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August 18, 2025
विचार

देश में कोरोना की मार, छीन गया युवाओं से रोजगार

भारत में बेरोजगारी का आलम अपने चरम पर है और जब से कोरोना वायरस आया है तब से तो उसने लोगों का रोजगार ही निगल लिया है। कागज़ में भले ही लाखों लोगों को नौकरियां मिलने की बात कही गई हो लेकिन वास्तव में बेरोजगारी भारत में तेज़ी से बढ़ी है। कोविड-19 की वजह से कुछ चुनिंदा परीक्षाओं को छोड़ दें तो करीब दो साल से कोई प्रतियोगी परीक्षाएं नहीं हो रही हैं जिसकी वजह से छात्रों के जीवन पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।

रोजगार

परीक्षा की तिथि जैसे ही नज़दीक आती है वैसे ही कोरोना का प्रकोप भी बढ़ जाता है जिसकी वजह से इन परीक्षाओं को स्थगित करना पड़ रहा है। इन सबके चलते छात्रों में काफी निराशा है। इसका असर परीक्षा के अलावा लोगों की नौकरियों पर भी पड़ा है और करोड़ों लोगों की नौकरी इस कोरोना काल में चली गई।

कोरोना वायरस ने कितनों का रोजगार निगला?

जब कोरोना वायरस की पहली लहर आई थी उसके बाद भारत के लोगों का रोजगार छिन तो गया था पर दोबारा से फिर उन्हें नई जगह में नौकरी करने का अवसर प्राप्त हुआ। ऐसे में भारत तेज़ी से इस समस्या से उबर रहा ही था कि दूसरी लहर भी आ गई। लेकिन इस बार यह इतनी खतरनाक थी कि फरवरी 2021 से मई 2021 के बीच डेढ़ करोड़ लोगों की नौकरियां हाथ से चली गईं।

सेंटर ऑफ मॉनिटरिंग इकोनॉमी जो कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर अपनी पैनी नज़र बनाए रखता है उसकी रिपोर्ट के अनुसार भारत में जिन व्यक्तियों के पास अप्रैल के महीने में नौकरी थी उनकी संख्या 39 करोड़ से अधिक थी, लेकिन यही संख्या में भारी गिरावट देखने को मिली और अब यह 37.5 करोड़ तक पहुंच गई है।

यह आंकड़ा इस साल के सिर्फ मई महीने का है लेकिन अगर अप्रैल को भी जोड़ दें तो 2.3 करोड़ लोगों ने अपनी नौकरी गंवा दी है। इस वक्त भारत में करीब पांच करोड़ से अधिक लोग ऐसे हैं जो काम करना चाहते हैं लेकिन नौकरी ही नहीं है। ये बेहद ही निराशाजनक है क्योंकि उनके पास क्षमता होने के बावजूद वह रोजगार से वंचित हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कुछ भी काम नहीं करना चाहते और उनका आंकड़ा इसमें नहीं मिलाया गया है।

कौन से वर्ग का अधिक रोजगार छिना है?

कोरोना काल में सबसे अधिक पीड़ित गांव क्षेत्र के लोग हुए हैं। शहरी क्षेत्र में जो नौकरी पेशा वर्ग था उसके ऊपर नकारात्मक प्रभाव पड़ा तो है। साथ ही जिनकी नौकरी बची रह गई है यानी ऐसे 1.4 मिलियन लोग हैं जिनके वेतन में बढ़ोतरी भी देखने को मिली। लेकिन लॉकडाउन के बाद से दुकानें बन्द पड़ीं थीं, आय का कोई साधन नहीं था।

इस वजह से ऐसे वर्ग के लोग सबसे अधिक पीड़ित हुए हैं जिनके छोटे व्यापार हैं या जो लोग रोज़ कमाते-खाते हैं उनके ऊपर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है। छोटे व्यापारी और दैनिक मजदूरों को मिला दें तो अप्रैल 2021 में करीब 12.7 करोड़ लोग ऐसे थे जो कि अपनी रोज़ी-रोटी आराम से चला ले रहे थे।

