भारत के इतिहास में 15 अगस्त का बहुत बड़ा महत्व है। भारत एक लम्बे समय तक अंग्रेजों के अधीन रहा और इस स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए भारतवासियों ने हर मूल्य को चुकाया है। इस स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए देश में कई तरह के आन्दोलन हुए और हर आन्दोलन को सफ़ल बनाने के लिए देशवासियों ने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया।
इस दौरान कई लोगों की जानें भी गयीं और कई ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों से शहीद हो गये। इन अंग्रेजों से भारत ने ख़ुद को 15 अगस्त 1947 में आज़ाद कराया था। तब से अब तक भारत में 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता रहा है। इस आज़ादी के समय अंग्रेजों में हिन्दुस्तान को दो भागों में बाँट दिया था।
आजादी की लड़ाई की प्रमुख घटनाओं का एक लेखा जोखा
- ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत आगमन: सन् 1600 में ब्रिटेन की रानी ने ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में व्यापार करने की अनुमति दे दी और इस तरह हिंदुस्तान में ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन हुआ।
- मुगल साम्राज्य का पतन: 1852 में बहादुरशाह जफर की मृत्यु के बाद मुगल शासन का अंत हो गया। आखिरी मुगल बादशाह की मौत के बाद पूरी सत्ता अँग्रेजों के हाथ में आ गई थी।
सन 1857 की क्रान्ति
सन 1857 की क्रांति का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बहुत बड़ा महत्व है. कई इतिहासकारों का मानना है कि यह क्रान्ति भारत में अंग्रेजों से आज़ादी की पहली लड़ाई थी। यह लड़ाई पूरी तरह से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के विरूद्ध थी। ऐसा माना जाता है, कि इस क्रान्ति का आरम्भ मंगल पाण्डेय की बग़ावत से आरम्भ हुई थी। मंगल पाण्डेय ब्रिटिश रेजिमेंट में एक सैनिक थे। यहाँ पर इस्तेमाल किये जाने वाले कारतूस में गाय के मांस की चर्बी लगी होती थी।
मंगल पाण्डेय ने इस वजह से इस कारतूस का प्रयोग करने से इन्कार कर दिया और गाय को बचाने के ब्रिटिश सेना के ख़िलाफ़ बग़ावत शुरू कर दी। इन्होने इस बग़ावत में बैरकपुर रेजिमेंट के सबसे बड़े अफसर की हत्या कर दी। इस घटना से सभी शोषित भारतीय लोगों के बीच क्रांति की ज्वाला भड़क गयी और समस्त देश में आग की तरह फ़ैल गयी, किन्तु क्रांतिकारी मंगल पाण्डेय के जीवन का अंत हो गया क्योकि ब्रिटिशर ने उन्हें फांसी की सजा दी, जिससे वे स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते – लड़ते शहीद हो गए, एवं बेहतर योजनायें न होने की वजह से ये क्रांति विफल हो गयी।
योजनाबद्ध महत्वपूर्ण क्रांतियाँ
भारत से अंग्रेजों को भगाने के लिए फिर कई योजनाबद्ध क्रांतियाँ शुरू की गयी। लोगों को राजनैतिक स्थितयों से अवगत कराने और जागरूक करने का काम किया जाने लगा। इस समय कई तरह की संस्थाओं की स्थापना की जा रही थी। दादाभाई नारोजी ने सन 1867 में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना की, और सन 1876 में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने इंडियन नेशनल एसोसिएशन की स्थापना की।
इन संस्थाओं की सहायता से लोगों में एकता लाने का कार्य किया जाने लगा। इसी दौरान 1885 में इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना की गयी। इंडियन नेशनल कांग्रेस में कई तात्कालिक दिग्गज नेता शामिल थे। महात्मा गाँधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आन्दोलन, चंपारण सत्याग्रह, दांडी मार्च, भारत छोडो आन्दोलन हुए। इस आन्दोलनों से अंग्रेजी हुकूमत के जड़ें हिलने लगी।
महत्वपूर्ण तिथियां:
