लास्टिक कप को 50 साल और प्लास्टिक की परत वाले पेपर कप को नष्ट होने में करीब 30 साल लगते हैं। बहरहाल, प्लास्टिक प्रदूषण से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय यही है कि लोगों को इसके खतरों के प्रति सचेत और जागरूक करते हुए उन्हें प्लास्टिक का उपयोग न करने को प्रेरित किया जाए।
पॉलीथिन चूंकि पेपर बैग के मुकाबले सस्ती पड़ती है और टिकाऊ भी है, इसीलिए अधिकांश दुकानदार इसका इस्तेमाल करते रहे हैं। प्रतिवर्ष उत्पादित प्लास्टिक कचरे में से सर्वाधिक प्लास्टिक कचरा Single Use Plastic का ही होता है और इसका खतरा इसी से समझा जा सकता है कि ऐसे प्लास्टिक में से केवल 20 फीसदी प्लास्टिक ही रिसाइकल हो पाता है,
करीब 39 फीसदी प्लास्टिक को जमीन के अंदर दबाकर नष्ट किया जाता है, जिससे जमीन की उर्वरक क्षमता प्रभावित होती है और यह जमीन में केंचुए जैसे जमीन को उपजाऊ बनाने वाले जीवों को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर देती है।
15 फीसदी प्लास्टिक जलाकर नष्ट किया जाता है और प्लास्टिक को जलाने की इस प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में वातावरण में उत्सर्जित होने वाली हाइड्रो कार्बन, कार्बन मोनोक्साइड तथा कार्बन डाईऑक्साइड जैसी गैसें फेफड़ों के कैंसर व हृदय रोगों सहित कई बीमारियों का कारण बनती हैं।