11.1 C
New Delhi
December 8, 2024
देश

भारतीय राजनीति में खालीपन छोड़ गये प्रणब मुखर्जी, याद रखेगा देश

नई दिल्ली: भारत के 13वें राष्ट्रपति रहे​ भारत रत्न ​​प्रणब मुखर्जी हमारे बीच नहीं रहे। अगस्त माह के आखिरी दिन 85 वर्ष की आयु में वे हमसे विदा ले गए। भारत रत्न प्रणब मुखर्जी का जन्म 11 दिसम्बर 1935 को पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में किरनाहर शहर के निकट स्थित मिराती गांव के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता कामदा किंकर मुखर्जी 1920 से कांग्रेस पार्टी में सक्रिय होने के साथ पश्चिम बंगाल विधान परिषद में 1952 से 64 तक सदस्य रहे। वह वीरभूम (पश्चिम बंगाल) जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके थे। उनके पिता एक सम्मानित स्वतन्त्रता सेनानी थे, जिन्होंने ब्रिटिश शासन की खिलाफत के परिणामस्वरूप 10 वर्षो से अधिक जेल की सजा भी काटी थी।

प्रणब मुखर्जी

निजी जीवन और शिक्षा

प्रणब मुखर्जी ने सूरी (वीरभूम) के सूरी विद्यासागर कॉलेज में शिक्षा पाई, जो उस समय कलकत्ता विश्वविद्यालय से सम्बद्ध था। कलकत्ता विश्वविद्यालय से उन्होंने इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर के साथ साथ कानून की डिग्री हासिल की है। वे एक वकील और कॉलेज प्राध्यापक भी रह चुके हैं। उन्हें मानद डी-लिट उपाधि भी प्राप्त है। उन्होंने पहले एक कॉलेज प्राध्यापक के रूप में और बाद में एक पत्रकार के रूप में अपना कैरियर शुरू किया।

वे बांग्ला प्रकाशन संस्थान देशेर डाक (मातृभूमि की पुकार) में भी काम कर चुके हैं। प्रणब मुखर्जी बंगीय साहित्य परिषद के ट्रस्टी एवं अखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे। कामदा किंकर मुखर्जी और राजलक्ष्मी मुखर्जी के घर जन्मे प्रणब मुखर्जी का विवाह 22 वर्ष की आयु में 13 जुलाई 1957 को शुभ्रा मुखर्जी के साथ हुआ था। उनके दो बेटे और एक बेटी यानी कुल तीन बच्चे हैं। पढ़ना, बागवानी करना और संगीत सुनना, उनके तीन व्यक्तिगत शौक भी रहे। 

राजनीतिक जीवन

करीब पांच दशक पुराना उनका संसदीय जीवन 1969 में कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सदस्य के रूप में (उच्च सदन) से शुरू हुआ था। वे 1975, 1981, 1993 और 1999 में फिर से राज्यसभा सदस्य चुने गये। 1973 में वे औद्योगिक विकास विभाग के केंद्रीय उप मन्त्री के रूप में मन्त्रिमंडल में शामिल हुए। सन 1982 से 1984 तक कई कैबिनेट पदों के लिए चुने जाते रहे।  सन् 1984 में भारत के वित्त मंत्री बने। सन 1984 में यूरोमनी पत्रिका के एक सर्वेक्षण में उनका विश्व के सबसे अच्छे वित्त मंत्री के रूप में मूल्यांकन किया गया। उनका कार्यकाल भारत के अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के ऋण की 1.1 अरब अमेरिकी डॉलर की आखिरी किश्त नहीं अदा कर पाने के लिए उल्लेखनीय रहा।

राजीव गांधी की सलाहकार मंडली के राजनीतिक षड्यन्त्र के शिकार हुए

वित्त मंत्री के रूप में प्रणबदा के कार्यकाल के दौरान डॉ. मनमोहन सिंह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर थे। श्रीमति इंदिरा गांधी की हत्या के बाद वे प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे उपयुक्त माने गए पर गांधी परिवार के राजीव ही प्रधानमंत्री बने। उसके बाद हुए लोकसभा चुनाव के बाद राजीव गांधी की सलाहकार मंडली के राजनीतिकषड्यन्त्र के शिकार हुए, जिसने इन्हें राजीव के मन्त्रिमंडल में शामिल नहीं होने दिया। इसी तनातनी के चलते कुछ समय के लिए उन्हें कांग्रेस पार्टी से निकाल दिया गया।