- काँग्रेस की स्थापना : दिसंबर 1885 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना हुई। ए.ओ. ह्यूम इसके पहले अध्यक्ष मनोनीत हुए। काँग्रेस का पहला अधिवेशन मुंबई में डब्लू.सी. बनर्जी के नेतृत्व में आयोजित हुआ।
- बंगाल विभाजन : 20 जुलाई, 1905 को बंगाल को दो हिस्सों में विभक्त कर दिया गया। पश्चिमी और पूर्वी बंगाल नाम से दो अलग-अलग क्षेत्र हो गए।
- मुस्लिम लीग की स्थापना : 30 दिसंबर, 1906 को ढाका में मुस्लिम-लीग नामक संगठन की स्थापना हुई। यह पहली बार था, जब इतने बड़े पैमाने पर मुस्लिम नेता एकजुट हुए। सलीम उल्लाह खान ने पहली बार यह प्रस्ताव रखा था, जिसमें एक ऐसे संगठन कही गई थी, जो मुस्लिमों के हित की बात कहे।
- इंडियन कौंसिल एक्ट : 1909 में संवैधानिक सुधारों की घोषणा के साथ ही इंडियन कौसिंल एक्ट लागू किया गया। यह कानून मोर्ले-मिंटो के नाम से जाना गया, जो मुख्य रूप से नरमपंथियों को खुश करने की कोशिश थी।
- बंगाल का एकीकरण : 1911 में ब्रिटिश सरकार ने बंगाल विभाजन को समाप्त कर दिया गया। पश्चिमी और पूर्वी बंगाल को मिला दिया गया। साथ ही बिहार और उड़ीसा को अलग राज्य बना दिया गया।
- होम रूल लीग: 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध का कहर भारतीयों पर भी टूटा। उसी अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए 1915-16 में लोकमान्य तिलक और एनी बेसेंट के नेतृत्व में दो होमरूल लीगों की स्थापना की गई। तिलक का नारा था- ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।
जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता - लाहौर अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू को काँग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। - 31 दिसंबर को स्वाधीनता का स्वीकृत झंडा फहराया गया।
गाँधीजी की वापसी : 9 जनवरी, 1915 को गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका से वकालत की डिग्री लेकर भारत वापस लौटे।
- नरमपंथ-गरमपंथ एकता : 1916 में काँग्रेस के लखनऊ अधिवेशन के बाद एक ऐतिहासिक घटना हुई, जिसमें नरमपंथ और गरमपंथ फिर एक हो गए। अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की गई।
- सांडर्स की हत्या : लाला लाजपत राय मौत से बौखलाए भगत सिंह ने 17 दिसंबर को अँग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या कर दी।
- पहला सत्याग्रह – चंपारण : 1917 में गाँधीजी के नेतृत्व में सबसे पहले बिहार के चंपारण जिले में सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत हुई। नील की खेती करने वाले किसानों पर हो रहे घोर अत्याचार के विरोध में यह सत्याग्रह शुरू किया गया था।
- भारत सरकार कानून : 1918 में ब्रिटिश सरकार के भारत मंत्री एडविन मांटेग्यू और वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने संवैधानिक सुधारों की प्रस्तावना रखी, जिसके आधार पर 1919 का भारत सरकार कानून बनाया गया।
- रौलेट एक्ट: मार्च, 1919 में रौलेट एक्ट बना। इस कानून के तहत यह प्रावधान था कि किसी भी भारतीय पर अदालत में मुकदमा चलाया जा सकता है और बिना दंड दिए उसे जेल में बंद किया जा सकता है। इस एक्ट के विरोध में देशव्यापी हड़तालें, जूलूस और प्रदर्शन होने लगे। गाँधीजी ने व्यापक हड़ताल का आह्वान किया।
- जलियाँवाला बाग : 13 अप्रैल को डॉ. सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल की गिरफ्तारी के विरोध में जलियाँवाला बाग में लोगों की भीड़ इकट्ठा हुई। अमृतसर में तैनात फौजी कमांडर जनरल डायर ने उस भीड़ पर अंधाधुंध गोलियाँ चलवाईं। हजारों लोग मारे गए। भीड़ में महिलाएँ और बच्चे भी थे। यह घटना ब्रिटिश हुकूमत के काले अध्यायों में से एक है।
