27.1 C
New Delhi
September 8, 2024
विचार

भारत भी अब देख रहा चीन-पाक की आंख में आंख डालकर

भारत भी अब देख रहा चीन-पाक की आंख में आंख डालकर

जब  भारत की चीन और पाकिस्तान से  लगने वाली  सीमा  पर तनाव कई महीनों से बरकरार चला आ है। तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दिवाली पर देश की सीमाओं की रखवाली करने वाले जवानों के साथ रहना अत्त्यॅंत ही महत्वपूर्ण है।

वे तो पिछले कई वर्षों से दीपोत्सव देश के जवानों के साथ ही मनाते रहे हैं। उन्होंने कहा की उनकी दिवाली तभी पूर्ण होती है जब वह जवानों के साथ होते हैं, चाहे वह बर्फ से ढके पहाड़ हों या रेगिस्तान।

इस बार प्रधानमंत्री ने साफ संकेतों में चीन और पाकिस्तान को सॅंयुक्त रूप से यह बता दिया है कि  “आज का भारत समझ और पारस्परिक अस्तित्व में विश्वास तो जरूर रखता है लेकिन अगर हमारे धैर्य की परीक्षा ली जाएगी तो हम उसी भाषा में हम भी बराबरी से जवाब देंगे।” कहना न होगा कि उनका संदेश बीजिंग से लेकर  इस्लामाबाद तक तो चला ही गया होगा।

चीन-पाकिस्तान को ललकारने का मतलब भारत अपने इन चिऱ शत्रुओं  से सरहद पर प्रति दिन ही लोहा ले रहा है। लेकिन, भारत को तो अपने इन दुष्ट पड़ोसी मुल्कों की नापाक हरकतों का मुकाबला करने के लिए हर वक्त चौकस और तैयार तो रहना ही होगा।

ये दोनों दुश्मन एक-दूसरे के घनिष्ठ मित्र भी बन गये दिखते हैं। कम से कम ऊपर से देखने में तो यही लगता है।

वैसे, कूटनीति में कोई देश किसी का स्थायी मित्र या शत्रु तो नहीं होता। क्या अगर भारत का चीन के साथ युद्ध हुआ, तो पाकिस्तान भी मैदान में खुलकर आएगा चीन के साथ?

इसी तरह क्या अगर पाकिस्तान का भारत के साथ युद्ध हुआ, तो चीन भी अपने मित्र देश पाकिस्तान के हक में लड़ेगा? 

यह अहम प्रश्न है जिसका उत्तर सभी जानना चाहते हैं। इसी पृष्ठभमि में प्रधानमंत्री मोदी का सैनिकों के बीच में जाकर चीन-पाकिस्तान को ललकारने का कुछ मतलब तो जरूर है।

दरअसल चीन- पाकिस्तान ने भारत के किसी शिखर नेता  का इस तरह क विश्वास से लबरेज स्वर अभी तक तो नहीं सुना था। माफ करें, पर अबतक का सच तो यही है कि भारत के तमाम हुक्मरान अभी तक तो सिर्फ शांति और सदभाव की ही बातें करते थे और आहवान करते रहते थे।

पर  मोदी जी ने उस परंपरा को तोड़ा है। वे उस भारत के प्रधानमंत्री है, जो अपने मित्र देशों को गले लगाने के लिए हर वक्त तैयार है और शत्रु देशों की आंखों में आंखें डालकर बात करने में भी कोई हिचक नहीं है।

भारत इस बार चीन और पाकिस्तान की कमर सदा के लिये तोड़ने के मूड में दिख रहा है। बेहतर यही होगा कि दोनों शत्रु देश यह जल्दी ही जान लें कि गांधी, बुद्ध और महावीर का अहिंसक भारत पराक्रम सम्राट अर्जुन, कर्ण, छत्रपति शिवाजी और महाराणा प्रताप को भी अपना नायक मानता है।

निश्चित रूप से भारत अपने राष्ट्रीय हितों से किसी भी तरह का समझौता करने वाला नहीं है। ऐसा भारत के वर्तमान सरकार की बढ़ती सैन्य क्षमता और दृढ़ता से ही संभव हुआ है।

भारत आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने आप को मजबूती से रख पाता है तो सिर्फ इसलिए क्योंकि भारत के सशस्त्र सैन्य बलों ने सुरक्षा का वातावरण बनाया है।

भारत की सैन्य शक्ति के चलते ही आज भारत किसी के साथ आमने-सामने की बातचीत करने में सक्षम हुआ है। आज भारत आतंकवाद को पनाह देने वालों को

उनके घर में घुसकर सबक सिखाता है। भारत को अब किसी भी देश से दबकर रहने की जरूरत नहीं है। चीन ने किया पंचशील को बेमानी  भारत ने बहुत समय तक दोस्ती और प्रेम की भाषा मे बात कर ली चीन और पाकिस्तान से।

