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March 29, 2024
मनोरंजन

लता मंगेशकर: संघर्ष की कलम से लिखा बुलंदियों का गीत

हिंदुस्तान की एकमात्र ऐसी गायिका जिसने हिन्दी गानों में अपनी आवाज़ से हर व्यक्ति को मंत्रमुग्ध कर दिया था और आज भी लोग उनके गानों के कायल हैं, वह सुरों की कोकिला “लता मंगेशकर” के अलावा कोई और हो ही नहीं सकता। लोग इनके गानों के इतने मुरीद हो गए थे कि फिल्म भले ही लोगों को पसन्द ना आए मगर लता मंगेशकर के गाए हुए गीत ज़रूर छा जाते थे।

भारत में तो उनके गानों का जादू तो चला ही साथ ही श्रीलंका में भी उन्होंने अपनी आवाज़ में गाने गाए हैं। बात करते हैं शुरुआती दौर की तो इनका जन्म 29 सितम्बर 1929 को मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में हुआ था। इनका बचपन गायकी के माहौल में व्यतीत हुआ क्योंकि पिता जी दीनानाथ मंगेशकर एक “शास्त्रीय गायक” थे।

लता मंगेशकर

लता जी चार बहनों में सबसे बड़ी हैं और चारों ही बहनें अव्वल दर्जे की कलाकार हैं। महज 5 साल की उम्र से ही लता मंगेशकर ने अपने पिता जी से गायन सीखना शुरू कर दिया था। साथ ही परिवार में सब सकुशल चल रहा था और किसी भी चीज़ की कोई कमीं नहीं थी।

लता मंगेशकर के संघर्ष के दिन

मगर जब लता जी 13 वर्ष की थीं तब उनके पिता जी का देहांत हो जाता है और यहाँ से इनके संघर्ष के दिन शुरू हो जाते हैं। भाई-बहन सभी इनसे छोटे थे और अब परिवार को चलाने का सारा जिम्मा लता जी के कन्धों में आ गया था। उस वक्त गाने के अधिक पैसे मिलते नहीं थे जिसकी वजह से उनको काफी आर्थिक तंगी झेलनी पड़ी। तभी उनके पिता जी के दोस्त “मास्टर विनायक” जो कि “नवयुग चित्रपट्ट” के मालिक थे उन्होंने इनके परिवार की मदद की।

इसके अलावा लता मंगेशकर खुद भी परिवार की परिस्थिति सुधारने के लिए लगातार प्रयत्न कर रही थीं। इसी बीच उन्होंने अपनी पढ़ाई नहीं की बल्कि अपने भाई-बहनों को पढ़ाने का जिम्मा संभाला। काम की तलाश में वह मुंबई आईं और उनको कुछ चुनिंदा फिल्मों में अभिनेत्री का किरदार मिला पर उनको एक्टिंग करना बिल्कुल भी नहीं पसन्द था मगर मजबूरी इतनी थी कि उनको अभिनेत्री बनना ही पड़ा।

दूसरी ओर “उस्ताद अमन अली खान” जो कि “भिंडी बाज़ार घराना” से ताल्लुकात रखते थे उनसे शास्त्रीय गीतों को सीखना शुरू कर दिया था। इसी बीच 1948 में उनके मददगार मास्टर विनायक का देहांत हो जाता है और उसके बाद “गुलाम हैदर” जिन्हें लता जी अपना “धर्म-पिता” मानती हैं उनसे गायन की तालीम लेना शुरू किया।

फिल्मी जगत में रखा अपना पहला कदम

गुलाम हैदर इनके हुनर को पहचान गए थे और गायन सीखने में कोई भी कमी अपनी तरफ से नहीं होने देते थे। इसके बाद वह दिन आया जब लता मंगेशकर ने हिन्दी फिल्म जगत में पहला गीत गाया। फिल्म का नाम “महल” था जो 1949 में पर्दे पर आई थी। उसमें “आएगा आनेवाला” गीत गाया जिसे लोगों ने बेहद पसन्द किया। इसके बाद से इनकी ज़िन्दगी तेज़ी से बदल रही थी और 1950 से 1960 तक मदर इंडिया, उड़न खटोला, दीदार तथा अन्य फिल्मों में लगातार एक के बाद एक गीत इनको मिल रहे थे।

वर्ष 1963 में आया गीत “ऐ मेरे वेतन के लोगों” इस गाने ने पूरे भारत में तहलका मचा दिया था और आज भी यह लोगों के बीच शुमार है। इसके बाद इनके गाने और प्रसिद्ध होने लगे तथा लोगों के दिलों में इन्होंने अपना विशेष स्थान बना लिया था जो आज तक बना हुआ है और वर्ष 2011 तक भारतीय सिनेमा जगत में गीत गाए। लता मंगेशकर ने अपना अंतिम गीत एक म्यूजिक एल्बम के तौर पर वर्ष 2019 में “सौगन्ध मुझे इस मिट्टी की” में गाया था।

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जब राजनीति में रखा कदम

पूरी दुनिया में लता मंगेशकर प्रसिद्ध हो चुकी थीं और करीब 50 हज़ार गीत गाने की वजह से उनका नाम “गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड” में दर्ज हो गया था इन सबके अलावा वर्ष 1999 में राज्यसभा सदस्य के लिए इनको नामित किया गया और इसी के साथ वह राजनीति के क्षेत्र में आ गईं।

लेकिन वह सदन में कभी गईं नहीं जिसकी वजह से उनकी आलोचना भी खूब हुई। इसके बाद यह स्पष्ट किया गया कि तबियत ठीक ना होने कारण वह राज्यसभा में उपस्थित नहीं हो पा रही थीं।

बहरहाल, देश-विदेश से इनको इतने पुरस्कार मिले हैं जिसकी सूची बहुत लम्बी है मगर उनमें कुछ प्रमुख पुरस्कार हैं जैसे 1989 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार, 2001 में “भारत रत्न” और 2019 में भारत सरकार ने इनके 90वें जन्मदिवस पर “देश की बेटी” के पुरस्कार से नवाज़ा था। लता मंगेशकर के अलावा आशा भोसले तथा उषा मंगेशकर ने भी फिल्मी जगत में अपने गानों से काफी वाहवाही बटोरी है।

मगर इन सबके बीच लता मंगेशकर ने अपने जीवन में कठिन परिश्रम करके आज यह मुकाम हासिल किया है। इनका जीवन हमें यह प्रेरणा देता है कि कैसे मुश्किलों को पार कर सफलता मिलती है। अपने गीतों से भारत का मान बढ़ाने पर हर भारतवासी इनका सदैव आभारी रहेगा और हम सब की यही कामना है कि लता मंगेशकर जी हमेशा स्वस्थ बनी रहें।

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