- खिलाफत आंदोलन बदला असहयोग में: गहरे असंतोष के कारण लोगों ने खिलाफत आंदोलन की शुरूआत की थी। जून, 1920 में इलाहाबाद में एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें स्कूलों, कॉलेजों और अदालतों के बहिष्कार की योजना बनी। यह खिलाफत आंदोलन 31 अगस्त, 1920 को असहयोग आंदोलन में बदल गया।
- ‘साइमन, गो बैक’ : नवंबर 1927 में साइमन कमीशन भारत आया, जिसका उद्देश्य संवैधानिक सुधारों को लागू करना था। लोगों ने इसका काफी विरोध किया और ‘साइमन गो बैक’ के नारे लगाए।
- दांडी यात्रा और नमक-कानून : 12 मार्च 1930 को गाँधीजी और उनके 78 अनुयायी दांडी की 200 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर समुद्र तट पर पहुँचे और नमक-कानून तोड़ा। यह दूसरा अवज्ञा आंदोलन माना जाता है।
चंद्रशेखर आजाद की शहादत: 27 फरवरी को इलाहाबाद के एल्फ्रेड पार्क में अँग्रेजों की गिरफ्तारी से बचने के लिए चँद्रशेखर आजाद ने खुद को गोली मार ली और इस तरह आजादी का एक वीर सिपाही शहीद हो गया।
- असेंबली में बम: 8 अप्रैल को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली में बम फेंका। उनका उद्देश्य किसी को मारना नहीं था, बल्कि लोगों तक अपनी आवाज पहुँचाना था।
- ऐतिहासिक भूख-हड़ताल: जतीन दास और उनके साथियों ने लाहौर में कैद के दौरान जेल प्रशासन के अत्याचार के खिलाफ भूख हड़ताल रखी। यह भूख-हड़ताल 63 दिनों तक चली, जिसमें जतीन दास की मृत्यु हो गई।
तीन वीरों को फाँसी : 31 मार्च, 1931 को भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फाँसी पर लटका दिया गया और ये तीनों वीर ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ गाते हुए खुशी-खुशी फाँसी के फंदे पर झूल गए।
- कैदियों को छोड़ने का प्रस्ताव : मार्च में ही गाँधी-इरविन समझौता हुआ। इसके तहत यह प्रस्ताव रखा गया कि अहिंसक व्यवहार करने वाले कैदियों को छोड़ने की अनुमति सरकार दे।
- गोलमेज सम्मेलन : 1930 में लंदन में भारतीय नेताओं और प्रवक्ताओं का पहला गोलमेज-सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य साइमन-कमीशन की रिपोर्ट पर विचार करना था।
- 1931 में गाँधीजी दूसरे गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लेने इंग्लैंड पहुँचे।
- नवंबर, 1932 में काँग्रेस तीसरे गोलमेज सम्मेलन में सम्मिलित नहीं हुई। इस सम्मेलन का परिणाम 1935 के भारत सरकार कानून के रूप में सामने आया।
आज़ाद हिन्द फ़ौज
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सन 1942 में भारत को अंग्रेजों के कब्जे से स्वतन्त्र कराने के लिये आजाद हिन्द फौज या इन्डियन नेशनल आर्मी (INA) नामक सशस्त्र सेना का संगठन किया गया। सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व पर कहा और सिंगापुर में ‘नि: शुल्क भारत की अस्थायी सरकार’ के गठन की घोषणा की। इस सेना के गठन में कैप्टन मोहन सिंह, रासबिहारी बोस एवं निरंजन सिंह गिल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना का विचार सर्वप्रथम मोहन सिंह के मन में आया था।
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भारत छोडो आन्दोलन
इसकी शुरुआत महात्मा गाँधी ने ‘हरिजन पत्रिका’ में एक लेख लिख कर शुरू किया था। 9 अगस्त सन 1942 में ये आन्दोलन शुरू हुआ। भारत छोडो आन्दोलन को महात्मा गाँधी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया। यह आन्दोलन हालाँकि महात्मा गाँधी अहिंसा के मार्ग पर चल कर पूरा करना चाहते थे, किंतु बहुत ही जल्द आम जनता के सब्र का बांध टूट गया और कहीं कहीं हिंसात्मक तरीके से भी यह आंदोलन किया गया। इस तरह से यह दिन देश भर में स्वतंत्रता दिवस की उमंग के साथ मनाया जाता है। इस साल 15 अगस्त 2020 भी 74 वां स्वतंत्रता दिवस के रूप में बड़े उत्साह व उमंग के साथ मनाया गया।