महिला सशक्तिकरण और समाज: कहा जाता है कि एक महिला सशक्त होती है तो वह देश के भविष्य को बनाने में अपनी अहम भूमिका निभाती हैं। सशक्त होने के कारण ही आज की महिलाएं घर की जिम्मेदारी संभालने के साथ व्यावसायिक क्षेत्रों में भी बाजी मार रही हैं।
महिलाओं ने यह बात साबित कर दी है कि वे हर वो काम कर सकती हैं जिसे कभी पुरुषों के योग्य समझा जाता था। अपनी मेहनत के बदौलत उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। वे पूरी दुनिया को बताने की कोशिश कर रही हैं कि उनमें पुरुषों से बेहतर निर्णय लेने की काबिलियत है। ये सब वे शिक्षा और आत्म-निर्भर के बदौलत ही वे कर पा रही हैं।
27 फीसदी महिला आबादी हैं कामकाजी
महिला सशक्तिकरण की बात करते हुए हम इस बात को नकार नहीं सकते कि हमारे देश में महिलाओं की शिक्षा को लेकर स्थिति में सुधार भले ही आया है, लेकिन उनकी साक्षरता दर पुरुषों की तुलना में अभी भी कम है। तमाम संघर्ष करने के बाद भी देश की सिर्फ 27 फीसदी महिला आबादी ही कामकाजी है।
इसमें से भी गांव की ज्यादातर महिलाएं कृषि और असंगठित क्षेत्र में काम करती हैं। क्या शेष महिलाएं काम करने के लिए सक्षम नहीं हैं? क्या उन्हें आज समानता और स्वतंत्रता की राहें हासिल हो पाई हैं?
सम्मानजनक तरीके से जीने का अधिकार
एक तरफ शहरों और महानगरों की महिलाएं आर्थिक रुप से स्वतंत्र, शिक्षित हो रही हैं, वे कई क्षेत्रों में ऊंचे पदों पर काबिज है। जिसका परिणाम यह है कि उनके विचारों में परिवर्तन देखने को मिला हैं। आज वे अपने बल पर दुनिया जीत रही हैं।
अब वे किसी भी हाल में पुरुषों के दमन को नहीं सहना चाहती, हाँ इस बात को बिल्कुल नही नकारा जा सकता कि ऐसी महिलाओं की संख्या अभी कम है लेकिन आज ये महिलाएं सम्मानजनक स्थिति में अपनी ज़िंदगी जी रही हैं।
वहीं गांव में आज भी महिलाओं के अस्तित्व में काफी कम बदलाव आया है। क्योंकि आज भी वे अपने अधिकारों को लेकर वंचित हैं, इसलिए वे इन अधिकारों का महत्व नहीं समझ पाती और जिस स्थिति में वे जी रही है उसे ही अपनी ज़िंदगी मान लेती हैं। उनकी इस स्थिति का सबसे बड़ा कारण यही है कि महिलाओं की साक्षरता दर शहरों की तुलना में गांवों में बेहद कम है।
इसलिए महिला सशक्तिकरण केवल शहरी क्षेत्रों तक ही सिमटकर रह गया है। जरूरत है कि शिक्षा की बदौलत ग्रामीण महिलाओं को काबिल बनाया जाए जिससे उनकी सोच में बदलाव आए, और वे उन परंपराओं और मर्यादाओं से बाहर निकले, जिससे वे एक छोटे से दायरे में बंधी हुई हैं।
महिला सशक्तिकरण: समाज के विचार अभी भी पिछड़े हुए
आज महिला सशक्तीकरण को मजबूत बनाने के लिए महिलाओं को उच्च शिक्षा दी जानी काफी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि शिक्षा से ही उनकी स्वतंत्रता, साहस और आत्मनिर्भरता की नींव मजबूत होगी। शिक्षा और ज्ञान न होने के कारण अक्सर महिलाओं का किसी न किसी रूप में शोषण सहना पड़ता है।
इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि हम भले ही खुद को आधुनिक मानने लगे हैं, लेकिन हकीकत यही है कि हमारी आधुनिकता सिर्फ व्यवहार और पहनावे तक ही सीमित है, हमारे विचार अभी भी पिछड़े हुए हैं।
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महिला हमेशा से ही अपनी ज़िंदगी में हर किरदार बखूबी से निभाती आई हैं लेकिन इसके बावजूद भी उन्हें पुरुषों की तुलना में दोयम दर्जे का समझा जाता है। इसलिए महिला सशक्तिकरण के अंतर्गत शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई जाती है,
और महिलाओं को सम्मान देने की बात की जाती है जिन पर विचार करने की जरूरत सिर्फ भारत में ही नही बल्कि पूरे विश्व में है। भले ही संविधान में महिलाओं और पुरुषों को बराबरी के अधिकार दिए गए हैं। लेकिन आज भी उन्हें उन्हें पुरुषों के मुकाबले कम आंका जाता है।
शिक्षा क्षेत्र में महिला सशक्तिकरण जरूरी
महिलाओं को उनकी निजी स्वतंत्रता देना और उनको खुद ही अपने फैसले लेने का अधिकार देना महिला सशक्तिकरण का सबसे बड़ा उद्देश्य है। महिला सशक्तिकरण के बिना महिलाओं को वह अधिकार कभी नही मिल सकता जिसकी वे हमेशा से ही हक़दार रही हैं।
जब तक परिवार और समाज महिलाओं को लेकर सकारात्मक सोच के साथ आगे नहीं बढ़ेगा, तब तक महिला सशक्तिकरण की बातें करना एक कल्पना के ही समान है। देश का विकास तब तक मुश्किल है, जब तक वे शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में वहां की महिलाएं सशक्त बन कर न उभरे।