हमने ही चीन के साथ अपने संबंधों को पंचशील की बुनियाद पर खड़ा किया था। हालांकि पंचशील शब्द आज की स्थिति में बेमानी हो गया है। चीन ने पंचशील के सिद्धांत पर कभी अमल ही नहीं किया।

पंचशील शब्द मूलतः बौद्ध साहित्य व दर्शन से जुड़ा शब्द है। चौथी-पाँचवी शताब्दी के बौद्ध दार्शनिक बुद्धघोष की पुस्तक “विशुद्धमाग्गो” में “पंच शील” मतलब,  पाँच व्यवहार की विस्तृत चर्चा है जिस पर बौद्ध उपासकों को अनुसरण करने की हिदायत दी गई है।

पंचशील में शामिल सिद्धांत थे राष्ट्रवाद, मानवतावाद, स्वाधीनता, सामाजिक न्याय और ईश्वरआस्था की स्वतंत्रता।

सवाल यह है कि बौद्ध दर्शन के इतिहास से अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में पंचशील कैसे आया?

29 जून 1954 को तिब्बत के मसले पर नयी दिल्ली में भारत और चीन के बीच एक समझौता हुआ था। इस समझौते में भारत और चीन के संबंधों तथा अन्य देशों के साथ पारस्परिक संबंधों में भी शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच आधारभूत सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया।

इन्हीं पाँच सिद्धांतों का नाम “पंचशील” रखा गया जो इस बात पर जोर देता था कि सभी राष्ट्र एक दूसरे की संप्रभुता एवं प्रादेशिक अखंडता का सम्मान करेंगे। जाहिर है,  इस शब्द का अर्थ गहरा है।

पर धूर्त चीन की हरकतों से साफ है कि वह पंचशील के मूल्यों और सिद्धातों से बहुत दूर जा चुका है। वह सामान्य पडोसी धर्म का निर्वाह करना तक भूल गया है।

बहरहाल, भारत विस्तारवादी सोच वाली ताकतों का मुकाबला करने के मामले में एक मजबूत आवाज बनकर उभरा है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी जवानों के सामने कहा कि विस्तारवाद 18वीं सदी की प्रवृत्ति का प्रतीक है और इस मानसिक विकार से वर्तमान में समूचा विश्व परेशान है।

मोदी जी ने जवानों को संबोधित करते हुए प्रसिद्ध लोंगेवाला की लड़ाई को याद करके बहुत अच्छा किया। साल 1971 की जंग में भारत  के लोंगेवाला पोस्ट पर तैनात 120 भारतीय सैनिकों ने दर्जनों टैंकों के साथ आए हजारों पाकिस्तानी सैनिकों को धूल में मिलाया था।

लोंगेवाला पोस्ट पंजाब रेजिमेंट की 23वीं बटालियन के पास थी। उसके कमांडर थे मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी। पाकिस्तानी की योजना थी कि लोंगेवाला में बेस बनाया जाए क्योंकि वहां तक सड़क आती थी। इसके बाद पाकिस्तान की जैसलमेर

को कब्जा करने की भी नापाक योजना थी। लोगेवाल में जिस तरह से हमारे वीर सैनिक लड़े थे उस पर सारा देश आजतक गर्व करता है। उस लड़ाई को भारतीय सेना के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता रहेगा।

इसमें कोई शक नहीं है कि मोदी जी का जवानों के बीच में  जाने और संबोधित करने से चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को अच्छी तरह पता चल ही गया होगा कि भारत से जंग का दुस्साहस किया तो इस बार कसकर मार पड़ेगी।

चीन से तो वैसे भी बदला लेना है 1962 का। एक बार चीन छेड़े तो सही जंग भारत से। कोई अगर हमें छेडेगा तो इसबार हम उसे छोडेंगें नहीं। अब की बार दुश्मन को उसी के घर में घुसकर मारने की तैयारी भारतीय सेना ने कर ली है।

Related posts

सावित्रीबाई फुले का आदर्श जीवन सम्पूर्ण सभ्यता के लिए महान प्रेरणा

Buland Dustak

मत बांटों सेना को प्रांत या मजहब के नाम पर

Buland Dustak

वीर सावरकर को बदनाम करने की कड़ी आगे बढ़ सकती है?

Buland Dustak

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस : स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र के लिए अहम है प्रेस की स्वतंत्रता

Buland Dustak

क्या इस लोकतंत्र में कांग्रेस पार्टी खुद को बदल पाएगी ?

Buland Dustak

Russia-Ukraine War : जानिए, यूक्रेन पर रूस ने क्यों किया हमला

Buland Dustak