उस दौरान उन्होंने अपने राजनीतिक दल राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया, लेकिन सन 1989 में राजीव गान्धी के साथ समझौता होने के बाद उन्होंने अपने दल का कांग्रेस पार्टी में विलय कर दिया। उनका राजनीतिक कैरियर उस समय फिर पुनर्जीवित हो उठा, जब पीवी नरसिंह राव ने पहले उन्हें योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में और बाद में केन्द्रीय कैबिनेट में शामिल किया। उन्होंने राव के मंत्रिमंडल में 1995 से 1996 तक पहली बार विदेश मन्त्री के रूप में कार्य किया। 1997 में उन्हें उत्कृष्ट सांसद चुना गया।

मनमोहन सिंह सरकार में रहे नंबर टू 

कांग्रेस ने 2004 में जब यूपीए गठबन्धन की सरकार मनमोहन सिंह के नेतृत्व में बनाई तो जंगीपुर (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) से पहली बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले प्रणब मुखर्जी को लोकसभा में सदन का नेता बनाया गया। उन्होंने अपने राजनीतिक कार्यकाल में रक्षा, वित्त, विदेश, राजस्व, नौवहन, परिवहन, संचार, आर्थिक मामले, वाणिज्य और उद्योग समेत विभिन्न महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाले हैं। वह कांग्रेस संसदीय दल और कांग्रेस विधायक दल के नेता रह चुके हैं, जिसमें देश के सभी कांग्रेस सांसद और विधायक शामिल होते हैं।

इसके अतिरिक्त वे लोकसभा में सदन के नेता, बंगाल प्रदेश कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष, कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मंत्रिपरिषद में केन्द्रीय वित्त मन्त्री भी रहे। लोकसभा चुनावों से पहले जब प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने अपनी बाई-पास सर्जरी कराई तो प्रणबदा विदेश मंत्री होने के बावजूद राजनैतिक मामलों की कैबिनेट समिति के अध्यक्ष और वित्त मन्त्रालय में केन्द्रीय मन्त्री का अतिरिक्त प्रभार लेकर मन्त्रिमण्डल के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे।  

वित्त मन्त्री के रूप में 

मनमोहन सिंह की दूसरी सरकार में मुखर्जी भारत के वित्त मन्त्री बने। इस पद पर वे पहले 1980 के दशक में भी काम कर चुके थे। 6 जुलाई 2009 को उन्होंने सरकार का वार्षिक बजट पेश किया। इस बजट में उन्होंने क्षुब्ध करने वाले फ्रिंज बेनिफिट टैक्स और कमोडिटीज ट्रांसक्शन कर को हटाने सहित कई तरह के कर सुधारों की घोषणा की। उन्होंने ऐलान किया कि वित्त मन्त्रालय की हालत इतनी अच्छी नहीं है कि माल और सेवा कर लागू किये बगैर काम चला सके। उनके इस तर्क को कई महत्वपूर्ण कॉरपोरेट अधिकारियों और अर्थशास्त्रियों ने सराहा।

प्रणब ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, लड़कियों की साक्षरता और स्वास्थ्य जैसी सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं के लिए समुचित धन का प्रावधान किया। इसके अलावा उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम, बिजलीकरण का विस्तार और जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन सरीखी बुनियादी सुविधाओं वाले कार्यक्रमों का भी विस्तार किया। हालांकि, कई लोगों ने 1991 के बाद लगातार बढ़ रहे राजकोषीय घाटे के बारे में चिन्ता व्यक्त की।  