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लेकिन इस साल के मई महीने तक यह संख्या 11 करोड़ तक सीमित रह गई है। सवाल यह है कि यह सभी लोग किस क्षेत्र में नौकरी की तलाश में गए है? तो इसका जवाब है कि भारत में ऐसे लोग जो अपने घर से बाहर जाते हैं पैसे कमाने उनके वहाँ रहने तक घर की खेती परिवार के सदस्य ही सम्भालते हैं।

लेकिन वर्तमान में जब उनके पास रोजगार नहीं था तो वह वापस अपने गांव जाकर खेती करने लगे हैं। यही वजह है कि मई के महीने में 9 मिलियन लोग किसानी के क्षेत्र में चले गए और अब खेती करने वालों का आंकड़ा 123 मिलियन से अधिक पहुंच गया है।

दूसरी लहर के बाद क्या बदले हालात?

कोरोना काल की पहली लहर के बाद दिसम्बर से फरवरी तक लोगों को दोबारा फिर से नौकरी मिलनी शुरू हो गई थी। लेकिन शहरी क्षेत्र में जो बेरोजगारी दर अप्रैल के महीने में 7.13% था वह मई में 10.63% तक पहुंच गया है। ज़ाहिर तौर पर साफ प्रतीत हो रहा है कि बेरोजगारों की संख्या में बड़ी बढ़ोतरी देखने को मिली है।

रिजर्व बैंक का बेरोजगारी पर क्या मत है?

भारतीय रिजर्व बैंक ने भी यह बात मानी है कि कोरोना की दूसरी लहर के बाद इसका असर लोगों के रोजगार पर पड़ा है और बेरोजगारों की संख्या भी बढ़ी है। साथ ही उसने यह अनुमान लगाया है कि आने वाले समय में इसका नकारात्मक असर लोगों के रोजगार पर पड़ सकता है।

आरबीआई का साफ कहना है कि इस महामारी के दौर में व्यापार से जुड़े सारे साधनों को खुला रख कर लोगों का रोजगार बचा सकते हैं या फिर इन्हें बन्द करके लोगों की जान बचा सकते हैं।

क्या है भारत में गरीबी का दृश्य?

कुछ समय पहले ही भारत की जीडीपी में सुधार हुआ था और लोग गरीबी संख्या के ऊपर आए थे। लेकिन अब जब लोगों के पास नौकरी है नहीं और ना ही कोई आय का साधन है, तो ज़ाहिर है कि गरीबी भी बढ़ना तय हैं। इस पर कई रिसर्च हुई हैं जिसमें पिउ रिसर्च के अनुसार इस महामारी के दौरान 75 मिलियन लोग वापस गरीबी रेखा के नीचे चले गए हैं जो कि बेहद ही गंभीर आंकड़ा है।

इसके अलावा अज़ीम प्रेम जी यूनिवर्सिटी की रिसर्च के तहत एक व्यक्ति यदि वह रोज़ कमाता है तो औसतन अभी तक वह प्रतिदिन 375 रुपए कमाता था लेकिन अब 230 मिलियन लोग ऐसे हैं जो इस औसतन रुपए से भी नीचे चले गए हैं।

इससे उबरने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?

भारतीय रिजर्व बैंक ने इस भयावह स्थिति से बाहर आने के लिए कुछ योजना लाई है जैसे “उत्पादन से जुड़ी योजना” तथा संसद में “लेबर कोड्स” पास किया गया है। तो इस प्रकार से कुछ कदम अभी तक आरबीआई के द्वारा लिए गए हैं उम्मीद यही है आने वाले समय में ऐसी ही कुछ अन्य योजना लाई जाए जो रोजगार के अवसर प्रदान करे।

-यशस्वी सिंह

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