विरोध के बावजूद पास कराया पेटेंट कानून

वह सन 1991 से 1996 तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष पद पर आसीन रहे। 2005 के प्रारम्भ में पेटेंट संशोधन बिल पर समझौते के दौरान उनकी प्रतिभा के दर्शन हुए। कांग्रेस एक आईपी विधेयक पारित करने के लिए प्रतिबद्ध थी, लेकिन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन में शामिल वाममोर्चे के कुछ घटक दल बौद्धिक सम्पदा के एकाधिकार के कुछ पहलुओं का परम्परागत रूप से विरोध कर रहे थे। रक्षा मन्त्री के रूप में प्रणबदा इस मामले में औपचारिक रूप से शामिल नहीं थे, लेकिन बातचीत के कौशल को देखकर उन्हें आमन्त्रित किया गया था।

उन्होंने मार्क्सवादी कम्युनिष्ट नेता ज्योति बसु सहित कई पुराने गठबन्धनों को मनाकर मध्यस्थता के कुछ नये बिंदु तय किये, जिसमें उत्पाद पेटेंट के अलावा और कुछ और बातें भी शामिल थीं। तब उन्हें वाणिज्य मन्त्री कमल नाथ सहित अपने सहयोगियों यह कहकर मनाना पड़ा कि कोई कानून नहीं रहने से बेहतर है एक अपूर्ण कानून बनना। अंत में 23 मार्च 2005 को बिल को मंजूरी दे दी गई।  

अन्तर्राष्ट्रीय भूमिका

प्रणबदा और अमेरिकी विदेश सचिव कोंडोलीजा राइस ने 10 अक्टूबर 2008 को धारा 123 समझौते पर हस्ताक्षर किए। वे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और अफ्रीकी विकास बैंक के प्रशासक बोर्ड के सदस्य भी रहे। सन 1984 में उन्होंने आईएमएफ और विश्व बैंक से जुड़े ग्रुप-24 की बैठक की अध्यक्षता की। मई और नवम्बर 1995 के बीच उन्होंने सार्क मन्त्रिपरिषद सम्मेलन की अध्यक्षता की।

राजनीतिक दल में भूमिका

प्रणबदा ऐसे राजनीतिक रहे जिन्हें अपनी पार्टी के भीतर सम्मान मिलने के साथ ही सामाजिक क्षेत्र में भी काफी सम्मान मिला है। अन्य प्रचार माध्यमों में उन्हें बेजोड़ स्मरणशक्ति वाला, आंकड़ाप्रेमी और अपना अस्तित्व बरकरार रखने की अचूक इच्छाशक्ति रखने वाले एक राजनेता के रूप में जाना जाता रहा है।

जब सोनिया गांधी बेमन से राजनीति में शामिल होने के लिए राजी हुईं तब प्रणबदा उनके प्रमुख परामर्शदाताओं में से रहे, जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में उन्हें उदाहरणों के जरिये बताया कि उनकी सास इंदिरा गांधी इस तरह के हालात से कैसे निपटती थीं। मुखर्जी की योग्यता ही उन्हें यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी और प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह के करीब लाई और इसी वजह से जब 2004 में कांग्रेस पार्टी सत्ता में आयी तो उन्हें भारत का रक्षा मंत्री बनाया गया।

यह भी पढ़ें: ​वाइस एडमिरल अजेंद्र बहादुर सिंह ने पूर्वी नौसेना की कमान संभाली

Related posts

किसान आन्दोलन: ठंड में यूपी गेट पर बेखौफ डटे हैं किसान, दिल्ली आवागमन करने वाले परेशान

Buland Dustak

गुजरात में भूपेंद्र पटेल के नए मंत्रिमंडल में 10 कैबिनेट और 14 राज्यमंत्री बने

Buland Dustak

म्यूकोरमाइकोसिस फंगल इन्फेक्शन, जो कोरोना काल में ज्यादा हो रहा: IMA

Buland Dustak

Karbi Anglong Agreement: असम में ऐतिहासिक समझौता, आएगी शांति

Buland Dustak

भारतीय वायुसेना का ​मिग 21 बाइसन दुर्घटनाग्रस्त, पायलट की मौत

Buland Dustak

नये कृषि विधेयक से किसान बनेंगे उद्योगपति, न मंडी बंद होगी

Buland Dustak